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प्रगति मैदान के पास बसी अवैध बस्ती को हटाने का आदेश, झुग्गीवालों को मिली एक महीने की मोहलत

दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रगति मैदान के पीछे जनता कैंप रेलवे नर्सरी में बसी झुग्गी को हटाने का आदेश दे दिया है. कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग के तोड़फोड़ अभियान पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने अपने फैसले में झुग्गियों में रहने वाले लोगों को एक महीने में शेल्टर होम में शिफ्ट होने की मोहलत दी है. उसके बाद विभाग झुग्गियों हटाने की कार्रवाई कर सकता है.

दिल्ली के लोक निर्माण विभाग को 31 मई के बाद तोड़फोड़ की मिली अनुमति (फाइल फोटो) दिल्ली के लोक निर्माण विभाग को 31 मई के बाद तोड़फोड़ की मिली अनुमति (फाइल फोटो)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2023,
  • अपडेटेड 10:59 AM IST

दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रगति मैदान के पास बसी झुग्गियां गिराने और हटाने का आदेश दे दिया है. प्रगति मैदान के पीछे जनता कैंप रेलवे नर्सरी जेजे बस्ती के पास बड़ी झुग्गियों में रहने वाले जनवरी में राहत की गुहार लेकर कोर्ट गए थे. तब कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए फरवरी में लोक निर्माण विभाग के अपनी जमीन खाली कराने के लिए चला जा रहे तोड़फोड़ अभियान पर रोक लगा दी थी. अब हाई कोर्ट ने इस मामले में किसी भी तरह का दखल देने से इनकार कर दिया है. कोर्ट ने सभी झुग्गीवालों को जगह खाली करके शेल्टर होम में जाने के लिए एक महीने की मोहलत दी है. कोर्ट ने लोक निर्माण विभाग को 31 मई के बाद कभी भी तोड़फोड़ करने की इजाजत दे दी है.

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नोटिफाइड क्लस्टर नहीं है इलाका

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने सुनवाई के दौरान पाया कि प्रगति मैदान के पास भैरों मार्ग पर अवैध रूप से झुग्गियां बसी हैं. यह क्षेत्र नोटिफाइड क्लस्टर नहीं है यानी दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के चिह्नित झुग्गी झोपड़ी एरिया के रूप में मान्य नहीं है. अपनी दलील के साथ पीडब्ल्यूडी के वकील ने स्केच नक्शा भी कोर्ट को दिखाया. दलीलों और नक्शे को देखकर जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने आदेश जारी किया कि एजेंसी महीने भर का नोटिस पीरियड पूरा होने पर तोड़फोड़ की कार्रवाई कर सकती है. कोर्ट याचिकाकर्ताओं का कोई वैध दावा न होने से दखल नहीं देगी, क्योंकि कोर्ट के दखल देने के लिए कानूनी आधार चाहिए.

बस्ती बसाने का क्या है नियम

कानून के मुताबिक अगर वे जगह जेजे कलस्टर का हिस्सा होती तो कोर्ट वहां रह रहे परिवारों के पुर्नवास विचार करता, लेकिन इसके अभाव में कोर्ट पुनर्वास की अपील पर भी विचार नहीं कर सकता. ये झुग्गियां मान्य कलस्टर से अच्छी खासी दूर हैं. लिहाजा उनको उस सघन झुग्गियों वाली बस्ती में शामिल नहीं माना जा सकता. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वो इस आदेश को शीर्ष कोर्ट में चुनौती देंगे.

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