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महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में संवेदनशील रहें अदालतें: सुप्रीम कोर्ट

यह फैसला मृत पति और उसकी मां यानी पीड़िता की सास द्वारा दायर अपीलों पर आया है. दोनों को अपराध के लिए 302 (हत्या) और 498 ए (एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता) के तहत लिए दोषी ठहराया गया था और उन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 4:11 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ क्रूर व्यवहार करने के दोषी ठहराए जाने के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया. महिला की जहर देने के कारण मौत हो गई थी. अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों से महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में संवेदनशील होने की उम्मीद की जाती है.

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न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा, "उम्मीद है कि अदालतें अपराधियों को प्रक्रियात्मक तकनीकीताओं, अपर्याप्त जांच या सबूतों में महत्वहीन कमियों के कारण भागने की अनुमति नहीं देंगी, अन्यथा आरोपियों को सजा नहीं मिलने से पीड़ित पूरी तरह से से हतोत्साहित हो जाएंगे. महिलाओं के खिलाफ अपराध से जुड़े मामलों में अदालतों से संवेदनशील होने की उम्मीद की जाती है."

यह फैसला मृत पति और उसकी मां यानी पीड़िता की सास द्वारा दायर अपीलों पर आया है. दोनों को अपराध के लिए 302 (हत्या) और 498 ए (एक विवाहित महिला के साथ क्रूरता) के तहत लिए दोषी ठहराया गया था और उन्होंने उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 

सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, "ऐसी परिस्थितियों में अदालतों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है और यह उम्मीद की जाती है कि अदालतें ऐसे मामलों से अधिक यथार्थवादी तरीके से निपटेंगी और अपराधियों को प्रक्रियात्मक तकनीकीताओं, निष्क्रिय जांच या साक्ष्य में महत्वहीन कमियों के कारण बचने की अनुमति नहीं देंगी. अन्यथा अपराधियों को प्रोत्साहन मिलेगा और अपराध के पीड़ित सजा न मिलने से पूरी तरह हतोत्साहित हो जाएंगे." 

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विस्तृत फैसले में, पीठ ने पति द्वारा बताई गई आत्महत्या की थ्योरी को खारिज कर दिया और कहा, "हम आत्महत्या की थ्योरी को पूरी तरह से खारिज करते हैं जैसा कि अपीलकर्ताओं की ओर से पेश करने की मांग की गई थी. हम इस तथ्य पर ध्यान देते हैं कि अपीलकर्ता-दोषी (पति) ने किसी भी तरह से यह नहीं बताया है कि वास्तव में उसकी पत्नी के साथ क्या हुआ था, खासकर जब यह विवाद में नहीं है कि अपीलकर्ता-दोषी अपनी पत्नी के साथ था, वह है मृतक." हालांकि, पीठ ने पीड़िता की सास की सजा को घटाकर पहले ही पूरी की जा चुकी अवधि तक कर दिया.

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