
चॉकलेट में ट्रिप्टोफेन होता है. ये एक तरह का अमीनो एसिड है, जो ब्रेन तक पहुंचकर सेरोटोनिन पैदा करता है. यानी फील-गुड केमिकल. यही वजह है कि कैसा भी मूड हो, चॉकलेट खाने के बाद थोड़ा तो सुधरता ही है. यहां तक कि इसे दर्दनिवारक की तरह भी देखा जाता है. आज दुनियाभर में लोग चॉकलेट डे मना रहे हैं, लेकिन हजारों साल पहले अपने कच्चे फॉर्म में भी चॉकलेट खूब पसंद की जाती थी. आज की चॉकलेट का छोटा बार भी उस समय गोल्ड जितना कीमती हुआ करता था.
वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के मानव विज्ञानी और माया सभ्यता के जानकार डेविड डेनियल ने दावा किया था कि उस समय में कोकोआ बीन्स किसी करेंसी से कम नहीं थीं. शुरुआत में ये बार्टर सिस्टम के तहत काम करतीं. जैसे कोई सामान लेने के लिए बदले में कोकोआ बीन्स दे देना. बाद में 16वीं सदी के दौरान यूरोपियन मालिक खुश होने पर अपने गुलामों को ये बीन्स देने लगे ताकि बदले में वे अपनी मनपसंद चीज खरीद सकें.
क्या है माया सभ्यता?
माया सभ्यता वर्तमान मैक्सिको और सेंट्रल अमेरिका की एक महत्वपूर्ण सभ्यता थी, जिसकी शुरुआत 1500 ईस्वी पूर्व से मानी जाती है. इसमें बीच के समय को क्लासिक पीरियड कहा जाता है, जिसमें सभ्यता का विकास चरम पर था. इस दौरान ज्योतिष, खगोल, गणित और व्यापार में भी बढ़त होने लगी. मैक्सिको इसका केंद्र था और ग्वाटेमाला, होंडुरास और यूकाटन में भी ये सभ्यता फैली हुई थी.
मिले कोकोआ के उपयोग के प्रमाण
सिन्धु घाटी और मिस्र की सभ्यताओं की तरह ही इस सभ्यता की भी बहुत सी अनसुलझी बातें हैं, जिनपर एंथ्रोपोलॉजिस्ट काम कर रहे हैं. इसी क्रम में ये पता लगा कि उस दौरान भी चॉकलेट के कच्चे माल यानी कोकोआ बीन्स का भरपूर उपयोग होता था. मैक्सिको में मिले म्यूरल्स, सिरेमिक पेंटिंग और नक्काशियों में इस बात के प्रमाण दिखे.
खुशी और यौन ताकत से था संबंध
माया के समय में लोग चॉकलेट को बार या कैंडी की तरह नहीं खाते थे, बल्कि पीते थे. आमतौर पर ये सूप या शोरबे के रूप में होता. इसे चीनी मिट्टी के बर्तन में डालकर गर्म या गुनगुना पिया जाता. इस सूप को यौन ताकत बढ़ाने वाला माना जाता था. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसे आज चॉकलेट को हैप्पीनेस से जोड़ा जाता है. कोकोआ बीन्स से बना पेय तब एफ्रोडिजिएक फूड की श्रेणी में आता. मतलब खाने की वो चीज, जिससे यौन इच्छा या ताकत बढ़ती है. हालांकि इस समय तक भी कोकोआ करेंसी की तरह काम नहीं आती थी.
नवजात बच्चों के सिर पर फूलों के साथ मिलाकर कोकोआ बीन्स का लेप लगाया जाता ताकि उसकी खुशबू से बच्चे की सारी इंद्रियां खुल जाएं. ये खुशबू से बच्चे का पहला परिचय होता. बड़े पारिवारिक मौकों पर भी इसे पवित्र और कीमती चीज की तरह केंद्र में रखा जाता. आम ढंग से समझें तो माया सिविलाइजेशन के दौरान कोकोआ का वही महत्व था, जो हमारे लिए हल्दी का है.
महलों से सड़कों तक का सफर
क्लासिक पीरियड में धीरे-धीरे इसकी अहमियत बढ़ी. एंथ्रोपोलॉजिस्ट्स ने उस काल की ऐसी 180 तस्वीरें खोज निकालीं, जिसमें कहीं न कहीं कोकोआ बीन्स का उपयोग दिख रहा है. टैक्स के तौर पर धीरे-धीरे महलों में कोकोआ बीन्स इतना बढ़ गया कि राजपरिवार अपने इस्तेमाल के बाद बची बीन्स को दरबारियों और बाकियों को बांटने लगा. यहीं से मार्केट में इसे करेंसी की तरह देखा जाने लगा. ये कीमती चीज थी, जो राजमहलों से आई थी. इस तरह से चेन चल पड़ी और बीन्स आम-खास हर जगह दिखने लगी.
इस हद तक जा पहुंची बात
कम पैसे वाले लोग सब छोड़कर कोकोआ बीन्स के एग्रीकल्चर में जुट गए. इससे बाकी पैदावार पर असर होने लगा. यहां तक कि माया के समय ही एक ऐसा दौर आया, जब प्राइवेट तरीके से इसकी पैदावार पर रोक लगा दी गई. आगे चलकर नेटिव अमेरिकन्स चोरी-छिपे इसे उगाने लगे. तब लोग चतुर होने लगे थे. बाजार में नकली-असल का काम भी चल निकला था. तब बहुत से लोग बीन्स के भीतर छेद करके उसका सारा रस निकाल देते और अंदर कुछ और डालकर पैक करके वापस बेचने लगे. इसकी कालाबाजारी होने लगी. बहुत से लोग कोकोआ बीन्स को भंडार घरों में या तहखानों में छिपाते. भनक लगने पर राजा इन्हें सीज करवा लेता. वक्त के साथ ये खुमारी घटी. लड़ाइयों का दौर शुरू हुआ और बहुत से मसाले भी दुनिया में पहुंचने लगे. तब जाकर इसका क्रेज कुछ कम हो सका.
आगे चलकर बहुत कुछ बदला. तरल से चॉकलेट सीरप और फिर ठोस रूप में आई. हर देश ने इसके फ्लेवर और टेक्शचर के साथ प्रयोग किया. लेकिन कुल मिलाकर चॉकलेट बच्चों से लेकर बड़ों तक में उतनी ही खास बनी रही.