
हम जब थिएटर में फिल्म देखने जाते हैं तो अक्सर वहां बैठे स्वादिष्ट पॉपकॉर्न खाने का मन करता है. लोग हाथों में पॉपकॉर्न के टब लिए सीटों पर अडजस्ट होते नजर आ ही जाते हैं. बाजार में मुख्यत: दो तरह के पॉपकॉर्न उपलब्ध हैं. एक वो जो दिखने में गोल होता है और दूसरा फूल की तरह खिले दिखने वाले पॉपकॉर्न. मूवी थिएटर में फूल वाले पॉपकॉर्न ज्यादा बेचे जाते हैं क्योंकि माना जाता है कि ये खाने में ज्यादा स्वादिष्ट होते हैं. अब सवाल यह उठता है कि जब दुनिया में इतना कुछ खाने को है, ऐसे में थिएटरों में फिल्म देखने के दौरान पॉपकॉर्न खाने का यह कल्चर आया कहां से? इतिहास के पन्नों में झांकें तो कभी इसी पॉपकॉर्न ने सिनेमाघरों का अस्तित्व बचाया था. अमेरिका में 19 जनवरी को नैशनल पॉपकॉर्न डे मनाया जाता है. इसलिए जानते हैं पॉपकॉर्न के थिएटरों में पहुंचने की पूरी कहानी.
जब बनी पहली पॉपकॉर्न मशीन
चार्ल्स क्रेटर्स (Charles Creators) ने 1885 में पहली बिजनेस पॉपकॉर्न मशीन का आविष्कार किया था. इस मशीन में स्टीम इंजन हुआ करता था जिसके साथ मूंगफली से भरी हुई कार्ट जुड़ी होती है. इस मशीन से बटर वाले स्वादिष्ट पॉपकॉर्न बनते थे. इसी समय (F.W Ruceckheim) ने एक और पॉपकॉर्न मशीन बनाई जो कैरेमल पॉपकॉर्न बनाती थी. इससे बनने वाले पॉपकॉर्न का स्वाद तो बढ़िया था लेकिन यह बहुत चिपचिपे हुआ करते थे जिस कारण यह मशीन ठप्प पड़ गई. हालांकि Ruceckheim ने हार नहीं मानी और कैरेमल पॉपकॉर्न को डिब्बे में पैक करके बेचना शुरू कर दिया. 1896 में Cracker Jack नाम से यह पॉपकॉर्न बाजार में खूब बिके और लोगों को काफी पसंद भी आए. इन दोनों मशीन की वजह से पॉपकॉर्न पूरे अमेरिका में पसंद किया जाना लगा और इसे काफी लोकप्रियता मिली.
जब सिनेमाघरों पर आया संकट
1920 तक अमेरिका में सड़कों के किनारे, पार्क, ईवेंट, बार समेत हर जगह लोग पॉपकॉर्न खरीदकर खाने लगे. ऐसी कोई जगह नहीं थीं, जहां पॉपकॉर्न नहीं खाया जा रहा हो, हालांकि अभी तक पॉपकॉर्न ने थिएटर का दरवाजा नहीं खटखटाया था. इस वक्त तक थिएटर में कहीं भी स्नैक के तौर पर पॉपकॉर्न नहीं मिलता था. फिर 1920 के दौरान निकेलोडियन ने ऐसी चीज बनाई जिसकी मदद से हम घर के अंदर कहीं भी मोशन पिक्चर देख सकते थे जिसे (Indoor Exhibition Space) कहते हैं. लोगों को यह काफी पसंद आया और धीरे-धीरे प्रचलित होने लगा, जिसके चलते थिएटर के बिजनेस पर मंदी छाने लगी. कॉम्पिटिशन को देखते हुए मूवी थिएटर के मालिक ने थिएटर को नया रूप देने का सोचा जो लोगों के घरों से बेहतर हो. कुछ समय में ही मूवी थिएटर को काफी आलीशान बना दिया गया ताकि लोग घर में प्रोजेक्शन से फिल्म देखने के बजाए मूवी थिएटर का एक्सपीरिएंस पसंद करें. आम दिखने वाले थिएटर में बड़ी-बड़ी लॉबी, झूमर, डिकोरेशन का सामान नजर आने लगा.
जब थिएटरों के दरवाजों तक पहुंचा पॉपकॉर्न
किसी महल जैसे दिखने वाले थिएटरों को बनाने वाले इनके मालिक यहां किसी भी तरह की गंदगी नहीं चाहते थे. इस वजह से थिएटरों में किसी भी तरह के खान पान की व्यवस्था नहीं थी. धीरे-धीरे समय बीता और थिएटर में लोगों की लम्बी लाइन लगना शुरू हो गई. इसकी एक वजह थी फिल्म की साउंड क्वालिटी में सुधार और दूसरा चमकते आलीशान थिएटर. इस दौरान थिएटर को काफी अच्छा खासा मुनाफा हो रहा था लेकिन 1929 में अमेरिका में आर्थिक मंदी का ऐसा मोड़ आया कि हंसते-खेलते मुनाफा कमाते थिएटर में ताले लगने शुरू हो गए. लोगों की तालियों से गूंज रहे थिएटर शांत पड़ गए. इस खराब स्थिति में हर कोई नुकसान झेल रहा था लेकिन कुछ ऐसे लोग भी थे जिनके चेहरे पर ऐसे समय में भी मुस्कान थी क्योंकि उनको बचाए रखा था छोटे से पॉपकॉर्न ने. थिएटर के बाहर प़ॉपकॉर्न बेच रहे लोग थिएटर से ज्यादा मुनाफा कमाने लगे. स्टॉक मार्केट में इन्वेस्ट करने वाले लोग, बड़े बिजनेस मैन से लेकर बैंक में काम करने वाले लोगों तक ने मंदी में पॉपकॉर्न बेचा और उम्मीद से ज्यादा मुनाफा कमाया. दरअसल, पॉपकॉर्न स्वादिष्ट होने के साथ-साथ काफी सस्ता भी था. जो भी थिएटर में जाता था वे स्नैक्स में खाने के लिए थिएटर के बाहर से प़ॉपकॉर्न खरीदता और अपने कपड़ों में छुपाकर ले जाता था.
थिएटरों के लिए मुनाफे का सौदा बना पॉपकॉर्न
थिएटरों के बाहर पॉपकॉर्न बेचकर मुनाफा कमाने वाले इन लोगों में शामिल यह शख्स और था, जिनका नाम था Kammons Wilson. विल्सन मशहूर होटल चेन Holiday Inn के संस्थापक भी रहे हैं. Kammons Wilson के घर में पैसों की तंगी थी जिस कारण उन्होंने 17 साल की उमर में अपनी पढ़ाई छोड़कर परिवार के लिए कुछ कर कमाने का फैसला लिया और उन्होंने थिएटर के बाहर पॉपकॉर्न का ठेला लगा लिय़ा. करीबन 50 डॉलर में उन्होंने पॉपकॉर्न की मशीन खरीदी और धीरे-धीरे वह बंपर मुनाफा कमाने लगे. कुछ ही समय में Kammons की कमाई हफ्ते भर में 50 डॉलर पहुंच गई और थिएटर की सिर्फ 25. इसको देखते हुए नुकसान में जा रहे थिएटर के मालिक ने Kammons की दुकान को वहां से हटाकर खुद की पॉपकॉर्न की दुकान लगा ली. यह बात Kammons को इतनी चुभी कि उन्होंने अपनी मां से एक वादा किया- 'मैं अपने लिए एक मूवी थियेटर लेने जा रहा हूं ताकि कोई भी मेरी पॉपकॉर्न मशीन को मुझसे दूर नहीं ले जा सके.'' Kammons ने हौसला रखा और कुछ नया अलग करने की खोज में निकल पड़े. मजबूत इरादे वाले Kammons ने यह करके भी दिखाया. जब उन्होंने Holiday Inn की स्थापना की, उसी वक्त उन्होंने इस थिएटर को खरीद डाला जिससे उन्हें निकाला गया था.
थिएटरों के अंदर ऐसे पहुंचा पॉपकॉर्न
R.J Mekkena वो शख्स है, जिनकी बदौलत ही आज हमें थिएटर में बैठे-बैठे पॉपकॉर्न का स्वाद लेने को मिलता है. Mekkena ने पॉपकॉर्न की रेहड़ी को थिएटर के अंदर लगाना शुरू किया. यह चीज लोगों को बहुत पसंद आईऔर उनका दिन प्रतिदिन मुनाफा बढ़ता गया. 1938 तक थिएटरों ने पॉपकॉर्न से लाखों डॉलर का मुनाफा कमाया. इस वक्त तक भी छोटे थिएटर ही प़ॉपकॉर्न बेच रहे थे. बड़े, आलीशान और फैंसी थिएटर दिन पे दिन घाटे में जा रहे थे और छोटे-छोटे थिएटर अच्छे खासे पैसे कमा रहे थे. लेकिन स्थिति खराब होने से पहले ही फैंसी थिएटरों ने भी इस स्कीम को अपना लिया. आज थिएटरों में पॉपकॉर्न के बिना मूवी देखना अधूरा लगता है. गुजरते वक्त के साथ डिमांड इतनी बढ़ी कि धीरे-धीरे पॉपकॉर्न के दाम बढ़ने लग गए लेकिन लोगों ने इन्हें खाना नहीं छोड़ा. आज थिएटरों में पॉपकॉर्न के दाम आसमान छूते हैं, लेकिन लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता बदस्तूर कायम है.
पॉपकॉर्न का इतिहास हजारों साल पुराना!
पॉपकॉर्न के सबसे पुराने सबूत 1948 और 1950 में पश्चिमी मध्य न्यू मैक्सिको की 4000 साल पुरानी बैट गुफा में पाए गए थे. यहां काफी छोटे आकार में लगभग 2 इंच तक के पॉपकॉर्न के सबूत मिले. हालांकि पॉपकॉर्न 16 वीं शताब्दी में एज़्टेक इंडियन सभ्यता के समारोहों में भी देखा गया. यहां लड़कियां गले में मोटे मक्के की माला पहनकर डांस किया करती थीं, जिसे पॉपकॉर्न डांस कहते थे. उस दौरान पॉपकॉर्न एज्टेक इंडियंस के मुख्य भोजन में शामिल होता था. वेे इसे खाते भी थे और अपने भगवान को अर्पित भी करते थे. एज्टेक इंडियन देवताओं के सम्मान में सेलिब्रेशन किया करते थे, जिसमें वे मूर्ति के सामने मकई के दाने बिखेर देते थे. सूखने के बाद यह दाने फटने लगते थे और एक सफेद फूल का आकार ले लेते थे, यानी कि पॉपकॉर्न जैसा. इस फूल को लोगों ने जल देवता पर चढ़ाना शुरू किया और इस तरह यह भगवान का फूल कहलाए जाने लगा.