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7 साल के बच्चे की हत्या के दोषी की डेथ पेनल्टी पर SC ने लगाई रोक

न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की विशेष पीठ ने पिछले सप्ताह इस मृत्युदंड पर रोक लगा दी थी. मिटिगेशन रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराध के समय आरोपी की आयु मात्र 23 वर्ष थी और वर्तमान में वह 37 वर्ष का है.

Supreme Court (File Photo) Supreme Court (File Photo)
कनु सारदा
  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2024,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में सात साल के बच्चे की नृशंस हत्या के लिए सुखजिंदर सिंह उर्फ ​​सुखा की मौत की सजा पर रोक लगा दी है. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस साल अगस्त में सुखजिंदर को मौत की सजा सुनाई थी.

न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की विशेष पीठ ने पिछले सप्ताह इस मृत्युदंड पर रोक लगा दी थी. मिटिगेशन रिपोर्ट में कहा गया था कि अपराध के समय आरोपी की आयु मात्र 23 वर्ष थी और वर्तमान में वह 37 वर्ष का है.

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शीर्ष अदालत ने 16 सप्ताह के बाद सुनवाई निर्धारित करते हुए पंजाब को प्रोबेशन ऑफिसर की रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. साथ ही पंजाब के अमृतसर में स्थित केंद्रीय जेल के जेल अधीक्षक को निर्देश दिया है कि वे जेल में रहते हुए अपीलकर्ता के किए गए काम की प्रकृति के संबंध में एक रिपोर्ट दायर करें. रिपोर्ट में अपीलकर्ता के जेल में रहते हुए किये गये आचरण और व्यवहार के संबंध में बताने के लिये भी कहा गया है. ये रिपोर्ट 8 हफ्ते के अंदर प्रस्तुत करनी है.

'हमेशा तनाव में रहता था याचिकाकर्ता'

शीर्ष अदालत ने चंडीगढ़ के स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के चीफ को अपीलकर्ता का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन करने के लिये टीम गठित करने का भी निर्देश दिया है. दरअसल, याचिकाकर्ता हमेशा अत्यधिक मानसिक तनाव में रहता था और उसने आत्महत्या करने का भी प्रयास किया था.

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सुधार की संभावनाओं पर नहीं किया विचार

कोर्ट ने कहा कि जेल अधिकारियों ने हाई कोर्ट के मृत्युदंड की पुष्टि से पहले कभी कोई मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की. हाई कोर्ट के सबसे कठोर सजा सुनाते समय वर्तमान मामले में कम करने वाले साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किए गए, बुलाए नहीं गए, उल्लेख नहीं किए गए, विश्लेषण नहीं किए गए या लागू नहीं किए गए. सुधार की संभावनाओं का भी मूल्यांकन नहीं किया गया या उन्हें कम करने वाली परिस्थितियों के रूप में नहीं माना गया. जेल अधिकारियों ने हाई कोर्ट के मृत्युदंड की पुष्टि से पहले सुधारात्मक प्रगति को प्रमाणित करने वाली और दोषसिद्धि के बाद मानसिक बीमारी का खुलासा करने वाली एक नई मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट सहित अनिवार्य रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की.

फिरौती मिलने के बाद भी कर दी हत्या!

हाईकोर्ट ने मृत्युदंड की पुष्टि करते हुए कहा कि लड़का अपनी एक बहन के अलावा अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था. उसके अपहरण की घटना ने पूरे शहर और आस-पास के इलाकों में सनसनी फैला दी थी. दोषी पिता से फिरौती वसूलने में सफल रहा. इसके बाद भी उसने नाबालिग लड़के की हत्या कर दी.

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