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'सेम सेक्स मैरिज' पर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- फैसले में कोई खामी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है. इसके अलावा कोर्ट ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार की मांग करने वाली समीक्षा याचिकाएं (Review Petitions) भी खारिज कर दी हैं.

सुप्रीम कोर्ट  (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
नलिनी शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 09 जनवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:37 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह के मामले में दिए गए फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है. इसके अलावा कोर्ट ने फैसले के खिलाफ पुनर्विचार की मांग करने वाली समीक्षा याचिकाएं भी खारिज कर दी हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में कोई खामी नहीं दिखाई देती और फैसले में व्यक्त किए गए विचार कानून के अनुसार हैं और इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप उचित नहीं है.  जस्टिस बीआर गवई, सूर्यकांत, बीवी नागरत्ना, पीएस नरसिम्हा और दीपांकर दत्ता की बेंच चैंबर ने यह फैसला सुनाया.

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पिछले साल जुलाई में याचिकाकर्ताओं ने इस मामले में जनहित को ध्यान में रखते हुए खुली अदालत में सुनवाई की मांग की थी.जस्टिस एसके कौल, एस रवींद्र भट, चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस कोहली के सेवानिवृत्त होने के बाद नई बेंच का पुनर्गठन करना पड़ा. जस्टिस संजीव खन्ना, जो अब चीफ जस्टिस हैं, ने पिछले साल खुद को इससे अलग कर लिया था.

यह भी पढ़ें: समलैंगिक जोड़े साथ रह सकते हैं, माता-पिता इसमें 'हस्तक्षेप' न करें: आंध्र प्रदेश HC

2023 में दिया था कोर्ट ने यह फैसला

पिछले  दरअसल सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 17 अक्तूबर, 2023 को दिए अपने निर्णय में दो टूक कहा था कि हम समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं दे सकते हैं. क्योंकि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को सामाजिक और क़ानूनी अधिकार देने के लिए पैनल का गठन करने के सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में कोई त्रुटि नहीं दिखाई देती और फैसले में व्यक्त किए गए विचार कानून के अनुसार हैं और इसमें किसी तरह का हस्तक्षेप उचित नहीं है. तब 5 जजों की बेंच में भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस संजय किशन कौल ने समलैंगिक साझेदारियों को मान्यता देने की वकालत की थी. उन्होंने यह भी कहा था कि LGBTQIA+ जोड़ों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए भेदभाव-विरोधी कानून बनाना जरूरी है.

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