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Worship Act के खिलाफ 7वीं याचिका, कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर भी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने भी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. इस एक्ट के खिलाफ दायर हुई ये सातवीं याचिका है.

देवकीनंदन ठाकुर (फाइल फोटो) देवकीनंदन ठाकुर (फाइल फोटो)
संजय शर्मा/अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2022,
  • अपडेटेड 2:22 PM IST
  • एक हफ्ते में दायर हुईं चार याचिकाएं
  • उपासना स्थल कानून रद्द करने की मांग

ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा विवाद के बीच उपासना स्थल कानून यानी प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट भी चर्चा में है. साल 1991 में बने इस एक्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर किए जाने का सिलसिला सा चल रहा है. अब कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने भी इस कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

देवकीनंदन ठाकुर की ओर से दायर की गई याचिका के साथ ही पिछले एक हफ्ते में चार याचिकाएं इस कानून के खिलाफ दायर हो चुकी हैं. उपासना स्थल कानून के खिलाफ अब तक कुल सात याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हो चुकी हैं. सबसे पहले हरिशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने इस कानून के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. तब वर्चुअल सुनवाई चल रही थी जिसकी वजह से याचिका पर सुनवाई टालने की मांग की गई थी. इस याचिका के कुछ ही हफ्ते बाद 12 मार्च 2021 को वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस भी जारी हुआ था.

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सुप्रीम कोर्ट ने अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी कर सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा था. इस नोटिस को जारी हुए 14 महीने से अधिक समय गुजर गया है लेकिन सरकार की ओर से इसे लेकर कोर्ट में जवाब दाखिल नहीं किया गया है. सरकार के सूत्रों का कहना है कि उचित समय आने पर जवाब दाखिल कर दिया जाएगा. विष्णु शंकर जैन से लेकर अब तक दाखिल सभी याचिकाओं में उपासना स्थल कानून को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताया गया है.

याचिका में कानून के खिलाफ ये मुख्य दलील

सुप्रीम कोर्ट में उपासना स्थल कानून के खिलाफ दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से एक प्रमुख दलील दी गई है. वह ये कि जब कानून व्यवस्था, कृषि, शिक्षा आदि की तरह धार्मिक स्थलों का रखरखाव और उस बाबत कानून और नियम बनाने का अधिकार भी राज्य सूची में है. जब संविधान ने ये हक राज्यों को ही दिया है तो केंद्र ने कैसे ये कानून बना दिया. यानी केंद्र की ओर से 1991 में संसद से पारित कराया गया ये विधेयक जिसे कानून बनाया गया, पूरी तरह से असंवैधानिक है. सभी याचिकाकर्ता इसी आधार पर इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं.

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पुजारी महासंघ ने 2020 में दाखिल की थी याचिका

विष्णु शंकर जैन और हरिशंकर जैन ने विश्वभद्र पुरोहित पुजारी महासंघ की ओर से जुलाई 2020 में इस कानून के खिलाफ याचिका दाखिल की थी. तब वर्चुअल सुनवाई की वजह से याचिकाकर्ताओं के आग्रह पर तीन जजों की पीठ ने सुनवाई चार हफ्ते के लिए टाल दी थी. इसके करीब आठ महीने बाद अश्विनी उपाध्याय ने इसी तरह की याचिका सुप्रीम कोर्ट के सामने मार्च 2021 में मेंशन की. इस याचिका पर कोर्ट ने केंद्र सरकार के नाम नोटिस जारी कर रुख स्पष्ट करने को कहा है.

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