
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लिव-इन पार्टनर, समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी कानून के तहत सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में सरकार ने कहा कि ऐसे कपल को सरोगेसी की इजाजत देना इस एक्ट के दुरुपयोग को बढ़ावा देगा. साथ ही किराए की कोख से जन्मे बच्चे के उज्ज्वल भविष्य को लेकर भी आशंका बनी रहेगी. केंद्र ने यह भी बताया कि राष्ट्रीय बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्यों ने 19 जनवरी को अपनी बैठक में राय दी थी कि अधिनियम (एस) के तहत परिभाषित "युगल" की परिभाषा सही है. इस अधिनियम के तहत समलैंगिक जोड़ों को सेवाओं का लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
दरअसल कोर्ट ने 23 जनवरी को केंद्र को नोटिस जारी किया था. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को निर्देश दिया था कि वह याचिका की कॉपी एएसजी ऐश्वर्या भाटी के कार्यालय को उपलब्ध कराए. अविवाहित महिला ने एक याचिका दाखिल कर सरोगेसी कानून, 2021 के उस प्रावधान को चुनौती दी है, जिसमें अविवाहित महिलाओं को ‘इच्छुक महिला’ की परिभाषा के दायरे से बाहर रखा गया है. ऐसा होने से याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के जरिये संतान का विकल्प खत्म हो जाता है.
सवालों के घेरे में आ जाएगी बच्चे की सुरक्षा
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि यह भी ध्यान देने योग्य है कि एकल माता-पिता को तीसरे पक्ष से अंडाणु जनित कोशिका और शुक्राणु के लिए दाता की आवश्यकता होती है, जो बाद में कानूनी जटिलताओं और हिरासत के मुद्दों को जन्म दे सकती है. इसके अलावा, लिव-इन पार्टनर कानून से बंधे नहीं हैं और सरोगेसी के जरिए पैदा हुए बच्चे की सुरक्षा सवालों के घेरे में आ जाएगी.
लिव-इन और सेम-सेक्स कपल्स के संबंधों को डिक्रिमिनलाइज किया
केंद्र ने कहा कि संसदीय समिति ने अपनी 129वीं रिपोर्ट में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (एआरटी) अधिनियम, 2021 के दायरे में लिव-इन जोड़ों और समलैंगिक जोड़ों को शामिल करने के मुद्दे पर विचार किया कि भले ही लिव-इन कपल्स और सेम-सेक्स कपल्स के बीच संबंधों को कोर्ट ने डिक्रिमिनलाइज कर दिया है, हालांकि, उन्हें वैध नहीं किया गया है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों और लिव-इन संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, हालांकि समलैंगिक/लिव-इन जोड़ों के संबंध में न तो कोई विशेष प्रावधान पेश किए गए हैं और न ही उन्हें कोई अतिरिक्त अधिकार दिया गया है.
याचिका में कहा गया कि इस कानून के तहत इच्छुक महिलाओं में भारतीय महिलाएं शामिल हैं, जो 35 से 45 वर्ष की आयु के बीच विधवा या तलाकशुदा हैं और जो सरोगेसी का लाभ उठाने का इरादा रखती हैं. वह महिला सरोगेसी से संतान चाहने वाले जोड़े से जेनिटक रूप से जुड़ी हुई होनी चाहिए. इन सारी शर्तों के साथ किसी महिला को सरोगेसी के लिए खोजना काफी मुश्किल काम है. दोनों कानूनों के प्रावधान संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लंघन करते हैं.