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'देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह कानून जरूरी', विधि आयोग ने सरकार को सौंपी रिपोर्ट

भारतीय विधि आयोग ने राजद्रोह कानून को लेकर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. विधि आयोग की ओर से कानून मंत्री को भेजी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता की रक्षा के लिए राजद्रोह कानून जरूरी है. आयोग ने कुछ संशोधन के साथ कानून को बनाए रखने की सिफारिश की है.

कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (फाइल फोटोः पीटीआई) कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (फाइल फोटोः पीटीआई)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2023,
  • अपडेटेड 2:55 PM IST

राजद्रोह कानून को लेकर सरकार ने विधि आयोग से रिपोर्ट मांगी थी. राजद्रोह कानून को लेकर भारतीय विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है. विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा है कि कुछ संशोधन के साथ इस कानून को बनाए रखा जा सकता है. आयोग ने ये भी कहा है कि इस कानून को समाप्त करने की जरूरत नहीं है.

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भारतीय विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि देश की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा के लिए इस कानून का रहना आवश्यक और अनिवार्य है. आयोग ने राजद्रोह अपराध को लेकर अपनी सिफारिश में ये भी कहा है कि राजद्रोह जैसे देश विरोधी अपराध के लिए सजा बढ़ाई जाए. आयोग ने इस कानून के तहत कम से कम तीन और अधिकतम सात साल कैद के साथ ही जुर्माना लगाने का प्रावधान किए जाने का भी प्रस्ताव दिया है.

सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में 22वें विधि आयोग ने कहा है कि राजद्रोह के प्रावधान की व्याख्या करने वाली आईपीसी की धारा-124ए के दुरुपयोग को रोकने के लिए केंद्र सरकार मॉडल गाइडलाइंस जारी करे. आयोग ने अपनी रिपोर्ट कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को सौंपी है. विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने अपनी रिपोर्ट के साथ भेजे पत्र में कुछ प्रावधान जोड़े जाने की भी सिफारिश की है.

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विधि आयोग के चेयरमैन ने अपने पत्र में कहा है कि सीआरपीसी, 1973 की धारा-196(3) के अनुरूप सीआरपीसी की धारा-154 में एक प्रावधान जोड़ा जा सकता है. ये प्रावधान आईपीसी की धारा- 142ए के तहत अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने से पहले जरूरी प्रक्रिया को लेकर सुरक्षा उपलब्ध कराएगा.

दुरुपयोग का आरोप रद्द करने का आधार नहीं हो सकता

विधि आयोग का यह भी कहना है कि किसी प्रावधान के दुरुपयोग का कोई भी आरोप उस प्रावधान को रद्द करने या वापस लेने का आधार नहीं हो सकता. इसके अलावा औपनिवेशिक विरासत होना भी इसे वापस लेने का वैध आधार नहीं है. रिपोर्ट में आयोग का कहना है कि गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम जैसे कानून अपराध के उन सभी तत्वों को कवर नहीं करते जिनका वर्णन आईपीसी की धारा-124 ए में किया गया है.

विधि आयोग ने ये भी कहा है कि हर देश की कानून और न्याय प्रणाली वहां की अल-अलग तरह की स्थानीय वास्तविकताओं से जूझती है और उसी तरह काम भी करती है. ये गलत परिपाटी होगी कि आईपीसी की धारा-124 ए को केवल इस आधार पर निरस्त करना कि कुछ देशों ने ऐसा कदम उठाया है तो हमें भी उठाना चाहिए, सही नहीं है.

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देखादेखी में कानून रद्द करना सच्चाई से मुंह मोड़ना

आयोग ने कहा है कि हमारे देश की सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक  वास्तविकता उन देशों से अलग है. इस कानून को रद्द करने का कदम सिर्फ देखादेखी करते हुए उठाना सच्चाई से मुंह मोड़ने या आंख फेरने जैसा ही होगा. रिपोर्ट के साथ संलग्न पत्र में जस्टिस अवस्थी ने इस बात का भी जिक्र किया है कि धारा-124 ए की संवैधानिकता को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी. तब सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया था कि इस धारा की वस्तुस्थिति और प्रासंगिकता को लेकर सरकार नए सिरे से विचार कर रही है.

अदालत को बर्बाद नहीं करना चाहिए कीमती समय

विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि फिलहाल अदालत को इस पर अपना कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारों को धारा-124 ए के संबंध में जारी जांच स्थगित करने और कोई भी नई प्राथमिकी दर्ज करने, कोई कठोर कदम उठाने से परहेज करने के निर्देश दिए थे. कोर्ट ने राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों के शासन-प्रशासन को ये भी निर्देश दिया था कि सभी लंबित मुकदमे, अपील और कार्यवाही स्थगित रखी जाए.

 

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