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बोलने की आजादी पर कब लग सकता है प्रतिबंध, क्या कहता है देश का कानून?

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि किसी मंत्री, सांसद या विधायक के विवादित बयान को सरकार का बयान नहीं माना जा सकता. इसके साथ ही अदालत ने ये भी कहा कि किसी मंत्री, सांसद या विधायक की बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. संविधान के तहत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मूलभूत अधिकार है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में इस पर पाबंदी लगाई जा सकती है. वो क्या हैं? जानें...

संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Getty Images) संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर भारतीय को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है. (प्रतीकात्मक तस्वीर- Getty Images)
Priyank Dwivedi
  • नई दिल्ली,
  • 04 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 9:31 PM IST

अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने साफ कर दिया कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर ज्यादा पाबंदी नहीं लगाई जा सकती. अदालत ने कहा कि किसी भी आपत्तिजनक बयान के लिए मंत्री को जिम्मेदार माना जाना चाहिए, न कि सरकार को.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि बोलने की आजादी हर नागरिक को मिली है. उस पर संविधान के परे जाकर रोक नहीं लगाई जा सकती. 

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ये पूरा मामला जुलाई 2016 में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के एक विवादित बयान से जुड़ा था. आजम खान उस समय मंत्री थे. उन्होंने बुलंदशहर में हाईवे के पास मां-बेटी के साथ हुए गैंगरेप को 'राजनीतिक साजिश' बताया था.

ये मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के पास गया था. बेंच को तय करना था कि एक मंत्री के दिए बयान के लिए क्या सरकार जिम्मेदार है? मंगलवार को पांच जजों की बेंच ने 4:1 से फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी एक मंत्री के बयान के लिए सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. 

सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया?

इस बेंच में जस्टिस एसए नजीर, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यम, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस बीवी नागरत्ना थीं. 

जस्टिस नजीर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की बोलने की आजादी पर ज्यादा प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. किसी की अभिव्यक्ति की आजादी पर कब प्रतिबंध लगेगा, इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 19(2) में पहले से ही प्रावधान है.

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हालांकि, जस्टिस नागरत्ना की राय अलग थी. उन्होंने इस बात पर सहमति जरूर जताई कि अनुच्छेद 19 के परे जाकर किसी की बोलने की आजादी पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता. 

लेकिन, जस्टिस नागरत्ना ने ये भी कहा कि अगर कोई मंत्री ऐसे बयान देता है तो इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. उन्होंने कहा कि समानता, स्वतंत्रता और भाईचारा हमारे संविधान की प्रस्तावना में निहित मूलभूत मूल्य हैं और 'घृणास्पद बयानबाजी' इन सभी मूल्यों पर हमला करती है.

तो क्या कुछ भी बोला जा सकता है?

1950 में मद्रास सरकार (अब तमिलनाडु) ने वीकली मैग्जीन 'क्रॉस रोड्स' पर प्रतिबंध लगा दिया था. ये मैग्जीन कथित रूप से तत्कालीन नेहरू सरकार की नीतियों की आलोचक थी. इस प्रतिबंध को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए इस प्रतिबंध को हटा दिया. साथ ही ये भी कहा 'राज्य की सुरक्षा' की आड़ में कानून व्यवस्था को सही नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ये प्रतिबंध न सिर्फ असंवैधानिक है, बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी कुछ हद तक प्रतिबंध करता है.

इसके अलावा 1950 में ही एक अंग्रेजी मैग्जीन ऑर्गनाइजर पर भी ऐसा ही प्रतिबंध लगा. तब दिल्ली के चीफ कमिश्नर ने कुछ भी छापने से पहले अनुमति लेने की बात कही. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये आदेश फ्री स्पीच के संवैधानिक आदर्श को प्रभावित करती है, क्योंकि किसी मैग्जीन पर प्री-सेंसरशिप उसकी स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाती है.

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सुप्रीम कोर्ट के ये दोनों फैसले सरकार के खिलाफ थे. इसके बाद 1951 में पहला संवैधानिक संशोधन लाया गया. इसमें अनुच्छेद 19(2) का दायरा बढ़ाया गया और इसमें कहा गया कि अगर 'सार्वजनिक व्यवस्था', 'विदेशों से संबंध खराब होने' या फिर 'हिंसा को बढ़ावा देने' वाली बात कहता या लिखता है तो अभिव्यक्ति की आजादी पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है.

इस संशोधन के बाद 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए राजद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा और कहा कि ये फ्री स्पीच का उल्लंघन है. सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह को इस आधार पर अपराध के रूप में बरकरार रखा कि ये अनुच्छेद 19(2) के तहत 'सार्वजनिक व्यवस्था' और 'राष्ट्रीय सुरक्षा' के तहत प्रतिबंधित है.

19(2) के तहत कब लगती है पाबंदी?

आजादी के बाद जब संविधान बना, तो अनुच्छेद 19 में भारतीय नागरिकों को वो सभी अधिकार दे दिए गए, जिसके लिए उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी थी. संविधान में अनुच्छेद 19 से 22 तक कई सारे अधिकार दिए गए हैं. 

संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) में सभी भारतीय नागरिकों को वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है. अनुच्छेद 19 के सभी अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों को ही मिले हैं. अगर कोई विदेशी नागरिक है तो उसे ये अधिकार नहीं दिए गए हैं.

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वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब है कि एक भारतीय नागरिक लिखकर, बोलकर, छापकर, इशारे सा या किसी भी तरीके से अपने विचारों को व्यक्त कर सकता है. 

लेकिन, अनुच्छेद 19 (2) में उन परिस्थितियों के बारे में भी बताया गया है जब बोलने की आजादी को प्रतिबंधित किया जा सकता है. वो परिस्थितियां हैं-

- भारत की संप्रभुता और अखंडता को खतरा हो.

- राज्य की सुरक्षा को खतरा हो.

- विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध बिगड़ने का खतरा हो. 

- सार्वजनिक व्यवस्था के खराब होने का खतरा हो.

- शिष्टाचार या सदाचार के हित खराब हों.

- अदालत की अवमानना हो.

- किसी की मानहानि हो.

- अपराध को बढ़ावा मिलता हो.

अगर आपकी किसी बात से या शब्द से या इशारे से इन सभी परिस्थितियों में से किसी एक का भी खतरा होता है तो बोलने की आजादी को प्रतिबंधित किया जा सकता है. 

इसे ऐसे समझिए कि अगर किसी व्यक्ति की बात से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा होता हो या देशद्रोह का मामला बनता हो तो उस मामले में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हवाला नहीं दिया जा सकता.

 

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