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'सिर्फ इसलिए कि महिला पढ़ी-लिखी है...', के कविता की जमानत पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

कोर्ट ने यह देखते हुए के कविता को जमानत दी कि मामले की सुनवाई खत्म होने में लंबा समय लगेगा. इसी तरह की टिप्पणी कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत देते समय की थी.

बीआरएस नेता के कविता को जमानत मिली बीआरएस नेता के कविता को जमानत मिली
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 27 अगस्त 2024,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कथित दिल्ली शराब नीति घोटाले से जुड़े ईडी और सीबीआई दोनों मामलों में भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) नेता के कविता को जमानत दे दी. आप नेता मनीषा सिसौदिया और संजय सिंह के बाद इस मामले में जमानत पाने वाली वह तीसरी हाई-प्रोफाइल नेता हैं.

कोर्ट ने यह देखते हुए के कविता को जमानत दी कि मामले की सुनवाई खत्म होने में लंबा समय लगेगा. इसी तरह की टिप्पणी कोर्ट ने मनीष सिसोदिया को जमानत देते समय की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि के कविता PMLA की धारा 45 के तहत महिलाओं के लिए उपलब्ध लाभकारी उपचार की हकदार हैं.

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पांच महीने से तिहाड़ जेल में बंद कविता को ईडी ने 15 मार्च को हैदराबाद में भारी ड्रामे के बीच गिरफ्तार किया था. इसके बाद 11 अप्रैल को सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया.

'रिश्वत की लेन-देन में शामिल थी के कविता'

जांच एजेंसी ने दावा किया है कि तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर की बेटी कविता दिल्ली उत्पाद शुल्क नीति के संबंध में रिश्वत की लेन-देन और धन के शोधन में शामिल थीं.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें-

वह (के कविता) 5 महीने से सलाखों के पीछे हैं. फिलहाल यह मुकदमा खत्म होता नहीं दिख रहा. तो कोर्ट ने माना कि विचाराधीन कैदी की हिरासत को सजा में नहीं बदलना चाहिए.

कविता PMLA की धारा 45 के तहत महिलाओं के लिए उपलब्ध लाभकारी उपचार की हकदार हैं. पीएमएलए के तहत आरोपी महिलाओं के प्रति अदालतों को अधिक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण होने की जरूरत है.

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अदालतों को ऐसे मामलों पर निर्णय करते समय न्यायिक विवेक का प्रयोग करना चाहिए. अदालत यह नहीं कहती है कि केवल इसलिए कि एक महिला अच्छी तरह से शिक्षित या परिष्कृत (Sophisticated) है या सांसद या विधायक है तो पीएमएलए अधिनियम की धारा 45 के प्रावधान के लाभ की हकदार नहीं है.

अगर दिल्ली हाई कोर्ट के इस आदेश को कानून बनने दिया गया तो इन विकृत टिप्पणियों का मतलब होगा कि कोई भी शिक्षित महिला जमानत नहीं पा सकेगी. इसके विपरीत, हम कहते हैं कि अदालतों को एक सांसद और एक आम व्यक्ति के बीच अंतर नहीं करना चाहिए, लेकिन यहां (हाई कोर्ट) एक कृत्रिम विवेकाधिकार पा रहा है जो कानून में नहीं है.

SC ने कहा, अभियोजन निष्पक्ष होना चाहिए. खुद को दोषी ठहराने वाले व्यक्ति को गवाह बना दिया गया है. कल आप अपनी इच्छानुसार किसी को भी उठा लेंगे? आप किसी भी आरोपी को चुन-चुन कर नहीं सकते.

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