
अग्रिम जमानत के आदेश को सुरक्षित रखकर एक साल तक फैसला न देने और फिर खुद को मामले से अलग कर लेने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगा है. जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले पर आश्चर्य जताते हुए कहा कि हम इस बात से बेहद हैरान हैं कि अग्रिम जमानत की मांग वाली याचिका पर आदेश एक साल तक कैसे लंबित रखा जा सकता है? इतना ही नहीं उन्होंने बाद में अपना फैसला सुनाने से पहले खुद को अलग भी कैसे कर लिया?
सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को इस मामले पर 8 जनवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है. इसमें पटना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार को मामले से जुड़े घटनाक्रम की जानकारी कोर्ट को विस्तृत रूप में देनी है.
फैसला सुनाने से पहले खुद को अलग किया
दरअसल, 2017 के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में राजंती देवी की दाखिल अग्रिम जमानत याचिका पर पटना हाई कोर्ट के जज जस्टिस संदीप कुमार ने सुनवाई की थी. उन्होंने याचिका पर 7 अप्रैल 2022 को आदेश सुरक्षित रख लिया था, लेकिन इसके लगभग एक साल बाद चार अप्रैल को फैसला सुनाने से पहले खुद को मामले से अलग कर लिया.
जमानत के लिए हाई कोर्ट पहुंची थी पीड़िता
यह मामला 2017 के मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हुआ था, जिसमें राजंती देवी जो कि प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) का सदस्य होने के आरोपी संदीप यादव की पत्नी हैं. उन्होंने अपनी अग्रिम जमानत की मांग करते हुए पटना हाई कोर्ट मे याचिका दाखिल की थी. बाद में राजंती देवी की याचिका को दूसरी बेंच ने खारिज भी कर दिया था.