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किला-राजमहल और हीरे-जवाहारात, संपत्ति पर हक के लिए बच्चों को लड़ना पड़ा 30 साल, SC ने सुनाया फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने फरीदकोट के महाराजा हरिंदर सिंह की संपत्ति से जुड़े 30 साल पुराने एक विवाद का पटाक्षेप कर दिया है. पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के एक आदेश को बरकरार रखते हुए देश की सर्वोच्च अदालत ने 20 से 25 हजार करोड़ रुपये की इस संपत्ति पर उनकी बेटियों के हक को मान लिया है.

सुप्रीम कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर) सुप्रीम कोर्ट (सांकेतिक तस्वीर)
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:37 PM IST

एक राजा की संपत्ति का विवाद, जिसकी संपत्ति में किला और महल, दिल्ली-शिमला में कई इमारतें, सैकड़ों एकड़ जमीन, बड़ा बैंक बैलेंस, सोना-चांदी और हीरे-जवाहारात सब शामिल हैं. कीमत भी इतनी करीब 20 से 25 हजार करोड़ रुपये की बैठे. लेकिन इस पूरी संपत्ति में औलाद को कुछ नहीं मिल पाना, और फिर एक 30 साल लंबी कानूनी लड़ाई, जिसका आज सुप्रीम कोर्ट में पटाक्षेप हो गया. 

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जी हां, यहां बात हो रही है फरीदकोट के महाराजा हरिंदर सिंह की. सुप्रीम कोर्ट ने उनकी 'वसीयत' से जुड़े एक विवाद के मामले में बुधवार को अपना फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट ने 30 साल लंबी लड़ाई को खत्म करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है. हाईकोर्ट ने महाराजा हरिंदर सिंह की शाही संपत्ति में उनकी बेटियों के हक को मान्यता दी थी और अमृत कौर और दीपिंदर कौर को इसका बड़ा हिस्सा दिया था.

बता दें कि करीब महीनेभर पहले ही जस्टिस यू.यू. ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की तीन सदस्यीय बेंच ने इस मामले में दोनों पक्षों की दलील और वसीयतनामा इत्यादि की जांच कर फैसला सुरक्षित रख लिया था. आज इसे सुना भी दिया गया.

दरअसल इस मामले में महाराजा हरिंदर सिंह की संपत्ति पर महारावल खेवाजी ट्रस्ट ने अपना अधिकार बनाया हुआ था. ट्रस्ट के पास ही ये संपत्ति थी और वही इसकी देखभाल कर रहा था. महारावल खेवाजी ट्रस्ट का कहना है कि महाराजा हरिंदर सिंह की एक वसीयत के मुताबिक इस संपत्ति पर उसका अधिकार है. लेकिन महाराजा की जीवित बची दो बेटियों ने इस अधिकार को चुनौती दी और अपनी दावेदारी पेश की. उनका तर्क रहा कि महाराज की संपत्ति में काफी सारी पैतृक संपत्ति भी रही है. 

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जब ये मामला अदालत पहुंचा तो 2013 में ही चंडीगढ़ जिला अदालत ने इस वसीयत को अवैध बताकर संपत्ति बेटियों को दे दी थी. लेकिन ट्रस्ट ने इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी. 2020 में वहां भी जिला अदालत के फैसले को बरकरार रखा गया. इसे ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां दोनों बहनों की जीत हुई.

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