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मलेरिया के लिए जिन-टॉनिक तो फ्लू के लिए व्हिस्की, जब दवा के तौर पर इस्तेमाल हुई 'दारू'!

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक वक्त था जब शराब की अलग-अलग किस्म का प्रयोग दवाई के रूप में किया जाता था. इंसानी इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनमें बीमारियों के इलाज और बेहतर सेहत के लिए शराब का इस्तेमाल होता रहा है. आइए जानते हैं कब और कैसे शराब का इस्तेमाल बीमारियों को दूर करने के लिए किया गया.

Alcohol used as medicines (Representational Image) Alcohol used as medicines (Representational Image)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 21 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:45 PM IST

शराब पीना सेहत के लिए घातक है, यह एक स्वीकार्य तथ्य है. WHO की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल दुनिया भर में इसकी वजह से 30 लाख जानें जाती हैं. मौत की वजहों में शराब जनित रोगों से लेकर सड़क दुर्घटनाएं तक शामिल हैं. हालांकि, इंसानी इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है, जिनमें बीमारियों के इलाज और बेहतर सेहत के लिए शराब का इस्तेमाल होता रहा. फिर चाहे पेट दर्द हो, कब्ज या फिर फ्लू और मलेरिया जैसी उस दौर की महामारियां, शराब हर मर्ज की दवा बनती रही. जैसे-जैसे लोग यह समझते गए कि यह सिर्फ दवा ही नहीं, 'दारू' भी है,  दुनिया शराब के बुरे असर में घिरती गई. तो आइए जानते हैं ऐसा कब-कब हुआ, जब शराब इंसान के लिए वरदान बन गई 

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हजारों साल पुराना इतिहास 
प्राचीन मिस्र और चीन में शराब के दवा के तौर पर इस्तेमाल के सबसे शुरुआती उदाहरण मिलते हैं. ब्रिटिश वेबसाइट टेलिग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, प्राचीन मिस्र के लोग शराब को औषधीय गुण देने के लिए उसमें कई तरह की जड़ी-बूटियां मिलाते थे. गजब की बात ये है कि ऐसा ईसा से 3100 साल पहले हो रहा था. वहीं, 460 से 370 ईसा पूर्व के बीच हुए यूनानी विद्वान हिप्पोक्रेटिस ने लिखा "Wine is an appropriate article for mankind, both for the healthy body and for the ailing man.''दुनियाभर के एलोपैथी डॉक्टर क्षेत्र में उतरने से पहले इनके नाम पर ही शपथ लेते हैं, जिसे हिप्पोक्रेटिक ओथ (hippocratic oath) कहते हैं. प्राचीन वक्त में जड़ी बूटी मिली एल्कॉहल का इस्तेमाल अस्थमा, कफ, कब्ज से लेकर पीलिया तक के इलाज में हो रहा था. 

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मलेरिया और जिन एंड टॉनिक 
17वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी जब भारत पर कब्जा करने के लिए पहुंची तो यहां मलेरिया जैसी बीमारी पांव पसारे बैठी हुई थी. दवा के तौर पर कुनैन की खोज हो चुकी थी. कुनैन, जो टॉनिक वॉटर को फ्लेवर देने वाला एक रसायन होता है. इसका स्वाद बेहद कड़वा होता था, इसलिए अंग्रेजों को इसे जबान पर रखना नहीं सुहाता था. इसलिए अंग्रेज कुनैन की जगह टॉनिक वॉटर इस्तेमाल करने लगे. धीरे-धीरे यह कॉकटेल अंग्रेजों के लिए एक 'हेल्दी ड्रिंक' बन गई. गुजरते वक्त के साथ इससे हजारों ब्रिटिश सैनिकों की जान बची. ब्रिटिश पीएम विंस्टन चर्चिल ने एक बार कहा था, 'जिन एंड टॉनिक ने ब्रिटिश सल्तनत के सभी डॉक्टरों की तुलना में ज्यादा अंग्रेजों की जानें बचाई हैं.'

बुखार, मलेरिया के लिए एबसिंथ 
एबसिंथ (absinthe) एक प्रकार की शराब है, जिसकी ज्यादा मात्रा इंसान को हैंगओवर दे सकती है. हालांकि, कभी इसका सेवन पेट के कीड़ों को मारने के लिए किया जाता था. हिप्पोक्रेटिस भी माहवारी की पीड़ा, पीलिया, एनीमिया आदि के लिए इसे इस्तेमाल करने का सुझाव देते थे. वहीं, जब 19वीं शताब्दी में जब हजारों फ्रेंच सैनिक उत्तरी अफ्रीका पहुंचे तो उन्होंने एबसिंथ को बनाने में इस्तेमाल वॉर्मवुड (wormwood) को बुखार, मलेरिया, दस्त आदि के दवा के तौर पर लिया. जब ये सैनिक वापस लौटे तो पूरा फ्रांस इस हरे रंग की शराब का दीवाना हो गया. 

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स्पेनिश फ्लू और व्हिस्की 
1918 में भारत समेत पूरी दुनिया स्पेनिश फ्लू महामारी की चपेट में आ गई थी. कहते हैं कि इसकी वजह से 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई. ये वो दौर था, जब किसी तरह के एंटिबायोटिक्स या अच्छी दवाएं नहीं थीं. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस वक्त डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ और मरीज, सभी ने इस महामारी से लड़ने के लिए व्हिस्की का सेवन किया. उस वक्त के साइंटिस्ट और डॉक्टर फ्लू के मरीजों को व्हिस्की पीने की सलाह देते है. इससे मरीजों को बेचैनी से तात्कालिक राहत मिलती थी.  

जुकाम का इलाज ब्रांडी! 
आज भी कई बड़े बुजुर्ग जुकाम और कफ के इलाज पर ब्रांडी की चंद घूंट लेने की सलाह देते हैं. बरसों से यह नुस्खा मशहूर है. हालांकि, 19वीं शताब्दी के आखिर और 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ब्रांडी का इस्तेमाल कार्डियक स्टिमुलेंट के तौर पर होता रहा . कहते हैं कि अंटार्कटिका की साहसिक खोज के दौरान ब्रांडी का इस्तेमाल दवा के तौर पर होता रहा. 1960 के दशक में भी ब्रांडी चेतना शून्य करने वाली दवा  (anaesthetic medicines) थी.

 

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