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राजस्थान मानवाधिकार आयोग ने एक पुलिस इंस्पेक्टर पर दो लाख रुपए और एक कांस्टेबल पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. आरोप है कि दोनों ने मिलकर एक 70 साल के व्यक्ति को झूठे एनडीपीएस एक्ट में फंसाया था. आयोग ने राज्य सरकार से दोनों पुलिस कर्मियों से उनके वेतन से जुर्माना वसूली करने का निर्देश दिया है. साथ ही आयोग ने दो महीने के अंदर सीनियर सिटीजन को पांच लाख रुपए मुआवजा भी देने को कहा है. आयोग ने सरकार से दो महीने के भीतर उस वरिष्ठ नागरिक को पांच लाख रुपये का मुआवजा देने को भी कहा.
आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति जी के व्यास ने भी सरकार को आदेश दिया कि वह अगले पांच साल के लिए किसी भी पुलिस थाने के थाना प्रभारी के रूप में दोषी पुलिस निरीक्षक की नियुक्ति न करे. एक सीनियर पुलिस अफसर की जांच को संज्ञान में लेते हुए न्यायमूर्ति व्यास ने बुजुर्ग को क्लीन चिट दे दिया. उन्होंने फलोदी निवासी भाकर राम विश्नोई की याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें बरी किया है. याचिका के जरिए कहा गया था कि उन्हें अफीम रखने और व्यापार करने के झूठे मामले में फंसाया गया है.
जांच में सामने आया सच
याचिका दायर होने के बाद पैनल के आदेश पर सीनियर पुलिस अधिकारियों ने जांच में पाया कि बिश्नोई को जोधपुर के जांबा पुलिस स्टेशन के तत्कालीन एसएचओ सीताराम ने 2012 में अपने थाने के दो कांस्टेबलों भगवानाराम और करनाराम के साथ मिलीभगत से फंसाया था. पुलिस वालों ने उसके घर से 3 किलो अफीम की बरामदगी दिखाते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया था और उसके खिलाफ एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया था. बिश्नोई के खिलाफ प्राथमिकी के आधार पर मजिस्ट्रेट ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया था और उन्हें पांच महीने से अधिक समय तक जेल में रहना पड़ा था।
न्यायमूर्ति ने कहा- ये मानवाधिकारों के उल्लंघन का गंभीर मामला
मामले को गंभीरता से लेते हुए न्यायमूर्ति व्यास ने कहा कि यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक गंभीर मामला है, जिसमें एक 70 वर्षीय व्यक्ति को एक अपराध में फंसाने वाले पुलिसकर्मियों द्वारा रची गई साजिश के तहत पांच महीने तक जेल में रहना पड़ा था. उन्होंने कहा कि पीड़ित को जेल के कारण हुई मानसिक पीड़ा और समाज में उनकी छवि और प्रतिष्ठा के नुकसान का आकलन करना संभव नहीं है.