
सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में 'इच्छामृत्यु' को मंजूरी दे दी थी. इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने गाइडलाइंस भी जारी की थी. हालांकि, अब भी इच्छामृत्यु की प्रक्रिया बहुत जटिल है. लिहाजा अब सुप्रीम कोर्ट इन गाइडलाइंस में सुधार करने और इसे और सरल बनाने पर सहमत हो गया है.
हालांकि, अदालत ने ये भी कहा कि सरकार को कानून भी बनाना चाहिए, ताकि गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज शांति से मर सकें. जस्टिस केएम जोसेफ, जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस सीटी रविकुमार की पांच जजों की संवैधानिक बेंच इस पर सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट ने 9 मार्च 2018 को 'इच्छामृत्यु' की मंजूरी दी थी. उस समय कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जिस तरह व्यक्ति को जीने का अधिकार है, उसी तरह गरिमा से मरने का अधिकार भी है. कोर्ट ने 'पैसिव यूथेनेशिया' को मंजूरी दी थी. इसमें बीमार व्यक्ति का इलाज बंद कर दिया जाता है, ताकि उसकी मौत हो सके.
ऐसे में जानना जरूरी है कि इच्छामृत्यु को लेकर भारत में क्या नियम-कायदे हैं? कौन इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकता है? लिविंग विल क्या होती है?
इच्छामृत्यु मतलब क्या...?
इच्छामृत्यु का मतलब है किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा से मृत्यु दे देना. इसमें डॉक्टर की मदद से उसके जीवन का अंत किया जाता है, ताकि उसे दर्द से छुटकारा दिलाया जा सके.
इच्छामृत्यु दो तरह से दी जाती है. पहली- एक्टिव यूथेनेशिया यानी सक्रिय इच्छामृत्यु और दूसरी- पैसिव यूथेनेशिया यानी निष्क्रिय इच्छामृत्यु.
एक्टिव यूथेनेशिया में बीमार व्यक्ति को डॉक्टर जहरीली दवा या इंजेक्शन देते हैं, ताकि उसकी मौत हो जाए. वहीं, पैसिव यूथेनेशिया में मरीज को इलाज रोक दिया जाता है, अगर वो वेंटिलेटर पर है तो वहां से हटा दिया जाता है, उसकी दवाएं बंद कर दी जाती हैं. साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पैसिव यूथेनेशिया को ही मंजूरी दी थी.
किनके लिए है इच्छामृत्यु?
इच्छामृत्यु उसी व्यक्ति के लिए है जो किसी ऐसी गंभीर बीमारी से जूझ रहा है, जिसका इलाज संभव न हो और जिंदा रहने में उसे बेहद कष्ट उठाना पड़ रहा हो.
कोई मरीज इच्छामृत्यु के लिए तभी आवेदन कर सकता है, जब उसकी बीमारी असहनीय हो गई हो और उसकी वजह से उसे पीड़ा उठानी पड़ रही हो.
दुनिया के ज्यादातर देशों में यही नियम है. ऐसा नहीं है कि कोई भी व्यक्ति इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर दे. सिर्फ लाइलाज बीमारी से जूझ रहा व्यक्ति ही इच्छामृत्यु के लिए आवेदन कर सकता है.
इच्छामृत्यु के लिए लिखित आवेदन देना होता है. मरीज और उसके परिजनों को इस बारे में पता होना चाहिए. इसे 'लिविंग विल' कहा जाता है.
क्या होता है लिविंग विल?
अगर किसी व्यक्ति को लाइलाज बीमारी हो जाती है और उसके ठीक होने की उम्मीद नहीं बचती, तो ऐसी स्थिति में मरीज इच्छामृत्यु के लिए खुद एक लिखित दस्तावेज देता है, जिसे 'लिविंग विल' कहा जाता है.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार, लिविंग विल की अनुमति तभी दी जा सकती है, जब किसी व्यक्ति को इच्छामृत्यु चाहिए और इसकी जानकारी उसके परिवार को हो.
इसके अलावा अगर डॉक्टरों की टीम कह दे कि मरीज का बच पाना संभव नहीं है तो लिविंग विल दी जा सकती है. हालांकि, किसी मरीज को इच्छामृत्यु देना है या नहीं, इसका फैसला मेडिकल बोर्ड करेगा.
किन बीमारियों पर मिलती है इच्छामृत्यु?
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस में किसी बीमारी का जिक्र नहीं है. अगर डॉक्टर को लगता है कि मरीज के जिंदा बचने की उम्मीद नहीं है, तो मरीज और उसके परिवार की सलाह पर उसे इच्छामृत्यु दी जा सकती है.
हालांकि, ये जरूरी है कि जिस व्यक्ति को इच्छामृत्यु दी जा रही हो, उसे उसके बारे में पता हो.
क्या आत्महत्या करना भी इच्छामृत्यु है?
इच्छामृत्यु और आत्महत्या को जोड़कर देखा जाता है, लेकिन ये दोनों अलग-अलग है. आईपीसी की धारा-309 के तहत आत्महत्या की कोशिश करना अपराध है.
धारा-309 के मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या की कोशिश करता है तो दोषी पाए जाने पर एक साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
हालांकि, मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 की धारा 115 आत्महत्या की कोशिश करने वाले तनाव से जूझ रहे लोगों को इससे राहत देती है. ये धारा कहती है कि अगर ये साबित हो जाता है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाला व्यक्ति बेहद तनाव में था, तो उसे किसी तरह की सजा नहीं दी जा सकती.
वहीं, 2018 में पहले सुप्रीम कोर्ट ने इच्छामृत्यु को मंजूरी दे दी थी. लेकिन इच्छामृत्यु तभी दी जा सकती है, जब मरीज को लाइलाज बीमारी हो और उसका जिंदा बच पाना मुश्किल हो.