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Bipolar disorder: ओडिशा में मंत्री के हत्यारे पुलिसवाले को बाइपोलर डिसऑर्डर, जानिए बीमारी का केस और सजा पर क्या असर होगा?

ओडिशा के स्वास्थ्य मंत्री नब किशोर दास की मौत हो गई है. उनपर रविवार को असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर गोपालकृष्ण दास ने गोली चला दी थी. हालांकि, बताया जा रहा है कि गोपालकृष्ण दास बाइपोलर डिसऑर्डर से जूझ रहा था, जो एक मानसिक बीमारी है. ऐसे में जानना जरूरी है कि क्या इस बात का केस पर असर पड़ सकता है?

ASI गोपालकृष्णा दास ने स्वास्थ्य मंत्री नब किशोर दास पर गोली चला दी थी. (फाइल फोटो) ASI गोपालकृष्णा दास ने स्वास्थ्य मंत्री नब किशोर दास पर गोली चला दी थी. (फाइल फोटो)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 30 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST

ओडिशा के स्वास्थ्य मंत्री नब किशोर दास का निधन हो गया. रविवार दोपहर एक पुलिसकर्मी ने उनके सीने पर गोली मार दी थी. 

नब किशोर दास रविवार को झारसुगड़ा जिले में ब्रजराजनगर के एक कार्यक्रम में शामिल होने जा रहे थे. तभी एक बजे के आसपास एक असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर गोपालकृष्ण दास ने उनपर गोली चला दी.

अपोलो अस्पताल ने एक बयान जारी कर बताया कि नब किशोर दास को एक गोली लगी थी जो उनके शरीर के आर-पार चली गई. जिसकी वजह से दिल और बाएं फेफड़े में इंजरी आ गई थी और इससे इंटरनल ब्लीडिंग होने लगी थी. अस्पताल के मुताबिक, उनकी इंजरी ठीक हो गई थी और उन्हें बचाने की भरसक कोशिश की गई, लेकिन उन्हें बचाया नहीं जा सका.

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इन सबके बीच ये भी सामने आया है कि जिस एएसआई गोपालकृष्ण दास ने उनपर गोली चलाई थी, वो मानसिक बीमारी से जूझ रहा था. बरहमपुर स्थित MKCG मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में साइकेट्री डिपार्टमेंट के हेड डॉक्टर चंद्र शेखर त्रिपाठी ने बताया कि गोपालकृष्ण दास बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित थे.

डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि गोपालकृष्ण दास उनकी क्लिनिक पर आठ-दस साल पहले आया था. वो बहुत जल्दी गुस्सा हो जाता था और उसका इलाज चल रहा था. उन्होंने बताया कि वो इस बात को लेकर कन्फर्म नहीं हैं कि दास रेगुलर दवाई ले रहा था या नहीं. अगर रेगुलर दवा नहीं ले रहा है तो बीमारी फिर से बढ़ जाती है. उन्होंने बताया कि आखिरी बार दास कई वर्षों पहले उनके पास आया था.

बहरहाल, इस पूरे मामले में सीआईडी ने आईपीसी की धारा 307 (हत्या की कोशिश) और आर्म्स एक्ट के तहत केस दर्ज कर लिया है. हालांकि, अब चूंकि स्वास्थ्य मंत्री नब किशोर दास की मौत भी हो चुकी है, इसलिए धारा 302 (हत्या) भी जुड़ सकती है. 

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क्या है बाइपोलर डिसऑर्डर?

गोपालकृष्ण दास गंजम जिले के जेलेश्वरखांडी गांव का रहने वाला था. वो पहले बरहमपुर में कॉन्स्टेबल था. 12 साल पहले झारसुगड़ा जिले में उसका ट्रांसफर हो गया था.

डॉ. त्रिपाठी ने इस बात को कन्फर्म किया है कि दास बाइपोलर डिसऑर्डर से जूझ रहा था. दास की पत्नी जयंती ने भी बताया है कि वो किसी मानसिक बीमारी की दवाएं ले रहे थे. जयंती ने बताया कि गोपाल दास उनसे 400 किलोमीटर दूर रहते थे, इसलिए ये नहीं पता कि वो रेगुलर दवा ले रहा था या नहीं.

बाइपोलर डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी होती है जिससे पीड़ित व्यक्ति के लगातार मूड स्विंग्स होते रहते हैं. वो अचानक से गुस्से में आ जाता है और अचानक से शांत भी हो जाता है. 

बाइडपोलर डिसऑर्डर से जूझ रहे व्यक्ति को डिप्रेशन के दौरे पड़ते हैं. उसका मूड कभी हाई हो जाता है तो कभी लो. इससे पीड़ित व्यक्ति का मन उदास रहता है और उसका बिना कारण ही रोते रहने का मन करने लगता है. उसको या तो बहुत ज्यादा नींद आती है या फिर बिल्कुल नींद नहीं आती.

क्या इसका केस पर असर पड़ेगा?

अगर अदालत में ये साबित हो जाता है कि नब किशोर दास पर गोली चलाने वाले एएसआई गोपालकृष्ण दास किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है. तो इस केस पर असर पड़ सकता है. 

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डॉ. त्रिपाठी और दास की पत्नी ये बात कन्फर्म कर चुके हैं कि वो बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित था और उनका इलाज चल रहा था.

ये बात इस पूरे केस पर असर डाल सकती है. क्योंकि आईपीसी की धारा 84 कहती है कि ऐसा व्यक्ति जो मानसिक अस्वस्थता के कारण कोई काम करते वक्त ये नहीं जान पाता कि उस काम की प्रकृति क्या है या वो जो कुछ कर रहा है वो गलत या कानून के खिलाफ है तो ऐसे में उसके काम को 'अपराध' नहीं माना जाएगा.

कुल मिलाकर, अगर ये साबित हो जाता है कि कोई व्यक्ति अपराध करते समय किसी ऐसी विकृत-चित्त अवस्था से गुजर रहा था कि वो अपराध की प्रवृत्ति या गुण को नहीं समझता था, या अगर वो ये भी जानता भी था तो वो ये नहीं जानता था कि वो जो कर रहा था वो गलत था.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था, 'सिर्फ मानसिक रूप से बीमार लोग और मनोरोगी किसी आपराधिक मामले में छूट पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि जिस समय अपराध किया गया, उस समय पागलपन को साबित करना उनकी जिम्मेदारी है. इसलिए मानसिक रूप से बीमार हर व्यक्ति को अपराध से मुक्त नहीं किया जा सकता. इसीलिए कानून और मेडिकल की नजर में पागलपन में अंतर होना चाहिए.'

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