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1 हजार रुपये को लेकर दोस्त की हत्या करने का था आरोप, 6 साल जेल में बिताने के आरोपी हुआ बरी

अभियोजन पक्ष ने विशाल की बहन कोमल अहिरे की गवाही पर भरोसा किया, जिसने दावा किया कि उसने हमला होते हुए देखा था. उसने कहा कि फरार सह-आरोपी की मदद से आरोपी ने विशाल को रोका और उसे चाकू घोंप दिया. विशाल द्वारा कथित तौर पर दिए गए मृत्यु-पूर्व बयान में भी आरोपी को हमलावर बताया गया था.

मुंबई के सत्र न्यायालय ने सुनाया फैसला (प्रतीकात्मक तस्वीर) मुंबई के सत्र न्यायालय ने सुनाया फैसला (प्रतीकात्मक तस्वीर)
विद्या
  • मुंबई,
  • 30 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:56 PM IST

मुंबई सत्र न्यायालय ने एक 26 वर्षीय उस युवक को बरी कर दिया, जिसने ₹1000 के लिए अपने दोस्त की हत्या के आरोप में छह साल से अधिक समय जेल में बिताया था. पंत नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज मामला 28 सितंबर, 2018 को 24 वर्षीय विशाल संजय अहिरे की चाकू घोंपकर हत्या करने से जुड़ा था. 

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि आरोपी ने विशाल पर 1,000 रुपये के विवाद में हमला किया, जो विशाल ने उसे उधार के तौर पर दिए थे. घटना की रात, आरोपी और दो फरार सह-आरोपियों ने कथित तौर पर विशाल पर हमला किया था. 2 अक्टूबर, 2018 को विशाल की मौत हो गई, जिसके बाद आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या के आरोप जोड़े गए.

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मृतक की बहन ने दिया था ये बयान

अभियोजन पक्ष ने विशाल की बहन कोमल अहिरे की गवाही पर भरोसा किया, जिसने दावा किया कि उसने हमला होते हुए देखा था. उसने कहा कि फरार सह-आरोपी की मदद से आरोपी ने विशाल को रोका और उसे चाकू घोंप दिया. विशाल द्वारा कथित तौर पर दिए गए मृत्यु-पूर्व बयान में भी आरोपी को हमलावर बताया गया था.

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हालांकि, आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील एआर बुखारी ने अभियोजन पक्ष के मामले में कई विरोधाभासों का सवाल उठाया. अदालत ने पाया कि अंतिम बयान मेडिकल अधिकारी की उपस्थिति में दर्ज नहीं किया गया था, जिससे यह संदेह पैदा हुआ कि विशाल ने यह बयान देते समय मानसिक स्थिति क्या थी. इसके अलावा, कोमल की गवाही में तीन हमलावरों का आरोप लगाया गया था, विशाल के मृत्यु-पूर्व बयान में केवल आरोपी का नाम था, जिससे विसंगतियां पैदा हुईं.

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कोर्ट ने मानी आरोपी के वकील की दलील

अदालत ने फॉरेंसिक निष्कर्षों में भी भिन्नताएं नोट कीं. पोस्टमार्टम में कई चाकू के घाव दर्ज किए गए थे, जबकि कोमल ने केवल एक वार का उल्लेख किया. इसके अतिरिक्त, एफआईआर उस अपराध के पुलिस को सूचित करने के कई घंटे बाद दर्ज किया गया, और इसकी देरी का कोई स्पष्ट कारण नहीं था.

एक प्रमुख गवाह, जिन्होंने पहले दावा किया था कि उसने हमले को देखा था, बाद में अदालत में आरोपी की पहचान नहीं कर सका. एक अन्य गवाह ने यह नकारा किया कि अपराध स्थल से बरामद हथियार उसकी दुकान से लिया गया था. इन विरोधाभासों के चलते, अदालत ने यह निर्णय दिया कि अभियोजन पक्ष आरोपित के दोष को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा, और आरोपी, जो 2018 से हिरासत में था उसे बरी कर दिया गया.

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