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नई दिल्ली: तलाक-ए-हसन प्रथा संवैधानिक है या नहीं?, 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई

मुस्लिम महिलाओं के तलाक का मामला फिर से सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है. इस बार तलाक-ए-हसन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. याचिकाकर्ता का आरोप है कि यह एकतरफा तलाक की प्रथा है, जो मुस्लिम महिलाओं के सम्मान के साथ जीवन जीने के खिलाफ है. उन्होंने इस प्रथा को रद करने की मांग की है. तलाक-ए-हसन तीन तलाक की एक श्रेणी है. 

मई में दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई से SC ने कर दिया था इनकार (सांकेतिक फोटो) मई में दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई से SC ने कर दिया था इनकार (सांकेतिक फोटो)
अनीषा माथुर
  • नई दिल्ली,
  • 18 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 11:46 AM IST
  • गाजियाबाद की मुस्लिम महिला ने दाखिल की याचिका
  • पति ने 3 बार भेजा तलाक का नोटिस, घर से निकाला

सुप्रीम कोर्ट तलाक-ए-हसन प्रथा के खिलाफ दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. गाजियाबाद की एक मुस्लिम महिला पत्रकार की याचिका पर चार दिन बाद 22 जुलाई को सुनवाई होगी. पति से तलाक का तीसरा नोटिस मिलने बाद महिला ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

इससे पहले 19 अप्रैल को पीड़िता के पति ने तलाक-ए हसन के तहत उसे पहला नोटिस जारी किया था. इसके बाद 20 मई को दूसरा नोटिस भेजा गया. मई में महिला ने इस संबंध में याचिका दाखिल की थी लेकिन तब कोर्ट ने मामले में तुरंत सुनवाई से इनकार कर दिया था. 

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हर धर्म के लोगों के लिए तलाक पर एक नियम

महिला की तरफ से सीनियर एडवोकेट पिंकी आनंद ने सीजेआई एनवी रमणा की बेंच में याचिका दाखिल करते हुए कहा कि महिला बेनजीर हीना को उसके 8 महीने के बेटे के साथ पति ने घर से निकाल दिया गया है. उसे तलाक-ए-हसन प्रथा के तहत तलाक का तीसरा नोटिस भेजा गया है.

बेनजीर ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार से मांग की है कि तलाक पर सभी धर्म के लोगों के लिए एक मजबूत और समान आधार वाली गाडइलाइन तैयार करने के निर्देश दिए जाएं. 

तलाक-ए-हसन प्रथा मनमानी-तर्कहीन

महिला ने अपनी याचिका में मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 और मुस्लिम पर्सनल लॉ शरीयत आवेदन अधिनियम 1937 की वैधानिकता पर भी सवाल उठाए हैं. महिला का तर्क है कि एक तरफा तलाक की प्रथा मनमानी, तर्कहीन और अनुच्छेद 14, 15, 21, 25 के प्रावधानों के खिलाफ है. इसे असंवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए. 

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मुस्लिम महिलाओं के गरिमा के खिलाफ है प्रथा

बेनजीर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि तलाक-ए-हसन प्रथा महिलाओं की गरिमा का घोर अपमान है. यह महिलाओं के समानता के अधिकार और सम्मान के साथ जीवन बिताने के अधिकार के खिलाफ है. इन तर्कों के बाद सीजेआई याचिका पर सुनवाई करने के लिए तैयार हो गए.

बेनजीर का विवाह दिसंबर 2020 में हुआ था. उसका आरोप है कि निकाह के बाद उसे दहेज के लिए ससुरालवालों ने मारा पीटा. शादी के एक साल बाद उसे उसके बच्चे के साथ घर से निकाल दिया.

क्या होता है तलाक-ए हसन

तलाक-ए हसन में पति अपनी पत्नी को पहली बार तलाक बोलने के बाद एक महीने तक इंतजार करता है, फिर महीना पूरा होने पर वो दूसरी बार तलाक बोलता है. एक और महीना गुजर जाने के बाद वो फिर तीसरी बार अपनी पत्नी को तलाक बोलता है. तीन बार तलाक बोलने के दरमियान अगर पति-पत्नी में सुलह नहीं होती है तो तलाक मान लिया जाता है. पहली बार तलाक बोलने से लेकर तीसरी बार तलाक बोलने तक की अवधि में पति-पत्नी दोनों साथ ही रहते हैं.
 

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