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क्या है वो तरीका जिससे एलन मस्क की गर्लफ्रेंड बनीं मां? नहीं लगने पाई किसी को भनक

एलन मस्क और ग्रिम्स ने पिछले साल दिसंबर में सरोगेसी के जरिए अपने दूसरे बच्चे के माता-पिता बने हैं. उन्होंने अपनी बेटी नाम एक्सा डार्क साइडरेल मस्क रखा है. अब सरोगेसी क्या होती है, इससे पैरेन्ट्स कैसे बनते हैं, सरोगेसी के प्रकार और भारत में सरोगेसी के क्या नियम हैं, इस बारे में आर्टिकल में जानेंगे.

(Image credit: Getty images and pixabay) (Image credit: Getty images and pixabay)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 11 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 1:09 PM IST
  • एलन मस्क-ग्रिम्स दिसंबर में सरोगेसी से पैरेन्ट्स बने
  • एलन मस्क-ग्रिम्स का यह दूसरा बच्चा है
  • सरोगेसी दुनिया के साथ इंडिया में भी काफी फेमस है

Surrogacy: एलन मस्क और ग्रिम्स पिछले साल दिसंबर 2021 में सरोगेसी के जरिए अपने दूसरे बच्चे के पैरेन्ट्स बने हैं. ग्रिम्स, जिनका असली नाम क्लेयर बाउचर है, उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने अपनी बेटी का नाम एक्सा डार्क साइडरेल मस्क रखा है. एलन और ग्रिम्स का एक बेटा भी है, जो 22 महीने का है. एलन मस्क ने 2018 में ग्रिम्स को डेट करना शुरू किया था. ग्रिम्स ने Vanity Fair से बात करते हुए बताया, "मैं और एलन पिछले साल सितंबर से दोनों अलग-अलग घरों में रहते हैं. हम सबसे अच्छे दोस्त हैं. हम हर समय एक दूसरे को देखते हैं."

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बॉलीवुड सेलेब्स प्रियंका चोपड़ा, शिल्पा शेट्टी, प्रीति जिंटा, एकता कपूर, सनी लियोन, करण जौहर, शाहरुख खान समेत कई सेलिब्रिटी भी सरोगेसी से ही माता-पिता बने हैं. ऐसे में कई लोगों के मन में सरोगेसी को लेकर कई सवाल मन में आते हैं. अगर आप भी उन लोगों में से हैं, सरोगेसी के बारे में जानना चाह रहे हैं, तो इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें. 

क्या होती है सरोगेसी (What is surrogacy)

जिन महिलाओं को इनफर्टिलिटी, मिसकैरेज या रिस्की प्रेग्नेंसी के कारण मां बनने में प्रॉब्लम होती है, यह उन महिलाओं के लिए काफी अच्छा विकल्प हो सकता है. अगर आम भाषा में कहें तो कोई महिला दूसरे के बच्चे को अपने गर्भ में धारण करती है. अगर आपने कृति सेनन की 'मिमी' मूवी देखी होगी तो आप इस बात को आसानी से समझ सकते हैं कि सरोगेसी क्या होती है. इस मूवी में कृति सेनन एक विदेशी कपल के बच्चे को जन्म देती हैं. 

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सरोगेसी में कोई भी महिला अपने, डोनर या सरोगेसी का विकल्प चुनने वाली महिला के एग्स से प्रेग्नेंट होती है और वह बच्चा किसी दूसरे कपल का होता है. अपने पेट में दूसरे का बच्चा पालने वाली महिला को सरोगेट मदर कहा जाता है. 

सरोगेसी के प्रकार (Types of surrogacy)

सरोगेसी 2 तरह की होती है, पहली ट्रेडिशनल सरोगेसी और दूसरी जेस्टेशनल सरोगेसी. अब इन दोनों सरोगेसी को विस्तार से समझिए.

ट्रेडिशनल सरोगेसी (Traditional surrogacy): इसमें होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेट मदर के एग्स से मैच कराया जाता है. फिर डॉक्टर कृत्रिम तरीके से सरोगेट महिला के कर्विक्स, फैलोपियन ट्यूब्स या यूटेरस में स्पर्म को सीधे प्रवेश कराते हैं. इससे स्पर्म बिना किसी समस्या के महिला के यूटेरस में पहुंच जाता है. सरोगेट मदर फिर 9 महीने बच्चे को अपनी कोख में पालती है.

इसमें सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर होती है. अगर प्रेग्नेंसी में होने वाले पिता का स्पर्म इस्तेमाल नहीं किया जाता तो किसी डोनर के स्पर्म का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर डोनर के स्पर्म का इस्तेमाल किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से जेनेटिकली रिलेशन नहीं होता है. इसे ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी कहा जाता है. 

जेस्टेशनल सरोगेसी (Gestational Surrogacy): इसमें सरोगेट मदर का बच्चे से रिलेशन जेनेटिकली नहीं होता है, यानी प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है. इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है. वे सिर्फ बच्चे को जन्म देती है. इसमें होने वाले पिता के स्पर्म और माता के एग्स का मेल या डोनर के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूटेरस में ट्रांसप्लांट किया जाता है.

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जेस्टेशनल सरोगेसी है भारत में अधिक प्रचलित (Gestational surrogacy is more prevalent in India)

जेस्टेशनल सरोगेसी की मेडिकल प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है. इसमें आईवीएफ तरीका अपनाकर भ्रूण बनाया जाता है और फिर उसे सरोगेट महिला में ट्रांसफर किया जाता है. वैसे तो आईवीएफ का इस्तेमाल ट्रेडिशनल सरोगेसी में भी हो सकता है, लेकिन ज्यादातर मामलों में आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन (IUI) ही अपनाया जाता है. IUI ज्यादा आसान मेडिकल प्रक्रिया है. इसमें सरोगेट महिला को तमाम तरह की जांच और ट्रीटमेंट नहीं कराने पड़ते हैं. ट्रेडिशनल में चूंकि सरोगेट का एग ही इस्तेमाल होता है इसलिए बच्चा चाह रही महिला को भी एग निकालने की वजह से होने वाली तमाम दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है.

भारत में सभी आईवीएफ केंद्रों में जेस्टेशनल सरोगेसी अधिक प्रचलित है क्योंकि इसमें आगे चलकर सरोगेट मदर और बच्चे को लेकर विवाद होने का खतरा कम होता है. इस प्रकार की सरोगेसी के 2 प्रकार होते हैं. जैसे

परोपकारी सरोगेसी (Altruistic Surrogacy): परोपकारी सरोगेसी वह होती है, जब दंपति अपने साथ रहने के लिए एक सरोगेट को आमंत्रित करते हैं. ऐसे में सरोगेट महिला कोई जान-पहचान वाली या अनजान भी हो सकती है. इस स्थिति में दंपत्ति ही सरोगेट मदर के सभी खर्चे उठाता है.

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कमर्शियल सरोगेसी (Commercial surrogacy): कमर्शियल सरोगेसी में बच्चे को जन्म देने के लिए सरोगेट मां को पैमेंट किया जाता है. भारत में कई कारणों के चलते कमर्शियल सरोगेसी बैन है. 

सरोगेट चुनते समय कौन सी बातों का रखें ध्यान (Things to keep in mind while choosing a surrogate)

एक्सपर्ट बताते हैं कि सरोगेट मां का स्वस्थ होना काफी जरूरी है और उसकी उम्र 21 से 40 वर्ष के बीच में होना चाहिए. सामान्य फिटनेस टेस्ट जैसे ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर लेवल, थायरॉयड के अलावा सरोगेट महिला के मानसिक स्वास्थ्य की जांच भी करवानी चाहिए. इसके अलावा यह भी सलाह दी जाती है कि सरोगेट महिला ने पहले भी किसी स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया हो. 

भारत में सरोगेसी के नियम (Surrogacy rules in india)

मुंबई, बायकुला के मसिना अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञ, डॉ. राणा चौधरी के मुताबिक, भारत में कमर्शियल सरोगेसी बैन है. ऐसे में मानदंड यह है कि सरोगेट महिला शादीशुदा हो और उसका अपना बच्चा भी हो. सरोगेट महिला की उम्र 25 से 35 के बीच में होनी चाहिए. वह महिला सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले कपल के परिवार से होनी चाहिए. लेटेस्ट सरोगेसी रेगुलेशन बिल के मुताबिक, कमर्शियल सरोगेसी पर बैन है और केवल Altruistic Surrogacy ही की जा सकती है. जिसमें सरोगेट के मेडिकल एक्सपेंस और इंश्योरेंस कवर को छोड़कर इच्छुक माता-पिता द्वारा कोई अन्य शुल्क या खर्च कवर नहीं किया जाएगा.

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