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'राज्यपालों की दया पर निर्भर रह गए हैं MLA', सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना पर सुनवाई के दौरान तुषार मेहता और दुष्यंत दवे के बीच जोरदार बहस

राज्यपाल और विपक्ष शासित राज्यों में टकराव की कड़ी में तेलंगाना का मामला चर्चा में हैं. जहां सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान तेलंगाना सरकार के वकील ने कहा कि चुने हुए विधायक राज्यपालों की दया पर निर्भर रह गए हैं. इस मामले में शीर्ष अदालत की टिप्पणी भी सधी मगर स्पष्ट संदेश देने वाली है.

तेलंगाना में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव. तेलंगाना में राज्यपाल और सरकार के बीच टकराव.
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2023,
  • अपडेटेड 1:00 PM IST

तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन और सीएम के चंद्रशेखर राव के बीच संवैधानिक टकराव टॉप लेवल पर पहुंच गया है. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं सुनने को मिलीं. सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की डीवाई चंद्रचूंड की बेंच में सुनवाई के दौरान तेलंगाना सरकार ने कहा कि चुने हुए जन प्रतिनिधि अब राज्यपाल के दया पर निर्भर रह गए हैं. 

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दरअसल तेलंगाना सरकार राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. केसीआर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि राज्यपाल उन 10 बिलों को मंजूरी दे जिसे राज्य की विधानसभा पास कर चुकी है लेकिन ये बिल गवर्नर के दफ्तर में अटके पड़े हैं. सोमवार को इसी मामले में सु्प्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी.  

हालांकि इस मामले में राज्यपाल के ऑफिस ने कहा कि उनके पास राज्य सरकार का कोई बिल पेंडिंग नहीं है.  सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ को सूचित किया कि उन्हें राज्यपाल के सचिव से एक संदेश मिला है और कहा गया है कि "अब हमारे पास कोई विधेयक लंबित नहीं है".

क्या थी तेलंगाना सरकार की याचिका

अपनी याचिका में तेलंगाना सरकार ने कहा था कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कई विधेयकों पर राज्यपाल के इनकार के कारण बने "संवैधानिक गतिरोध" के मद्देनजर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत का रुख करने के लिए विवश थी. 

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विधायक राज्यपालों की दया पर निर्भर रह गए हैं

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश होते हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि चुने हुए विधायक राज्यपालों की दया पर निर्भर रह गए हैं. उन्होंने कहा कि अदालत को इस मामले को एक बार हमेशा के लिए निपटा देना चाहिए. 

जब दुष्यंत दवे ने कहा कि ऐसा सिर्फ विपक्षी शासित राज्यों में हो रहा है तो तुषार मेहता ने कहा कि वे इस मुद्दे का इस तरह से सामान्यीकरण (Generalise)नहीं करेंगे. 

संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लेख 

वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने संविधान के अनुच्छेद 200 का उल्लेख किया, जो विधेयकों को सहमति देने से संबंधित है और कहता है कि जब कोई विधेयक विधान सभा द्वारा पारित किया गया है, अगर किसी राज्य में विधान परिषद भी है तो विधायिका के दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया है, तो यह राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा. फिर राज्यपाल या तो विधेयक पर अपनी सहमति देंगे, या फिर सहमति नहीं देंगे या फिर राज्यपाल विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखेंगे. 

इस मामले में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल से मिली जानकारियों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपरोक्त तथ्यात्मक स्थिति के मद्देनजर, हम इस स्तर पर याचिका में उठाए गए मुद्दे के मेरिट में नहीं  जा रहे हैं. 

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सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे ने अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान का जिक्र किया जो इस प्रकार है "... बशर्ते कि राज्यपाल, सहमति के लिए बिल मिलने के बाद जितनी जल्दी हो सके, बिल वापस कर सकते हैं, अगर यह धन विधेयक नहीं है, साथ ही यह भी अनुरोध कर सकते हैं कि एक सदन अथवा दोनों सदन बिल या बिल के किसी  विशेष प्रावधान पर पुनर्विचार करें..."

तुषार मेहता ने बेंच से अनुरोध किया कि वो अपने ऑर्डर में अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान का वर्णन न करें.  

'अदालत के सामने चिल्लाने से मदद नहीं मिलेगी'

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल और दवे के बीच बहस की नौबत आ गई जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत के सामने चिल्लाने से मदद नहीं मिलेगी. 

अदालत ने अपने आदेश में अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान का ध्यान रखा और कहा कि 'जितनी जल्दी हो सके' शब्द का एक महत्वपूर्ण संवैधानिक उद्देश्य है. इसे संवैधानिक पदाधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए.

जब मेहता ने कहा कि यह टिप्पणी जरूरी नहीं है तो पीठ ने कहा की, ''हमने इस केस के बारे में कुछ नहीं कहा है."

बीजेपी शासित राज्यों में जल्दी मिल जाती है बिलों को मंजूरी

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इससे पहले दुष्यं दवे ने शीर्ष अदालत को बताया था कि मध्य प्रदेश में राज्यपाल सात दिनों के भीतर विधेयकों को मंजूरी दे देते हैं जबकि गुजरात में एक महीने के भीतर विधेयकों को मंजूरी दे दी जाती है. 

गौरतलब है मध्य प्रदेश और गुजरात दोनों पर भारतीय जनता पार्टी का शासन है, जो केंद्र में भी सत्ता में है.

सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को तेलंगाना सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था. अदालत ने स्पष्ट किया था कि वह राज्यपाल के कार्यालय को नोटिस जारी नहीं करेगी, लेकिन राज्य सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार का जवाब देखना चाहेगी.


 

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