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शराब पीते वक्त क्यों कहते हैं 'चीयर्स'? सेलिब्रेशन में लोग क्यों उड़ाते हैं शैंपेन? जानिए वजह

शराब पीने से पहले 'चीयर्स' कहने की आदत आम है. किसी भी महफिल में लोग बिना चियर्स कहे शराब के गिलास को होठों से नहीं लगाते. लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर क्यों और कैसे शुरू हुई चीयर्स कहने की प्रक्रिया? वहीं, अक्सर हमने जश्न के मौकों पर लोगों को शैंपेन उड़ाते हुए देखा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सेलिब्रेशन से शैंपेन का क्या कनेक्शन है?

Why Do We Say Cheers (Pic Credit: pexels) Why Do We Say Cheers (Pic Credit: pexels)
अभिषेक भट्टाचार्य
  • नई दिल्ली,
  • 23 अगस्त 2022,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST

Reason Behind Clinking Glasses and Saying Cheer While Drinking: महफिल में 'चीयर्स' किए बिना शराब को होठों से लगाना कुछ वैसा ही अधूरा है, जैसे फोन पर बातचीत शुरू करने से पहले 'हलो' न कहना. जाम टकराने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है, जिसके धार्मिक से लेकर वैज्ञानिक कारण होने तक के दावे किए जाते हैं. एक धारणा तो यही है कि पैमाने टकराने से शराब की कुछ बूंदें बाहर छलकती हैं, जिनसे अतृप्त आत्माओं को सुकून मिलता है. आपने कुछ लोगों को पीने से पहले शराब की गिलास से कुछ बूंदें इधर-उधर छिड़कते जरूर देखा होगा. वहीं, जर्मनी में तो धारणा है कि शोर करते हुए गिलास टकराने से बुरी आत्माएं जश्न के माहौल से दूर चली जाती हैं. प्राचीन ग्रीस की मान्यताओं के मुताबिक, खुशी के माहौल में जाम को ऊपर की ओर उठाना उसे ईश्वर को समर्पित करने का भाव होता था. 

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'चीयर्स' क्यों करते हैं लोग? 
शराब पीने से पहले 'चीयर्स' करने की प्रक्रिया के बारे में कॉकटेल्स इंडिया यूट्यूब चैनल के संस्थापक संजय घोष उर्फ दादा बारटेंडर बेहद दिलचस्प बात बताते हैं. उनके मुताबिक, इंसान की 5 ज्ञानेंद्रियां होती हैं- आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा. जब शराब पीने के लिए लोग गिलास हाथों में उठाते हैं तो वे उसे सबसे पहले स्पर्श करते हैं. इस दौरान आंखों से उस ड्रिंक को देखते हैं. पीते वक्त जीभ से उस ड्रिंक्स का स्वाद महसूस करते हैं. इस दौरान नाक से उस ड्रिंक के एरोमा या सुगंध का ऐहसास करते हैं. घोष के मुताबिक, शराब पीने की इस पूरी प्रक्रिया में बस कान का इस्तेमाल नहीं होता. इसी कमी को पूरी करने के लिए ही हम 'चीयर्स' करते हैं और कानों के आनंद के लिए गिलासों के टकराते हैं. माना जाता है कि इस तरह शराब पीने में पांचों इंद्रियों का पूरा इस्तेमाल होता है और शराब पीने का ऐहसास और खुशनुमा हो जाता है.  

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Why Do We Say Cheers (Pic Credit- Pexels)

सेलिब्रेशन का शैंपेन से क्या है कनेक्शन 
हमने जश्न के मौकों पर फिल्मी सितारों से लेकर स्पोर्ट्स जगत की हस्तियों तक को बोतल से शैंपेन उड़ाते हुए देखा है. उच्चवर्गीय समाज में भी बर्थडे, सालगिरह और दूसरे खुशी के मौकों पर शैंपेन वाला सेलिब्रेशन आम हो चुका है. आखिर ऐसा कब से किया जा रहा है? शैंपेन की जगह बीयर या दूसरी कोई शराब क्यों नहीं इस्तेमाल की जाती? घोष बताते हैं कि फ्रेंच रिवॉल्यूशन के बाद पहली बार जश्न के मौके पर शैंपेन का सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल किया गया. उस वक्त शैंपेन एक स्टेटस सिंबल हुआ करता था और इसे खरीदना आम लोगों के बस की बात नहीं थी. हालांकि, अब यह काफी सस्ता हो चुका है और मध्यमवर्गीय लोग भी इसे आसानी से खरीद सकते हैं. जिनके लिए शैंपेन महंगी है, वे सेलिब्रेशन में सस्ते विकल्प के तौर पर 'स्पार्कलिंग वाइन' का इस्तेमाल कर लेते हैं.

क्रिकेट के मैदान पर शैंपेन वाला सेलिब्रेशन आम है. (Pic Credit-AFP)

शैंपेन आखिर है क्या, जान लीजिए 
शैंपेन भी एक तरह की वाइन ही है. दरअसल, साधारण वाइन में किसी तरह के बुलबुले या झाग नहीं होता. हालांकि, जब इसमें इसमें चमक और बुलबुले हों तो ये वाइन शैंपेन की श्रेणी में आ जाती है. ये कुछ ऐसा ही है जैसे साधारण पानी में कार्बन डाई ऑक्साइड मिलने पर वो सोडा या स्पार्कलिंग वॉटर बन जाता है. यहां समझने वाली बात है कि सभी शैंपेन एक किस्म की स्पार्कलिंग वाइन हैं, लेकिन सभी स्पार्कलिंग वाइन को शैंपेन नहीं कहा जा सकता. घोष के मुताबिक, फ्रांस में एक ऐसा क्षेत्र है, जहां के बने स्पार्कलिंग वाइन को ही शैंपेन कहा जाता है. यानी फ्रांस के 'शैंपेन रीजन' में बने स्पार्कलिंग वाइन की बोतल पर ही शैंपेन लिखा जा सकता है. इस फर्क को समझाने के लिए घोष एक बेहद साधारण उदाहरण देते हैं. उनका कहना है कि देश के विभिन्न हिस्सों में कितनी भी अच्छी चाय मिले लेकिन उसे दार्जिलिंग टी नहीं कहा जा सकता. जैसे दार्जिलिंग चाय का कनेक्शन बंगाल के एक खास क्षेत्र से है, वैसा ही कनेक्शन शैंपेन का फ्रांस के एक खास इलाके 'शैंपेन रीजन' से है. शायद इसलिए ही इटली में बने स्पार्कलिंग वाइन को शैंपेन नहीं, प्रोसेको (Prosecco) कहते हैं. इसी तरह स्पेन में बने स्पार्कलिंग वाइन को भी शैंपेन नहीं, कावा (Cava) कहते हैं. 

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फॉर्मूला वन रेसिंग के विजेता अक्सर इस अंदाज में जश्न मनाते हैं. (Pic Credit-AFP)

कैसे बनता है शैंपेन
शैंपेन को बनाने के लिए कुछ खास नियमों और प्रक्रिया का पालन करना होता है. काफी लंबे प्रोसेस से गुजरने के बाद ही स्पार्कलिंग वाइन से शैंपेन तैयार होती है. घोष के मुताबिक, शैंपेन को बनाने के लिए मुख्य तौर पर तीन तरह के अंगूर Pinot noir, Pinot meunier और Chardonnay की जरूरत पड़ती है. फिर दो दौर के फर्मन्टेशन के बाद इसे बोतलों में भरकर 5 से 10 महीनों के लिए तिरछा करके छोड़ देते हैं. इस प्रक्रिया के दौरान ही शैंपेन में बबल्स पैदा होते हैं. इसके बाद कुछ और प्रक्रियाओं और सालों की मैच्चोरिंग प्रोसेस से गुजरकर फाइनल शैंपेन तैयार होती है. फर्मंटेशन की प्रक्रिया के दौरान बोतल के अंदर हाई प्रेशर कार्बन डाई ऑक्साइड पैदा होती है. इसलिए जब लोग शैंपेन की बॉटल से कॉर्क हटाते हैं तो वो बेहद तेजी से बाहर की ओर निकलता है. 

 

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