
देश के विभिन्न हिस्सों में बाघ अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यान और संरक्षित वन्य क्षेत्रों के कोर एरिया या बिलकुल आंतरिक संवेदनशील क्षेत्रों में किसी भी किस्म का निर्माण करने से सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है. बुधवार को इस मामले की सुनाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों की राय में भी कोर एरियाज में चिड़ियाघर यानी जू बनाने या टाइगर सफारी शुरू करने की योजना कतई उचित नहीं है.
पीठ ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण यानी एनटीसीए को कहा कि वो सफारी और जू स्थापित करने की बाबत अपने विचार, सुझाव, आपत्ति यानी मंतव्य दाखिल करें. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ऐसी योजनाओं के नाम पर संरक्षित वन्य क्षेत्रों, अभयारण और नेशनल पार्क में कथित अवैध तौर पर हो रहे निर्माण और हस्तक्षेप रोकने को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
पीठ को कोर्ट की ओर से नियुक्त की गई केंद्रीय वैधानिक अधिकृत समिति यानी सेंट्रल इंपावर्ड कमेटी (सीआईसी) की रिपोर्ट भी सौंपी गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्रीय वन पर्यावरण मंत्रालय अपनी गाइडलाइंस में या तो संशोधन करे या फिर वापस ले जिसमें बाघ अभयारण्य या संरक्षित वन्य क्षेत्र में जहां बाघ और जंगली जानवर अमूमन नहीं दिखते, वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के मकसद से टाइगर सफारी और जू यानी चिड़ियाघर स्थापित करने की परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया था. इसके तहत वहां निर्माण भी किए जाने की योजना पर काम होना था.
परियोजना वापस लेने की रिपोर्ट पर पीठ ने भी कहा कि वो भी टाइगर रिजर्व और नेशनल पार्क के कोर एरिया में इस परियोजना के पक्ष में कतई नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस परियोजना के तहत वन्य जीवन के प्रति अत्यंत संवेदनशील माने जाने वाले कोर एरिया और इसके आसपास जू, सफारी, होटल, अतिथिगृह आदि बनवाने से बाघ संरक्षण के लिए किए जा रहे उपायों पर नकारात्मक असर पड़ेगा. ये ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी चीजों से जानवरों के नैसर्गिक पर्यावास और जीवन चक्र, प्रजनन पर कोई खराब असर नहीं पड़े.