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Placebo Effect: क्या होता है प्लेसिबो इफेक्ट? भोपाल में वैक्सीन वॉलंटियर की मौत के बाद हो रही चर्चा

aajtak.in
  • 11 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 6:28 PM IST
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भोपाल में 12 दिसंबर को कोवैक्सीन ट्रायल में शामिल एक वॉलंटियर की 21 दिसंबर को मौत हो गई. इसके बाद कई लोगों ने कोवैक्सीन पर सवाल उठाए थे. हालांकि, भारत बायोटेक ने अपनी सफाई देते हुए कहा था कि वॉलंटियर की मौत का वैक्सीन की डोज से कोई लेना-देना नहीं है और ट्रायल में ये नहीं पता चलता है कि मरीज को वैक्सीन दी गई थी या प्लेसिबो. इस पूरे घटनाक्रम मे जो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में आया, वो था प्लेसिबो. आइए जानते हैं कि क्या होता है प्लेसिबो और ये मरीज पर कैसे प्रभाव डालता है.

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क्या होता है प्लेसिबो- प्लेसिबो इलाज का एक ऐसा जरिया है जो दिखने में तो वास्तविक लगता है पर ऐसा होता नहीं है. दवा, वैक्सीन या किसी अन्य तरीके से किए गए फेक ट्रीटमेंट को प्लेसिबो कहते हैं. प्लेसिबो में ऐसा कोई सक्रिय पदार्थ नहीं होता है जो सेहत पर सीधा असर डाल सके. 
 

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प्लेसिबो इफेक्ट क्या है- प्लेसिबो का मरीज पर मानसिक रूप से असर पड़ता है. ये मरीज को एक भ्रम का एहसास कराता है जैसे कि जो दवा उसने खाई, उसके असर से वो ठीक हो रहा है. प्लेसिबो ट्रीटमेंट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन कुछ परिस्थितियों में मरीज पर इसका इफेक्ट पड़ता है. प्लेसिबो का इस्तेमाल ट्रेडिशनल ट्रींटमेंट की तरह किया जा सकता है.
 

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प्लेसिबो इफेक्ट (Placebo Effect) पर रिसर्च करने वाले अमेरिका के बेथ इजराइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर के प्रोफेसर टेड कप्तचुक ने हार्वर्ड हेल्थ को बताया, 'प्लेसिबो का प्रभाव एक तरीके से सकारात्मक सोच है जो भरोसा दिलाता कि ये इलाज काम करेगा. यह मस्तिष्क और शरीर के बीच एक मजबूत संबंध बनाता है.' प्लेसिबो किसी बीमारी को ठीक नहीं कर सकता है लेकिन ये दिमाग में भ्रम डालता है कि ये दवा लेने से ही बीमारी ठीक हो रही है.'
 

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प्रोफेसर टेड के अनुसार, 'प्लेसिबो आपको बेहतर महसूस करा सकता है, लेकिन वो आपको ठीक नहीं करेगा. ये दर्द-तनाव कम करने और कैंसर ट्रीटमेंट के साइड इफेक्ट जैसे थकान और मितली में सबसे ज्यादा प्रभावी देखा गया है.' 
 

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प्लेसिबो के पॉजिटिव या निगेटिव दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं. जहां एक तरफ इससे मरीज बेहतर महसूस कर सकता है, वहीं दूसरी तरफ उसे ऐसा भी लग सकता है कि ट्रीटमेंट का उस पर साइड इफेक्ट हो रहा है. इसे ही 'प्लेसिबो इफेक्ट' कहा जाता है.  स्टडीज के अनुसार, डिप्रेशन, दर्द, स्लीप डिसऑर्डर, खराब पाचन तंत्र और मेनोपॉज जैसी स्थितियों में प्लेसिबो इफेक्ट देखा जा सकता है.
 

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प्लेसिबो का इस्तेमाल कब और कैसे किया जाता है- प्लेसिबो का इस्तेमाल आमतौर पर किसी नई दवा के असर के बारे में पता करने के लिए किया जाता है. उदाहरण के तौर पर किसी स्टडी के लिए कुछ लोगों को कोलेस्ट्रॉल कम करने की नई दवा दी गई वहीं कुछ लोगों को प्लेसिबो दिया गया हो. इनमें से किसी को भी नहीं पता होता है कि उन्हें सही ट्रीटमेंट दिया गया है या प्लेसिबो. इसके बाद शोधकर्ता सच में दी गई दवा और प्लेसिबो के असर की तुलना करते हैं. इस तरह से किसी नई दवा के प्रभाव और उसके साइड इफेक्ट के बारे में पता लगाया जाता है.

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प्लेसिबो इफेक्ट कैसे काम करता है- प्लेसिबो इफेक्ट पर हुए शोध से पता चलता है कि ये दिमाग और शरीर के बीच एक तरह का संबंध स्थापित करता है. इसका सबसे आम सिद्धांत ये है कि प्लेसिबो प्रभाव व्यक्ति की उम्मीदों का नतीजा होता है. जैसे कि अगर किसी व्यक्ति को उम्मीद है कि टेबलेट खाने का असर उसके शरीर पर पड़ेगा तो संभव है कि शरीर में अपने आप कुछ ऐसी प्रतिक्रिया होने लगेगी कि जिसका असर वास्तविक दवा जैसा हो सकता है.
 

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उदाहरण के लिए, एक स्टडी में लोगों को प्लेसिबो देकर बताया गया हो कि वो एक उत्तेजित करने वाली दवा है. गोली लेने के बाद अपने आप उनका पल्स रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ सकता है. वहीं अगर बताया जाए कि ये दवा लेने से उन्हें नींद अच्छी आएगी तो खुद को बहुत रिलैक्स महसूस करेंगे. अगर कोई व्यक्ति दवा लेने के बाद अच्छा महसूस करना चाहता है तो उस पर प्लेसिबो का पॉजिटिव असर पड़ेगा. वहीं अगर कोई व्यक्ति ये महसूस करता है कि दवा लेने के बाद उस पर सिरदर्द, मितली और बेहोशी जैसे साइड इफेक्ट हो रहा है तो उस पर प्लेसिबो का निगेटिव असर पड़ेगा.
 

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हालांकि, प्लेसिबो ट्रीटमेंट को पूरी तरह नकली नहीं माना जा सकता है. कुछ स्टडीज में इस बात का दावा किया गया है कि प्लेसिबो लेने से शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन बढ़ता है जो नेचुरल तरीके से दर्द को कम करता है. प्लेसिबो इफेक्ट के साथ एक दिक्कत ये है कि इससे स्टडी के दौरान कभी-कभी वास्तविक दवा के प्रभावों का अंतर करना मुश्किल हो जाता है. 

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