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सुप्रीम कोर्ट ने महुआ मोइत्रा की दोनों मांगें ठुकराईं, लोकसभा सचिवालय को दिया तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश

टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा ने लोकसभा से निष्कासन के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. कैश-फॉर-क्वेरी मामले में महुआ की संसद की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इस फैसले के खिलाफ महुआ की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की गई है. बुधवार को महुआ मोइत्रा को सुप्रीम कोर्ट से फिलहाल कोई राहत नहीं मिली है.

महुआ मोइत्रा (फाइल फोटो) महुआ मोइत्रा (फाइल फोटो)
संजय शर्मा/कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 03 जनवरी 2024,
  • अपडेटेड 2:13 PM IST

टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लोकसभा महासचिव/ सचिवालय को नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने पार्लियामेंट सेक्रेटरी को तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने निष्कासित करने के आदेश पर रोक लगाने और फरवरी में सुनवाई करने की अपील दोनों ठुकरा दी हैं. अब इस मामले में अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी. 

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सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनवाई की है. महुआ मोइत्रा की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पैरवी की. सिंघवी ने बजट सेशन के मद्देनजर फरवरी में सुनवाई करने और राहत देने की गुहार लगाई थी. लेकिन कोर्ट ने दोनों मांगों को ठुकरा दिया.

'महुआ ने लोकसभा के फैसले को दी है चुनौती'

बता दें कि महुआ मोइत्रा को लेकर एथिक्स कमेटी ने 8 दिसंबर को लोकसभा में एक रिपोर्ट पेश की थी. इस रिपोर्ट पर चर्चा के बाद महुआ की सदस्यता रद्द करने का फैसला लिया गया था. महुआ ने लोकसभा के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और कार्रवाई पर सवाल उठाए थे. इससे पहले 15 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि हमें महुआ की अर्जी की फाइल पढ़ने का मौका नहीं मिला. कोर्ट ने मामले की सुनवाई 3 जनवरी तक टाल दी थी.

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'हीरानंदानी और जय के बयानों में विरोधाभास'

महुआ मोइत्रा के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, महुआ को सिर्फ अपनी लॉगिन आईडी साझा करने के कारण निष्कासित किया गया है. रिश्वत के आरोपों पर गौर करना होगा. कारोबारी हीरानंदानी और जय देहाद्राई के आरोपों में विरोधाभास है. जय का कहना है कि हीरानंदानी ने सवाल पूछने के लिए दबाव डाला. ऐसे ही आरोप हीरानंदानी ने जय पर लगाए हैं. हालांकि, इस पूरे प्रकरण में धन के लेन-देन की कोई कड़ी नहीं मिली है.

'बिना किसी नियम के सस्पेंड कर दिया'

सिंघवी ने आगे कहा, मैं 18 साल से संसद सदस्य हूं. कोई भी व्यक्ति ऑपरेट करने के लिए सिर्फ पासवर्ड नहीं दे सकता. एक ओटीपी भी सिर्फ उसके पास आता है. यहां पासवर्ड साझा करने के विरुद्ध किसी भी नियम के बिना निष्कासित कर दिया गया. जो नियम लागू है वो हैकिंग से संबंधित हैं. कई सांसद ऐसा करते हैं. यह वास्तव में एक सांसद के आरोपों पर आधारित है. विरोधाभासों के बावजूद मुझे बहस करने की अनुमति नहीं मिली. 

'क्या सवाल पूछने के लिए मजबूर किया जा सकता?'

सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता ने सिंघवी से पूछा कि क्या लोकसभा के किसी सदस्य को दबाव डालकर सवाल पूछने के लिए मजबूर किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते में जवाब तलब करने की बात कही. अगले तीन हफ्ते याचिकाकर्ता को प्रति उत्तर दाखिल करने के लिए दिए गए हैं. अगली सुनवाई 11 मार्च को होगी. इससे पहले कोर्ट के सामने कई मुद्दे उठाए गए हैं. उन पर अभी कोर्ट की तरफ से कोई कमेंट नहीं किया गया. कोर्ट आगे चर्चा कर सकता है. सुनवाई में राजाराम पाल वाले मामले का भी जिक्र आया. पाल 2005 में संसद में पैसा लेकर सवाल पूछने के मामले में फंस चुके हैं.
 

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