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कोलेजियम पर मंत्रियों के बयान से सुप्रीम कोर्ट नाखुश, सरकार से कहा- कंट्रोल करें

सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र को फटकार लगाई है. गुरुवार की सुनवाई के दौरान साफ कहा गया है कि जब तक दूसरा कानून न आए कॉलेजियम सिस्टम ही मानना होगा. बार-बार नाम वापस भेजने वाले चलन पर भी कोर्ट ने सवाल उठाए हैं.

कॉलेजियम सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक कॉलेजियम सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट की दो टूक
संजय शर्मा/अनीषा माथुर/कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 08 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 3:51 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में कॉलेजियम सिस्टम को लेकर लगातार सुनवाई जा रही है. गुरुवार को इस मामले में जब सुनवाई हुई, तब कोर्ट केंद्र से खासा नाराज दिखाई दिया. कोर्ट ने दो टूक कहा कि जब तक कॉलेजियम सिस्टम है तब तक सरकार को भी उसे ही मानना होगा. सरकार इस बाबत अगर कोई कानून बनाना चाहती है तो बनाए. लेकिन कोर्ट के पास उनकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार है. इस बात पर भी जोर दिया गया है कि सरकार में बैठे मंत्रियों को कॉलेजियम सिस्टम पर बयानबाजी करने से बचना चाहिए.

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कोर्ट क्यों हुआ केंद्र से नाराज?

जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सरकार कॉलेजियम की सिफारिशों को दो-दो, तीन-तीन बार वापस पुनर्विचार के लिए भेजती है. जबकि सरकार उस पुनर्विचार के पीछे कोई ठोस वजह भी नहीं बताती. इसका सीधा मतलब तो यही है कि सरकार उनको नियुक्त नहीं करना चाहती. ये सुप्रीम कोर्ट के फैसले की भावना के खिलाफ है. जस्टिस कौल ने कहा कि केंद्र सरकार ने कॉलेजियम के भेजे नामों में से 19 नाम की फाइल वापस भेज दी है. पिंगपॉन्ग का ये बैटल कब सेटल होगा? जब हाई कोर्ट कॉलेजियम ने नाम भेज दिए और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने भी उनको अपनी मंजूरी दे दी तो फिर दिक्कत कहां है? इस पूरी प्रक्रिया में कई कारण और आयाम होते हैं. कुछ नियम हैं. जस्टिस कौल ने कहा कि जब आप कोई कानून बनाते हैं तो हमसे उम्मीद रखते हैं कि उसे माना जाए. वैसे ही जब हम कुछ नियम कानून बनाते हैं तो सरकार को भी उसे मानना चाहिए. अगर हर कोई अपने ही नियम मानने लगेगा तो फिर सब कुछ ठप पड़ जाएगा.

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उन्होंने आगे ये भी कहा कि आप कह रहे हैं कि अब तक मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर यानी एमओपी का मसला भी अटका पड़ा है. उस पर कोई काम आगे नहीं बढ़ा. आप कह रहे हैं कि आपने इस बाबत चिट्ठियां भेजी हैं. हो सकता है सरकार ने कुछ मुद्दों पर नजरिया साफ करने या बदलाव की गरज से लिखापढ़ी की हों. एमओपी में बदलाव या सुधार की बात है, इसका मतलब कोई तो एमओपी है. ऐसा नहीं है कि कोई एमओपी है ही नहीं. एमओपी का मसला तो 2017 में ही निपट गया था. तभी तय हो गया था कि सरकार mop में बदलाव या सुधार के सुझाव दे सकती है. कोर्ट उसमें समुचित सुधार करेगा. कोर्ट के इन तर्कों पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हमें ऐसा नहीं जंचता. कुछ और फाइन ट्यूनिंग होनी जरूरी है. इस पर जस्टिस कौल ने कहा कि सरकार सुझाव दे सकती है लेकिन ये कॉलेजियम के ऊपर है कि वो उसे माने या ना माने. लेकिन हमारी चिंता आपके सुझाव के पैरा 2 को लेकर है. इसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 224 को भी mop का हिस्सा बनाया जाए. लेकिन पिछली सुनवाई में तब के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार के लिए समय मांगा था तो हमने न्यायिक आदेश के जरिए समय दे दिया था. उस आदेश में भी मौजूदा mop का जिक्र है.

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किन मुद्दों पर विवाद, कोर्ट का क्या तर्क?

कोर्ट ने कहा कि इस विवाद को टाला जा सकता है. सरकार इसका उपयुक्त हल निकाले. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि वो सरकार से बात कर किसी सर्वमान्य हल के लिए संभावना तलाशेंगे. इसके बाद उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू आदि का नाम लिए बगैर जस्टिस विक्रम नाथ ने अटॉर्नी जनरल को संबोधित करते हुए कहा कि उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे लोग खुलेआम कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम सिस्टम सही नहीं है. 

जस्टिस कौल ने 19 नाम वापस किए जाने के हवाले से कहा कि सरकार कह रही है कि हमारे पास कोई सिफारिश लंबित नहीं है. क्योंकि 19 नाम सरकार लौटा चुकी है. कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर भी जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक ही नियुक्त किए जाने वाले जजों का वरिष्ठता क्रम निर्धारित होना चाहिए. सभी इस कोर्ट के बनाए कानून का पालन करें जब तक कि कोई और कानून विधायिका न बनाए.

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