कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच अब इसके री-इंफेक्शन की भी खबरें आने लगी हैं. यानी अब ऐसे भी मामले आ रहे हैं जिसमें एक बार ठीक होने के बाद व्यक्ति कोरोना से दोबारा संक्रमित हो रहा है. री-इंफेक्शन को लेकर इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक बड़ी बात कही है. ICMR ने कहा है कि अगर वायरस से ठीक होने वाले किसी व्यक्ति में पांच महीनों में एंटीबॉडी कम हो जाती है, तो उसे फिर से Covid-19 हो सकता है.
ICMR के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने स्वास्थ्य मंत्रालय के ब्रीफिंग के दौरान री-इंफेक्शन पर बात करते हुए कहा, 'इसलिए मास्क पहना बहुत जरूरी है और अगर आप पहले संक्रमित हो चुके हैं तो भी आपको सावधानी बरतनी चाहिए.' इससे पहले ICMR ने बताया था कि भारत में री-इंफेक्शन के मामले अभी बहुत कम हैं जिसमें अहमदाबाद में एक और मुंबई में दो हैं.
ICMR ने कहा, 'विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार, इस समय दुनिया में लगभग 24 री-इंफेक्शन के केस हैं. ऐसे मामलों की पहचान करने में 90 से 100 दिन का समय लग सकता है. WHO ने अभी दिनों की संख्या तय नहीं की है. हालांकि, हम इसे लगभग 100 दिनों का मान रहे हैं.'
हाल ही में री-इंफेक्शन पर द लैंसेट में छपी एक स्टडी में कहा गया है कि दूसरी बार संक्रमित होने पर कोरोना के मरीजों में अधिक गंभीर लक्षण महसूस हो सकते हैं और एक बार वायरस के संपर्क में आने के बाद इम्यूनिटी को लेकर कोई गारंटी नहीं दी जा सकती है. स्टडी में अमेरिका के 25 साल के एक युवक के बारे में बताया गया है जो 48 घंटे के अंदर SARS-CoV-2 के दो अलग-अलग स्वरूपों से संक्रमित हुआ.
युवक में पहले की तुलना में दूसरा संक्रमण ज्यादा गंभीर पाया गया. री-इंफेक्शन में युवक की हालत इतनी गंभीर हो गई कि उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर डालना पड़ा. एक्सपर्ट्स का कहना है कि री-इंफेक्शन के मामलों से इस महामारी पर लगाम लगाने की संभावना पर गहरा असर पड़ सकता है. खासतौर से, वैक्सीन के लिए पूरी दुनिया की खोज को झटका लग सकता है.
वहीं WHO के समन्वय परीक्षण (Solidarity Trial) पर डॉक्टर बलराम भार्गव ने कहा, 'WHO का सॉलिडैरिटी ट्रायल 30 देशों का ट्रायल है जिसमें भारत भी शामिल है. इसके नतीजे वेबसाइट पर डाल दिए गए हैं पर अभी तक इसकी समीक्षा नहीं की गई है. इसमें पता चला है कि कुछ दवाएं वायरस पर वैसा काम नहीं कर रही हैं जैसी की उम्मीद की गई थी.'
आपको बता दें कि सॉलिडैरिटी ट्रायल WHO और उसके पार्टनर्स की तरफ से लॉन्च किया गया एक अंतरर्राष्ट्रीय क्लिनिकल ट्रायल है जिसके जरिए COVID-19 का प्रभावी उपचार खोजने के कोशिश की जा रही है. यह सबसे बड़े ट्रायल में से एक है जिसमें 30 से अधिक देशों के 500 अस्पताल के लगभग 12 000 मरीजों का नामांकन किया गया है.
सॉलिडैरिटी ट्रायल में COVID-19 मरीजों के इलाज में इस्तेमाल दवाईयों की तीन स्तर पर जांच की जाती है, पहला कि दवाईयों के इस्तेमाल के बाद मृत्यु दर कितनी है, दूसरा वेंटिलेशन की कितनी जरूरत है और तीसरा कि मरीज अस्पताल में कब तक रहता है.
देश में कोरोना वायरस की स्थिति पर मीडिया को जानकारी देते हुए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने बताया कि पूरी दुनिया में कोरोना वायरस के सबसे ज्यादा मरीज भारत में ही ठीक हुए हैं वहीं टेस्टिंग के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है. मंत्रालय ने कहा कि भारत में ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता भी पहले से बढ़ाई गई है.