पिछले साल मार्च में इंडोनेशिया के अस्पताल में बुखार और खांसी के लक्षण के साथ एक कोरोना का मरीज आया था. मरीज बिल्कुल ठीक था और वो आराम से चल रहा था, लोगों से बातें कर रहा था और मोबाइल में कुछ देख रहा था. उसका ब्लड प्रेशर, पल्स और बॉडी टेंपरेचर भी बिल्कुल सामान्य था. कुल मिलाकर उसे कोई खास दिक्कत नहीं थी लेकिन जब डॉक्टर ने चेक किया तो उसका ऑक्सीजन लेवल 77 फीसद था.
सामान्य मरीज का ऑक्सीजन लेवल इतना कम देखकर डॉक्टर भी घबरा गए. मरीज की ऐसी स्थिति को हैप्पी-हाइपोक्सिया कहते हैं. कोरोना के मरीज में हैप्पी-हाइपोक्सिया का ये पहला मामला था. इसमें मरीज को खुद भी पता नहीं चलता है कि उसका ऑक्सीजन लेवल कम हो गया है.
हैप्पी-हाइपोक्सिया में मरीज में कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं और अचानक ऑक्सीजन लेवल बहुत कम हो जाता है. भारत में हैप्पी-हाइपोक्सिया का पहला मामला पिछले साल जुलाई में आया था लेकिन कोरोना की दूसरी लहर में इस तरह के मामले अचानक बढ़ गए हैं.
कोरोना के मरीजों में हैप्पी-हाइपोक्सिया- हैप्पी-हाइपोक्सिया में ऑक्सीजन लेवल सामान्य से कम होने लगता है. एक सेहतमंद व्यक्ति का ऑक्सीजन सेचुरेशन 94 फीसद से ऊपर रहता है. ऑक्सीमीटर के जरिए इसे आसानी से नापा जा सकता है. ऑक्सीजन कम होने का असर दिल, फेफड़ों, दिमाग और किडनी समेत कई अन्य अंगों पर पड़ने लगता है.
क्यों होता है हैप्पी-हाइपोक्सिया- हाइपोक्सिया तब होता है जब फेफड़ों के ऑक्सीजन लेने और इसे नसों के जरिए शरीर के अन्य अंगों में भेजने की क्षमता कम होने लगती है. यह तब भी हो सकता है जब कुछ ब्लॉकेज की वजह से रक्त वाहिकाएं शरीर में पूरी तरह से खून नहीं पहुंचा पाती हैं.
कोरोना वायरस मुख्य रूप से फेफड़ों, खून की नसों और श्वसन प्रणाली पर असर डालता है. संक्रमण की वजह से फेफड़े ठीक से काम नहीं कर पाते हैं और इसकी वजह से रक्त वाहिकाओं में सूजन हो जाती है. नसों में सूजन की वजह से थक्के बन जाते हैं और ब्लड फ्लो में रुकावट आने लगती है. इसकी वजह से सिर दर्द और सांस लेने में दिक्कत महसूस हो सकती है.
हालांकि Covid-19 के मरीजों में हैप्पी-हाइपोक्सिया के शुरुआती लक्षण नजर नहीं आते हैं और ये बहुत आगे जाकर इसके बारे में पता चलता है. डॉक्टर्स कोरोना के मरीजों में इस स्थिति को बहुत गंभीर मान रहे हैं. बिहार में भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर राजकमल चौधरी कहते हैं, 'अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड-19 मरीजों में से 30 फीसद लोगों में हैप्पी-हाइपोक्सिया होता है.'
डॉक्टर चौधरी ने कहा, 'हैप्पी-हाइपोक्सिया के कुछ मामलों में ऑक्सीजन सेचुरेशन 20-30 फीसद तक नीचे चला जाता है. अस्पतालों में कोरोना के मरीजों के मौत की ये मुख्य वजह है.' दिल्ली-NCR में मरीजों का इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना की दूसरी लहर में हाइपोक्सिया युवाओं में ज्यादा देखा जा रहा है. कई लोग इस बात की संभावना जता रहे हैं कि कोरोना से हो रही युवाओं के मौत के पीछे एक वजह ये भी है.
कैसे करें पहचान- ऐसी स्थिति में ऑक्सीजन सेचुरेशन पर निगरानी रखने से मदद मिल सकती है. डॉक्टर Covid-19 मरीजों को ऑक्सीमीटर के जरिए नियमित रूप से अपना ऑक्सीजन लेवल चेक करने की सलाह दे रहे हैं. अगर ये 90% से कम जाता है तो तुरंत ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है. ऑक्सीजन ना मिलने पर इसका असर बाकी अंगों पर तेजी से पड़ना शुरू हो जाता है.
खांसी, गले में खराश, बुखार और सिर दर्द कोरोना वायरस के सामान्य लक्षण हैं लेकिन इसके अलावा आपको हैप्पी-हाइपोक्सिया की पहचान के लिए कुछ और लक्षणों पर गौर करने की जरूरत है. होंठों का नीला पड़ जाना, स्किन के रंग में बदलाव, बिना किसी शारीरिक मेहनत के ज्यादा पसीना आना हैप्पी-हाइपोक्सिया के लक्षण हो सकते हैं. अच्छा होगा कि आप ऑक्सीमीटर से इसकी जांच करते रहें.
क्या करें- अगर आपका ऑक्सीजन सेचुरेशन 94% से कम हो रहा है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. होम आइसोलेशन में रह रहे मरीजों को तुरंत राहत के लिए डॉक्टर प्रोनिंग करने की सलाह दे सकते हैं. ऑक्सीजन लेवल 90% से कम होने पर मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़ती है और मरीज को तुरंत अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी जाती है.