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हिस्ट्री भी, केमिस्ट्री भी... ‘चखना’ यूं ही नहीं बना शराब का साथी, पढ़ें-पूरी कहानी

शराब के साथ खाई जानेवाली चीजों को चखना कहा जाता है. अमीर हो या गरीब, सभी के लिए उसकी हैसियत के हिसाब से चखने की एक पूरी रेंज उपलब्ध है.चने से लेकर चिली चिकन तक, सब कुछ चखना है. शराब के साथ चखना खाते तो आपने कई लोगों को देखा होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कैसे इसकी शुरुआत हुई?

कैसे हुई चखने की शुरुआत (Representational Image) कैसे हुई चखने की शुरुआत (Representational Image)
अभिषेक भट्टाचार्य
  • नई दिल्ली,
  • 21 फरवरी 2023,
  • अपडेटेड 11:10 AM IST

'चखना' कुछ के लिए शराब की कड़वाहट भुलाने की मजबूरी है तो बहुत सारे लोगों के लिए पीने के आनंद को कई गुना बढ़ाने का जरिया. वे दुर्लभ लोग ही होंगे, जो इसके बिना शराब पीने की कल्पना करते होंगे. यहां पीने का ककहरा सिखाने वाले भी अपने जूनियरों की सेहत के लिए फिक्रमंद होते ज्ञान देते हैं कि 'बिना चखने के दारू नहीं पीते.' चखना वो बहाना भी है, जिसके लालच में न पीने वाले भी शराबियों की महफिल का हिस्सा बन जाते हैं. हालांकि, समझदार इन 'चखना किलर्स' को महफिल से दूर रखना ही मुनासिब समझते हैं. इससे ज्यादा चखने की अहमियत समझनी हो तो किसी शराब पीने वाले से पूछ लीजिएगा. हमारे देश में, जहां अधिकतर लोग शराब को हाथ महज इसलिए हाथ लगाते हैं ताकि नशा जल्द से जल्द हो जाए, वहां पीने की प्रक्रिया को 'उत्सव' में बदल देने वाला यह चखना आखिर कैसे भारतीय मदिरापान संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया? आइए, समझते हैं. 

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क्या है चखना 
चखना यानी शराब के साथ खाई जा सकने वाली कोई भी चीज. इस शब्द का इस्तेमाल मुख्य तौर पर उत्तर और मध्य भारत में किया जाता है. अमीर हो या गरीब, सभी के लिए उसकी हैसियत के हिसाब से चखने की एक पूरी रेंज उपलब्ध है. पीने के शास्त्रीय परंपरा के वाहक खीरा, प्याज, टमाटर, दाल फ्राई, पापड़, मूंगफली की संगत ढूंढते हैं. वहीं, बीतते वक्त के साथ चखने के मेन्यू में आधुनिक मेक्सिकन नाचोस से लेकर जापानी वसाबी तक शामिल हो चुके हैं. पीने वाले की हैसियत के हिसाब से चखना कुछ भी हो सकता है. मूंगफली, मसाला मूंगफली, प्याज-टमाटर के साथ मूंगफली, पापड़, मसाला पापड़, फ्राइड पापड़, रोस्टेड पापड़, दालमोठ, भुजिया, चकली, चिप्स, फ्रायम, मूंग दाल, चने की दाल, हरे मटर की दाल, चिवड़ा, मठरी, भाकरवड़ी, टिक्का, कबाब, तंदूरी चिकन, चिकन लॉलीपॉप ...., लिस्ट बहुत लंबी है. संक्षेप में कहें तो चने से लेकर चिली चिकन तक, सब कुछ चखना है. इसमें रंग, सुगंध, करारापन, तीखापन, खट्टापन, मीठापन सब कुछ शुमार है. फिर चाहे गुजराती भाकड़वड़ी हो या कर्नाटक का कोडुबले, चखने के मेन्यू में सभी राज्यों का योगदान है. कहना गलत नहीं होगा कि चखने में भी भारत की सांस्कृतिक विविधता की झलक देखने को मिलती है.  

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दुनिया में 'चखना' 
बहुत सारे पश्चिमी मुल्कों में लोग शराब के साथ ज्यादा कुछ खाना पसंद नहीं करते. अंग्रेजी शब्दावली में चखना का सबसे नजदीकी पर्यायवाची है बार स्नैक्स (Bar Snacks). इसके अलावा, इसे munchies या nibbles या cocktail snacks के नाम से भी पुकारा जाता है. स्पेनिश में इसे तापास (tapas) कहते हैं.  स्पेन में शराब के साथ छोटी-छोटी प्लेट्स में खाने-पीने की कई चीजों को भी परोसा जाता है. फ्राईड चीजें, मसालेदार, सलाद, सैंडविच या कुछ भी दूसरा. भारत की तरह स्पेन में भी शराब के साथ ढेर सारा खाना पूरी तरह से स्वीकार्य है. इन तापास बारों में ड्रिंक आर्डर कीजिए तो साथ में टॉरटिलाज़ (tortillas), ब्रेड और चोरिज़ो (chorizo), एनकोवी फिश (anchovies), बेकन (Bacon) या चीज़ कुछ दूसरी चीज खाने को जरूर मिलेगी. वहीं, मेक्सिकन रेस्तरां भी शराब के साथ चखने के तौर पर चिप्स और सालसा परोसते हैं.

स्पेन में चखने में शामिल होती हैं ब्रेड, फिश जैसी चीजें

चखने की व्यवसायिक शुरुआत  
शराब पीने के साथ कुछ खाने की परंपरा सदियों पुरानी है. हालांकि, खान-पान के इतिहास पर नजदीक से नजर रखने वाले 19वीं शताब्दी की एक घटना को चखने के व्यवसायीकरण का मुख्य कारण मानते हैं. बात 1838 की है. कहा जाता है कि अमेरिकी शहर न्यू ऑरलियंस के एक बार ला बोरसे डि मास्पेरो ने पहली बार ग्राहकों को 'फ्री लंच' का तोहफा दिया. यहां ड्रिंक ऑर्डर करने वाले हर शख्स को मुफ्त में एक प्लेट खाना मिलता था. मकसद ग्राहकों को और शराब पीने के लिए लुभाना था. मुफ्त खाने की लालच में लोग ऐसे दुकानों पर जुटने लगे. 

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हालांकि, इसके कुछ वक्त बाद, कनाडा, अमेरिका, नॉर्वे जैसे देशों में शराबबंदी के पक्ष में एक सामाजिक अभियान चला, जिसे The Temperance movement के तौर पर जाना जाता है.  इन आंदोलनों का ही असर था कि शराब बिक्री को हतोत्साहित करने के लिए नियम कायदे बनने लगे. ऐसा ही एक नियम 19वीं शताब्दी के आखिर में न्यू यॉर्क में बना. अब वही होटल रविवार को शराब परोस सकते थे, जिनके यहां कम से कम 10 कमरे हों और जो ड्रिंक्स के साथ मुफ्त खाने-पीने की चीजें देते हों. रविवार को ऐसी बंदिश इसलिए क्योंकि तत्कालीन समाज के लोग 6 दिन की कड़ी मेहनत के बाद रविवार को थकान उतारने के लिए शराब की दुकानों का रुख करते थे. इस नियम का असर यह हुआ कि छोटे-छोटे बार भी नियमों के तहत शराब बेचने के लिए घटिया क्वॉलिटी का खाना परोसने लगे. हालांकि, शराब के साथ खाना अब लोगों की पीने की आदत का हिस्सा बनने लगा. 

भारत में चखने ने यूं जमाई जड़ें 
भारत में शराब बंदी की अधिकतर मुहिम आजादी के बाद ही चलाई गईं. अंग्रेजी शासन ने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं क्योंकि यह शराब की बिक्री की उसकी आय का बड़ा जरिया थी. हालांकि, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में तत्कालीन बॉम्बे में मेहनतकश मिल वर्करों की एक बड़ी आबादी तैयार हो रही थी, जो दिन भर की जीतोड़ मेहनत की थकान शाम को शराब के जरिए उतारती थी. नशा करने वाले बढ़ने लगे तो अमेरिका जैसी बंदिशें भारत में भी आ गईं. असर भी वैसा ही रहा. शराब के साथ खाना परोसने की बाध्यता के बाद इसका व्यवसाय करने वालों ने बेहद सस्ती और कभी-कभी घटिया चीजें परोसने लगे. इनमें घोड़ों को खिलाए जाने वाले चने, उबले अंडे से लेकर मूंगफली तक शामिल थी. खराब स्तर के खाने-पीने की चीजें परोसे जाने की शिकायतें भी हुईं. ऐसी कई खबरें उस दौर के अखबारों का हिस्सा बनीं. 

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फिर आजाद भारत और 1950 के दौर में लागू शराब बंदी ने एक और बड़ा बदलाव किया. शराब बंदी लागू तो हुई लेकिन शराब की दुकानें गुपचुप ढंग से चलने लगीं. बंबई के उस दौर के बारे में तब के अखबारों में बहुत कुछ लिखा गया है. इसके मुताबिक, बंबई में शराब की दुकान ढूंढने का सबसे आसान तरीका था, खुले में चने और उबले अंडे बेच रहे दुकानों को ढूंढना. अगर कोई कबाब या मीट बेच रहा हो तो समझ जाइए कि आसपास कोई बड़ा और शानदार ठेका जरूर मौजूद था. चने, मूंगफली, उबले अंडे बेचने वाले इन दुकानों की दोहरी जिम्मेदारी थी. एक, इन शराब की दुकानों का अघोषित साइनबोर्ड बनना और दूसरा पीने वालों के लिए खान-पान की सप्लाई बरकरार रखना. देखा जाए, तो आज भी शराब की दुकान के आसपास कुकुरमुत्ते की तरह मौजूद चखना के कई दुकान वही काम कर रहे हैं. फिर 70 का दशक आया, जब कुछ बेहतर बार मुफ्त में चने और चटनी जैसी चीजें देने लगे. खाने-पीने की चीजें शराब बेचने वालों की आय का अतिरिक्त स्रोत बनने लगीं और 90 का दशक आते-आते ग्रिल्ड चिकन और चायनीज तक चखना मेन्यू का हिस्सा बन गया.  

भारतीय चखना संस्कृति का यूं हिस्सा बनी मूंगफली
अगर उबले अंडे से किसी का मुकाबला था, तो उस दौर में महाराष्ट्र में बहुतायत में मिलने वाली मूंगफली. यह न केवल सस्ती थी, बल्कि बी9 जैसे विटामिन का स्रोत. देखा जाए तो इतनी कम कीमत पर इतना पौष्टिक होने ने ही मूंगफली को भारतीय समाज का सबसे स्वीकार्य चखना बना दिया. आज बार-पब से लेकर देसी ठेकों तक पर पीने वालों की यह पहली पसंद है. हालांकि, शराब के साथ मूंगफली परोसे जाने का पूरा विज्ञान है. मूंगफली खाने वालों को प्यास जल्दी लगती है. अगर मूंगफली में नमक हो तो बाकी काम उससे हो जाता है. दरअसल, नमक पानी सोखता है और जब आप मूंगफली खाते हैं तो यह मुंह और गले की नमी को सोखकर इसे सूखा बनाता है. फिर आपको प्यास लगती है और आप एक घूंट और पीते हैं. यह प्रक्रिया चलती रहती है और आप अपनी क्षमता से काफी ज्यादा पी जाते हैं.  

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 मूंगफली बनी भारतीय समाज का सबसे स्वीकार्य चखना (Photo: Sharaabi By Nature Facebook)

चखना खाने की तलब क्यों, क्या कहते हैं साइंटिस्ट 
शराब पीते वक्त कुछ खाने की तेज तलब होने को वैज्ञानिकों ने द एपरिटिफ इफेक्ट (the aperitif effect) बताया है. पीने के बाद दिमाग के हाइपोथैलेमस (hypothalamus) में कुछ बदलाव होते हैं, जिसके बाद खाने की महक पहले के मुकाबले ज्यादा लुभावनी लगती है. शराब लेपटीन नामक होर्मोन के असर को कम करता है. यह हार्मोन ही भूख की भावना को दबाने के लिए जिम्मेदार होता है. शराब पीने का अनुभव वाला कोई भी शख्स इस बात की तस्दीक कर सकता है कि कुछ घूंट के बाद सामान्य स्वाद वाली नमकीन मूंगफली भी और ज्यादा स्वादिष्ट लगने लगती है. शरीर का आंतरिक सिस्टम सामान्य अवस्था में पेट भरते ही दिमाग को सिग्नल भेजता है कि और खाने की जरूरत नहीं है. हालांकि, शराब के असर की वजह से शारीरिक जरूरत पूरी होने के बावजूद दिमाग को यही महसूस होता है कि अभी और खाने की जरूरत है.  एक अन्य वैज्ञानिक व्याख्या है कि एल्कॉहल की वजह से ब्लड शुगर की मात्रा घट सकती है, जिसकी वजह से पीने वाले शख्स को और खाने की तलब जगती है. स्टडीज में यह सामने आ चुका है कि खाने के पहले शराब पीना हो या फिर खाने के साथ, लोग अपेक्षाकृत ज्यादा खाते ही हैं. 

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चखना और सेहत 
कुछ साल पहले आई एक स्टडी में दावा किया गया कि शराब का सेवन अनहेल्दी स्नैक्स खाने के लिए प्रेरित कर सकता है. इसके मुताबिक, शराब पीने के बाद लोगों का चिप्स का पूरा पैकेट या तले भुने चिकन की पूरी प्लेट खा जाना बेहद आनंददायक लगता है. इस तरह के खानपान का नुकसान यही है कि इससे शरीर में अतिरिक्त कैलोरी इकट्ठी होती है और वजन तेजी से बढ़ता है. शराब पीने के जो नुकसान हैं, सो तो हैं ही, साथ ही इस तरह के खानपान का बर्ताव पाचन प्रक्रिया पर बुरा असर डालता है. रिसर्चरों के मुताबिक, शराब का नशा हमारे चयन प्रक्रिया को कमजोर बनाता है. जिसके बाद पीने वाला शख्स कितना खाए या पिए, इस पर आसानी से नियंत्रण नहीं रख पाता. एक नुकसान और भी है, जिसकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाता. दरअसल, शराब में भी बहुत सारी कैलोरीज होती हैं. एक आकलन के मुताबिक, 7 कैलरी प्रति ग्राम. 150 एमएल वाइन में कम से कम 120-125 कैलरी. बाकी, इसमें मिलाए जाने वाले जूस, सोडा, सिरप और अन्य मिक्सर की कैलोरीज तो हैं ही. कुछ कॉकटेल्स तो ऐसी हैं, जिनमें एक ड्रिंक का कैलोरी काउंट 500 कैलोरी तक पहुंच जाता है. यानी शराब प्लस चखना यानी शरीर में अतिरिक्त कैलोरीज का धमाका. 

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स्टडी में दावा, शराब का सेवन अनहेल्दी स्नैक्स खाने के लिए प्रेरित कर सकता है (Photo: Sharaabi By Nature Facebook)

अब हेल्दी चखना और स्टार्टअप भी 
शराब पीने वालों ने भले ही इसकी बुराइयों को नजरअंदाज कर दिया हो, लेकिन एक तबका ऐसा भी है जो आज ड्रिंक्स के साथ 'हेल्दी चखना' की डिमांड कर रहा है. इन्हें फ्राइड की जगह बेक्ड स्नैक्स चाहिए जो मैदे या आटे से नहीं, बल्कि मल्टी ग्रेन से तैयार किया गया हो. यह जमात अब पकौड़े नहीं, एयर फ्राई स्नैक्स ढूंढ रही है. यानी शराब नुकसान पहुंचाए या ना पहुंचाए लेकिन चखना में मौजूद अतिरिक्त कैलोरीज को घटाना है. लोगों को ऐसी जरूरत महसूस हुई तो ऐसे प्रोडक्ट भी बाजार में आने लगे हैं. डायट चखना की पूरी की पूरी रेंज उपलब्ध है. वहीं, नया बाजार नजर आया तो आईआईएम अहमदाबाद से शिक्षित अमर चौधरी ने अक्टूबर 2018 में 'चखना शॉट' नाम के स्टार्टअप की शुरुआत कर दी. नाम पर मत जाइए, इसका मकसद अपराधबोध मुक्त (Guiltfree) हेल्दी स्नैक्स का विकल्प उपलब्ध कराना है. 

तो पीते वक्त क्या करें 
यह तो तय है कि शराब पीने के साथ-साथ इसके साथ की जाने वाली 'जुगाली' सेहत को काफी नुकसान पहुंचाती है. ऐसे में पीते वक्त खाने की रफ्तार को धीमा रखने का एक तरीका तो यही है कि मेन्यू में हेल्दी फूड को शामिल करें. मसलन मोटे अनाज, कॉम्प्लेस कार्बोहाइड्रेड्स, हेल्दी फैट और प्रोटीन आदि. ऐसा इसलिए ताकि ड्रिंकिंग की शुरुआत से ही आपका पेट और मन दोनों संतुष्ट रहे. दूसरा तरीका यह है कि चिप्स और तली भुनी चीजों की जगह सेहतमंद विकल्पों मसलन-सलाद, फल और एयर फ्राइड स्नैक्स को तरजीह दें. दरअसल, चिप्स, दालमोठ, नमकीन, पकौड़े जैसे स्नैक्स की आसानी से उपलब्धता और स्वाद ग्रंथियों से इनकी दोस्ती ही इन्हें खाने के लिए ज्यादा उकसाते हैं. आखिरी चीज, जिसका ध्यान रखना है, वो है डिहाईड्रेशन. शराब का सेवन शरीर में पानी की डिमांड को बढ़ाता है. ऐसे में बीच-बीच में पानी पीते रहें. ऐसा करना आपको अपेक्षाकृत कम खाने में भी मदद करेगा.

(Disclaimer: यह जानकारी फूड एंड वाइन एक्सपर्ट्स के हवाले से दी गई है. इसका मकसद किसी भी तरीके से शराब पीने को बढ़ावा देना नहीं है.)

 

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