
वैसे तो फ्रोजन फूड का इतिहास पुराना है, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के समय इसका चलन बढ़ा. वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान सभी बड़े देश आपस में गुत्थमगुत्था थे. ऐसे में सप्लाई चेन टूटने लगी, जिसका सीधा असर उन देशों पर पड़ा, जो खाने की बहुत सी चीजों के लिए दूसरे देश पर निर्भर थे. इसके अलावा एक नई चीज ये हुई कि टिन की भी राशनिंग होने लगी. ये कंट्रोल इसलिए हो रहा था ताकि टिन में युद्ध का सामान एक से दूसरी जगह सुरक्षित ले जाया जा सके.
तब फ्रिज आ चुका था और इतनी कीमत नहीं थी कि बड़ी दुकानें इसे खरीद न सकें. तो तब के लगभग सारे बड़े स्टोर अपने यहां फ्रीजर में फ्रोजन सामान रखने और बेचने लगे. ये सस्ता तो था ही, खाने में भी खास फर्क नहीं था. यहीं से लोगों को फ्रोजन खाने का चस्का लग गया. जंग खत्म होने के बाद फ्रिज की कीमतें घटीं और लोग फ्रोजन आइटम खरीदकर घरों में रखने लगे.
इतना बड़ा है फ्रोजन का बाजार
अब फ्रोजन का बाजार इतना बड़ा है कि आम लोग अंदाजा भी न लगा सकें. साल 2021 में ग्लोबल फ्रोजन फूड मार्केट की वैल्यू 170 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा मानी गई. माना जा रहा है कि साल 2030 तक इसमें लगभग 6 प्रतिशत की बढ़त ही होगी. अकेले भारत में ही साल 2021 में 12 सौ मिलियन डॉलर से ज्यादा कीमत वाले फ्रोजन खाने की खपत हुई. ग्रांड व्यू रिसर्च की ये रिपोर्ट यह भी कहती है कि पहले सिर्फ डिनर के समय फ्रोजन खाने का चलन था, जब लोग दिनभर के काम से थके होते. अब नाश्ते और लंच में भी फ्रोजन का कब्जा बढ़ रहा है.
सोडियम इनटेक बढ़ता है
इस तरह से ताजी सब्जियों या ताजा खाने की जगह लंबे समय तक पैक रहने वाले फ्रोजन ने ले ली. अब सेहत पर काम करने वाली कई संस्थाएं फ्रोजन को थाली से हटाने की बात कर रही हैं. सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक फ्रोजन खाना पसंद करने वाले हर शख्स के शरीर में लगभग 70% सोडियम फ्रोजन या प्रोसेस्ड खाने से आता है. साथ ही इसमें दूसरी तरह से प्रिजर्वेटिव भी होते हैं, ताकि खाना लंबे समय तक टिक जाए. ये खाने में किसी तरह के बैक्टीरिया-फंगल को पनपने से तो रोकता है, लेकिन खाने की अपनी क्वालिटी बहुत कम हो जाती है.
अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन के मुताबिक एक वक्त के औसत फ्रोजन मील में लगभग 925 मिलीग्राम सोडियम होता है. ये मात्रा हमारी रोज की नमक की जरूरत का लगभग 40वां हिस्सा है. ये सिर्फ एक वक्त का खाना है. इसके अलावा बाकी भोजन और नाश्ते में हम अलग से नमक लेंगे. यानी सोडियम ज्यादा ही जाएगा. हाई सोडियम लेना यानी हाई ब्लड प्रेशर.
दिल की सेहत के लिए भी खतरनाक
इनमें ट्रांस फैट होता है, जो आर्टरीज में जमा होकर रुकावट लाता है. इस फैट से गुड कोलेस्ट्रॉल कम होता है, यानी बैड कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना. ये सब मिलकर कई तरह की हार्ट डिसीज पैदा करते हैं.
फ्रोजन फूड पर हुई कई स्टडीज कैंसर के खतरे पर बात करती हैं
अगर आपके खाने में 10% हिस्सा फ्रोजन फूड का है तो खासकर पैंक्रिएटिक कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. ब्रिटेन में हुआ ये अध्ययन नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित हुआ. हालांकि एक्सपर्ट मान रहे हैं कि फ्रोजन पर अभी स्टडी की शुरुआत ही हुई है.
हमारी लापरवाही भी करती है नुकसान
बिना मौसम के मटर या साग, या फिर प्रोटीन से भरपूर कोई फ्रोजन आइटम मंगवाकर ये मत सोचिएगा कि ये पोषण से भरपूर हैं. लंबे समय तक टिक सकें, इसके लिए खाने में कई तरह के प्रिजर्वेटिव मिलाए जाते हैं. इसके बाद उन्हें फ्रीज किया जाता है. इस प्रक्रिया में पोषण वैल्यू बहुत कम हो जाती है. कई बार इसमें हमारा भी हाथ रहता है. जैसे बाजार से फ्रोजन आइटम लाने के बाद हम उसे ठीक से फ्रीज नहीं करते या पैकेट खोलने के बाद लंबे-लंबे अंतराल पर इस्तेमाल करते हैं, इससे भी पोषण चला जाता है. अब ये सिर्फ खाने का एक सामान है, जिससे पेट तो भरेगा लेकिन पोषण नहीं मिलेगा.