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सेम सेक्स मैरिज पर 5 जजों की संवैधानिक बेंच 18 अप्रैल को करेगी सुनवाई, लाइव स्ट्रीमिंग की मांग

सेम सेक्स मैरिज पर अब सुप्रीम कोर्ट में 18 अप्रैल को सुनवाई होगी. सुनवाई के लिए 5 जजों की संवैधानिक बेंच बनाने का फैसला किया गया है. सोमवार को याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करने की मांग की. उन्होंने तर्क दिया कि पूरे देश को पता चलना चाहिए कि आखिर सुनवाई में क्या हो रहा है?

फाइल फोटो फाइल फोटो
संजय शर्मा/अनीषा माथुर/नलिनी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 4:35 PM IST

समलैंगिक विवाह (same sex marriage) को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका पर अब 18 अप्रैल को सुनवाई होगी. याचिका पर 5 जजों की संवैधानिक बेंच 18 अप्रैल को सुनवाई करेगी. याचिकाकर्ताओं ने इस मामले को आम लोगों से जुड़ा हुआ और महत्वपूर्ण बताते हुए सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग करने की मांग की है. याचिकाकर्ताओं ने कहा कि पूरे देश को पता होना चाहिए कि क्या सुनवाई चल रही है. 

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इससे पहले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका पर सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ताओं ने केंद्र के हलफनामे पर जवाब देने के लिए समय मांगा.  सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने पूछा कि इस मामले पर केंद्र का क्या कहना है? याचिकाओं का विरोध करते हुए केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने SC से कहा कि यह सामाजिक नैतिकता और भारतीय लोकाचार (स्वाभाव या प्रकृति) के अनुरूप नहीं है.

सुनवाई के दौरान SG तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह के बाद विवाहित जोड़ा एक बच्चे को गोद लेता है तो उस बच्चे की मानसिक अवस्था क्या होगी ये भी समझने की जरूरत है? क्योंकि एक बच्चा महिला को मां के तौर पर और पुरुष को पिता के नजरिए से देखता है.

SG तुषार मेहता ने आगे कहा, 'हमने (केंद्र) हलफनामे में कहा है कि भारतीय वैधानिक और व्यक्तिगत कानून शासन में विवाह की विधान संबंधी समझ केवल एक जैविक पुरुष और जैविक महिला के बीच विवाह को संदर्भित करती है. इसमें कोई भी हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन का विनाश होगा.' इससे पहले सुनवाई के दौरान केंद्र ने कहा कि यह मामला संसद के अधिकार क्षेत्र में है. इसलिए मामले में संसद में ही बहस हो सकती है.

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केंद्र ने इस मामले पर सुप्रीम में 56 पेज का हलफनामा दाखिल किया था. इसमें सरकार ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने अपने कई फैसलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता की व्याख्या स्पष्ट की है. इन फैसलों की रोशनी में भी इस याचिका को खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि उसमें सुनवाई करने लायक कोई तथ्य नहीं है.

हलफनामे में आगे कहा गया कि मेरिट के आधार पर भी उसे खारिज किया जाना ही उचित है. कानून में उल्लेख के मुताबिक भी समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दी जा सकती. क्योंकि उसमे पति और पत्नी की परिभाषा जैविक तौर पर दी गई है. उसी के मुताबिक दोनों के कानूनी अधिकार भी हैं. समलैंगिक विवाह में विवाद की स्थिति में पति और पत्नी को कैसे अलग-अलग माना जा सकेगा?.

 

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