
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्र सरकार के बीच में तकरार कम होने के बजाए बढ़ती जा रही है. अब इस विवाद में समलैंगिक एडवोकेट सौरभ कृपाल की नियुक्ति को लेकर भी असमंजस की स्थिति बन गई है. एक तरफ सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम साफ कर चुका है कि सौरभ कृपाल दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायधीश बनाए जाने चाहिए, तो वहीं दूसरी तरफ केंद्र सरकार की तरफ से कुछ आपत्तियां जाहिर की गई हैं. बड़ी बात ये है कि पिछले पांच सालों से सौरभ कृपाल की नियुक्ति नहीं हो पाई है. सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सबसे पहले दो साल पहले 11 नवंबर को सौरभ कृपाल के नाम को आगे किया था. लेकिन तब से नियुक्ति अटकी पड़ी है और ये विवाद बढ़ता चला गया है.
किन बिंदुओं पर विवाद, केंद्र का क्या रुख?
अब इस विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी तरफ से कड़ा रुख अपनाया है. दो टूक कहा गया है कि किसी की सेक्सुअल ओरिएंटेशन को आधार बनाकर उसे प्रमोट करने से नहीं रोका जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि सौरभ कृपाल की इस बात की तारीफ होनी चाहिए कि वे अपनी सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर इतना खुलकर बोलते हैं. वैसे भी अप्रैल 2019 को RAW के जो लेटर मिले थे, उनसे पता चलता है कि सिर्फ दो पहलुओं पर विवाद है. पहला ये कि कृपाल के पार्टनर स्विस नागरिक हैं. दूसरा पहलू ये है कि वे अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर काफी ओपन हैं. उसी लेटर में केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू की एक चिट्ठी का भी जिक्र किया गया है. उस चिट्ठी में रिजिजू ने कहा है कि भारत में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर जरूर कर दिया गया है, लेकिन सेम सेक्स मैरेज को अभी भी मान्यता देना बाकी है. इसके अलावा चिट्ठी में इस बात की आशंका भी जाहिर की गई कि कृपाल के विचार पक्षपात वाले भी रह सकते हैं क्योंकि वे समलैंगिक लोगों के अधिकारों को लेकर खुलकर बात करते हैं.
SC कॉलेजियम का विवाद पर क्या रुख?
अब इन तमाम चिंताओं पर कॉलेजियम ने मजबूती के साथ अपना पक्ष रखा है. जोर देकर कहा गया है कि R&AW द्वारा जो चिंताएं व्यक्त की गई हैं, वो किसी भी तरह से उस शख्स के व्यहवार पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाती हैं. वहीं पार्टनर के विदेशी नागरिक होने पर भी कॉलेजियम ने कहा है कि ये कोई पहली बार नहीं है जब बड़े पद पर बैठे किसी शख्स की पत्नी या पति विदेशी नागरिक रहे हों. ऐसे में सौरभ कृपाल की नियुक्ति को भी ये कहकर खारिज नहीं किया जा सकता कि उनके पार्टनर विदेशी नागरिक हैं. इस बात पर भी जोर दिया गया है कि पहले से ऐसा सोचना कि कोई विदेशी नागरिक है तो वो भारत के खिलाफ गलत इरादे रखेगा, खतरा बन जाएगा, सही नहीं है. वहीं सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर कॉलेजियम ने कोर्ट के ही आदेश को दोहराते हुए साफ कहा है कि हर शख्स को सेक्सुअल ओरिएंटेशन के आधार पर अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व बनाए रखने की आजादी है.
कौन हैं सौरभ कृपाल?
कॉलेजियम ने अपने विचार रखते हुए कहा है कि सौरभ कृपाल काबिल भी हैं और समझदार भी, दिल्ली हाई कोर्ट के अगर वे न्यायधीश बनेंगे तो ये समावेश और विविधता को बढ़ाने का काम करेंगे. अब जानकारी के लिए बता दें कि सौरभ कृपाल ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से ग्रेजुएशन की है. वहीं उन्होंने ग्रेजुएशन में लॉ की डिग्री ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से ली है. पोस्टग्रेजुएट (लॉ) कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से किया है. सुप्रीम कोर्ट में उन्होंने दो दशक तक प्रैक्टिस की है. वहीं उन्होंने यूनाइटेड नेशंस के साथ जेनेवा में भी काम किया है. सौरभ की ख्याति 'नवतेज सिंह जोहर बनाम भारत संघ' के केस को लेकर जानी जाती है, दरसअल वह धारा 377 हटाये जाने को लेकर याचिकाकर्ता के वकील थे. सितंबर 2018 में धारा 377 को लेकर जो कानून था, उसे सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था.