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नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर 2 जनवरी को आएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नोटबंदी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इस पर 2 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने जा रहा है. जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस गवई के साथ-साथ जस्टिस एस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नगरत्ना ने इस मामले पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 22 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:36 PM IST

नोटबंदी को चुनौती देते हुए दाखिल की गई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 2 जनवरी को अपना फैसला सुनाएगा. संविधान पीठ के जज जस्टिस बीआर गवई इस मामले पर सभी जजों की एकमत राय के आधार पर फैसला सुनाएंगे.

जस्टिस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ में जस्टिस गवई के साथ साथ जस्टिस एस बोपन्ना, जस्टिस वी राम सुब्रमण्यन और जस्टिस बी वी नगरत्ना ने इस मामले पर सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

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नोटबंदी मामले में संविधान पीठ के सामने हुई सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील पी चिदंबरम ने दलील रखी कि 2016 में सरकार ने हजार और पांच सौ रुपए मूल्य के नोट बंद कर 86.5 फीसदी मुद्रा रद्द कर दी थी. इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आम जनता को उस नकदी की जरूरत ही नहीं थी.

सरकार ने इस युद्ध की योजना जनता को अंधेरे में रखकर बनाई. इतिहास का जिक्र करते हुए चिदंबरम ने कहा कि विमुद्रीकरण के बाद आरबीआई को 17.97 लाख करोड़ की मुद्रा मिलने का हवाला दिया.

चिदंबरम ने कहा कि विमुद्रीकरण यानी नोटबंदी सिर्फ भारतीय रिजर्व बैंक की सिफारिश पर ही की जा सकती है. संविधान और कानून भी रिजर्व बैंक को ही ये अधिकार देता है. इतिहास में 1978 में भी नोटबंदी हुई थी, जिसमें पांच हजार और दस हजार रुपए मूल्य के नोट बंद किए गए थे. तब हजार रुपए के नोट धनवान लोगों के पास भी मुश्किल से मिलते थे.

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1976 में पांच सौ के नोट आए. आज के समय पांच सौ और दो हजार रुपए मूल्य के भी नए नोट शायद ही छप रहे हैं. चिदंबरम ने आरबीआई एक्ट की धारा 26 को लेकर कहा कि दरअसल उनकी समझ से किसी खास मूल्य की मुद्रा की सभी सीरीज को एक साथ बंद करने की इजाजत नहीं दी जाती. किसी सीरीज को बंद करने की इजाजत का मतलब सभी सीरीज बंद करना कतई नहीं है.

उन्होंने आगे कहा कि संसद को कुछ शक्ति अवश्य है, जिसका इस्तेमाल 1946, 1978 और 2016 में हुआ. लेकिन संसद को पिछली सदी में इस बाबत दोनों अवसरों पर कानून पास करने पड़े. क्योंकि धारा 26 सरकार को इसकी शक्ति नहीं देती. नोटबंदी की अधिसूचना संसद से पास कानून के बाद ही हो सकती है.

चिदंबरम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार रिजर्व बैंक की जिस सिफारिश और सलाह की बात करती है उसकी सच्चाई यह है कि रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के दस निदेशकों में से सात के पद तो नोटबंदी के समय खाली पड़े थे. निदेशक भी सरकार ही आरबीआई एक्ट की धारा 8(1)(c) के तहत मनोनीत करती है.

इस मामले में पीठ के नोटिस पर केंद्र सरकार ने पांच नवंबर को हलफनामा दाखिल किया था.
2016 में हुए नोटबंदी मामले में केंद्र सरकार ने नोटबंदी का बचाव करते हुए दाखिल अपने
हलफनामे में कहा था कि जाली मुद्रा और टेरर फंडिंग का मुकाबला करने के लिए ये प्रभावी उपाय है. इसके अलावा ब्लैकमनी, टैक्स चोरी आदि जैसे वित्तीय अपराधों का मुकाबला करने के लिए भी नोटबंदी यानी विमुद्रीकरण प्रभावी उपाय है.

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केंद्र ने हलफनामे में यह भी कहा था कि समस्याओं का अध्ययन करने के बाद केंद्र ने इस प्रभावी उपाय पर सकारात्मक रूप से ध्यान दिया था. केंद्र ने अपने कदम के समर्थन में कहा था कि नोटबंदी का ये फैसला भारतीय रिजर्व बैंक RBI की सिफारिश के बाद लिया गया था.

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