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आर्टिफिशियल स्वीटनर कितना स्वीट और कितना जहर, खाने से पहले जान लें सच्चाई

डायबिटीज की बीमारी में अक्सर मरीज चीनी की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं ताकि वो मीठा भी खा सकें और उनकी शुगर भी कंट्रोल में रहे. लेकिन कुछ समय से स्वस्थ लोग भी आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करने लगे हैं. अगर आप भी ऐसा कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं तो पहले जान लें कि प्राकृतिक चीनी के विकल्प के रूप में आप जिस ऑर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं, वो आपकी सेहत के लिए सही है भी या नहीं.

प्रज्ञा कश्यप
  • नई दिल्ली,
  • 28 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 6:57 PM IST

किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरत से ज्यादा मीठा खाना सेहत के लिए फायदेमंद नहीं है, यह बात हम सब जानते हैं. ज्यादा मीठा स्किन प्रॉबलम्स और दांतों में कैविटी से लेकर डायबिटीज और दिल के रोग जैसी गंभीर बीमारियों को दावत देता है. इससे होने वाले नुकसान का सोचकर लोग चीनी को छोड़ना तो चाहते हैं लेकिन उनके लिए मीठे से दूरी बनाना मुश्किल है.

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यही वजह है कि पिछले कुछ समय से लोगों के बीच चीनी के विकल्प के तौर पर आर्टिफिशियल स्वीटनर का ट्रेंड बढ़ गया है. स्लिम-ट्रिम और सुंदर दिखने की चाहत में भी लोग आर्टिफिशियल स्वीटनर्स की तरफ आकर्षित हुए हैं. 

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स में कैलोरी की मात्रा ना के बराबर होती है और यह प्राकृतिक मिठास यानी चीनी और गुड़ का हेल्दी विकल्प होने का दावा करते हैं. डायबिटीज के रोगियों से लेकर वजन घटाने के लिए भी लोग चीनी की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन क्या वाकई आर्टिफिशियल स्वीटनर चीनी का हेल्दी विकल्प हो सकते हैं. वास्तव में पिछले कुछ समय में ऐसी कई रिसर्च और थ्योरीज सामने आई हैं जिनमें आर्टिफिशियल स्वीटनर के इस्तेमाल पर सवाल उठाए गए हैं.  

क्या है आर्टिफिशियल स्वीटनर? 
आर्टिफिशियल स्वीटनर एक तरह का शुगर सब्सिट्यूट हैं जिन्हें कुछ प्राकृतिक और कुछ केमिकल्स को मिलाकर बनाया जाता है. कई डायबिटीज के मरीज भी चीनी की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं. आर्टिफिशियल स्वीटनर का स्वाद चीनी की तरह ही होता है लेकिन ये चीनी से कहीं अधिक मीठे होते हैं.

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इसकी साबूदाने जितनी एक छोटी सी गोली आपकी चाय में एक चम्मच या दो चम्मच चीनी के बराबर जितनी मिठास घोल सकती है. आर्टिफिशियल स्वीटनर लेस कैलोरी या जीरो कैलोरी वाले होते हैं इसलिए दावा किया जाता है कि इनके सेवन से आपका वजन नहीं बढ़ेगा लेकिन यह दावा भी पूरी तरह सही नहीं है.
 

आर्टिफिशियल स्वीटनर के कुछ प्रकार
पिछले कुछ समय में सुक्रालोज (sucralose), एसेसल्फेम के (acesulfame K), एस्पार्टेम (aspartame), सैकरीन (saccharin), सोर्बिटोल (sorbitol), स्टीविया (steviol glycosides), जाइलिटॉल (xylitol) समेत कई आर्टिफिशियल स्वीटर्नस और उससे जुड़े उत्पाद सामने आए हैं.

आर्टिफिशियल स्वीटनर पर क्या है डॉक्टरों की राय

आर्टिफिशियल के बढ़ते चलन पर दिल्ली के साकेत में स्थित मैक्स हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉक्टर रोमेल टिकू कहते हैं, ''हम पिछले काफी समय से देख रहे हैं कि लोगों के बीच चीनी की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल बढ़ा है लेकिन मैं यहां साफ कर दूं कि ये जरूरी नहीं है कि हर कोई इसका इस्तेमाल करे. आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल डायबिटीज की बीमारी में किया जा सकता है. हालांकि यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि आप किस तरह के स्वीटनर को चुन रहे हैं.''

वो आगे कहते हैं, ''सुक्रालोज और  एस्पार्टेम जैसे कई आर्टिफिशियल स्वीटनर से लॉन्ग टर्म में नुकसान होने के सबूत मिले हैं जो पेट से जुड़ी परेशानियां पैदा कर सकते हैं क्योंकि ये सिंथेटिक हैं. इनका लंबे समय तक इस्तेमाल शरीर पर दुष्प्रभाव डाल सकता है. हालांकि आप स्टीविया के नैचुरल फॉर्म का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसका पत्तियों, पाउडर और गोलियों, किसी भी रूप में सेवन किया सकता है.''  

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इन चीजों में भी होता है आर्टिफिशियल स्वीटनर

आर्टिफिशियल स्वीटनर कोल्ड ड्रिंक्स, पैक्ड स्नैक्स, पैक्ड जूस, डेजर्ट्स, चॉकलेट, कार्बोनेटेड वॉटर, जैम, केक, योगर्ट, च्युइंग गम जैसे कई खाद्य पदार्थों के साथ ही टूथपेस्ट में भी होते हैं. इसलिए आप भले ही आर्टिफिशियल स्वीटर का सीधे सेवन ना कर रहे हों, लेकिन ये आपके शरीर में किसी ना किसी तरीके से जा रहा है.  

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से हो सकती हैं ये बीमारियां?

पिछले कुछ समय में हुई कई रिसर्च बताती हैं कि आर्टिफिशियल स्वीटनर इंसान के शरीर का मेटाबॉलिज्म डिस्टर्ब कर सकते हैं. इनका ज्यादा इस्तेमाल सेहत से खिलवाड़ करने जैसा है. इससे हार्ट डिसीस, स्ट्रोक, कैंसर, अस्थमा, डिप्रेशन, एलर्जी जैसी कई बीमारियों का खतरा बढ़ा सकता है. कुछ रिसर्च में तो यह भी सामने आया है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर खून में ग्लूकोज की मात्रा को बढ़ाता है. इससे टाइप 2 डायबिटीज का रिस्क बढ़ जाता है.

आर्टिफिशियल स्वीटनर्स से कैसे रहें सावधान 

सुक्रालोज भारत समेत पूरी दुनिया में आर्टिफिशियल स्वीटनर के तौर पर काफी इस्तेमाल किया जाता है. अमेरिका की ह्यूमन हेल्थ और वेल बीइंग पर काम करने वाली एक वेबसाइट के मुताबिक सुक्रालोज आपके पेट के गुड बैक्टीरिया की संख्या को आधे से भी कम कर सकता है जिससे आपको पेट की कई परेशानियां हो सकती हैं. यह शरीर में सूजन भी बढ़ा सकता है. समय के साथ सूजन मोटापा और डायबिटीज का कारण बन सकती है.

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इसी तरह आर्टिफिशियल स्वीटनर जाइलिटोल में भी कई ऐसे कंपाउंड्स पाए जाते हैं जिनसे दस्त और आंतों की गैस जैसी कुछ समस्याएं हो सकती हैं. एस्पार्टेम भी एक ऐसा ही आर्टिफिशियल स्वीटनर है जो चीनी की तुलना में बहुत अधिक मीठा होता है. यह कई प्रकार की ड्रिंक्स और डेयरी प्रोडक्ट्स में मिलाया जाता है. इसका अधिक प्रयोग सेहत पर बुरा असर डाल सकता है.

आर्टिफिशियल स्वीटनर वेट लॉस और डायबिटीज में फायदेमंद है?

2019 में प्रकाशित एक स्टडी में वैज्ञानिकों ने कहा था शुगर सब्सिट्यूट के इस्तेमाल पर हुए अधिकांश अध्ययनों के नतीजे बहुत हाई क्वालिटी वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल स्वीटर से इंसान की सेहत को होने वाले लाभ का कोई सबूत नहीं मिला है और ना ही इससे होने वाले संभावित नुकसान को नजरअंदाज किया जा सकता है. 2022 की विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिव्यू रिपोर्ट में भी कहा गया था कि ऐसा कोई पुख्ता सबूत नहीं है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर से लंबे समय तक वजन कम करने में फायदेमंद हो सकता है. 

2022 की फ्रांस की एक रिसर्च में आर्टिफिशियल स्वीटनर का कैंसर की बीमारी से संबंध पाया गया. आठ सालों तक लोगों के खानपान की आदतों का आकलन और रिसर्च से ये सामने आया कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का लंबे समय तक इस्तेमाल स्तन कैंसर और मोटापे से जुड़े कैंसर का जोखिम बढ़ाता है. 

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ब्रिटेन की मशहूर मेडिकल जर्नल 'नेचर मेडिसिन' में कुछ समय पहले छपी एक रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में सामान्य आर्टिफिशियल स्वीटनर के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली एरिथ्रिटोल स्वीटनर थ्रॉम्बस बीमारी जिसे सामान्य भाषा में खून के थक्के बनना कहा जाता है, का कारण बन सकती है. ऐसा लगातार होने पर व्यक्ति को तीन सालों में ही हार्ट अटैक या स्ट्रोक होने का रिस्क होता है।


 

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