
कोविड-19 का एक ऐसा नाम है, जिसे सुनकर आज भी लोगों के दिलों में खौफ घर कर जाता है. भारत समेत दुनिया भर में लाखों लोगों ने इस खौफनाक वायरस के चलते अपनी जान गंवाई थी. यह बात बेशक लगभग 5 साल पुरानी हो गई है, लेकिन अपनों को खोने का दर्द लोगों के दिलों में आज भी जिंदा है. कोविड में अपनों को खोने के दर्द से लोग अभी पूरी तरह से उबर भी नहीं पाए थे कि दुनिया की दहलीज पर एक और वायरस ने चिंता बढ़ा दी है, जिसका नाम ह्यूमन मेटा-न्यूमोवायरस (HMPV) है.
चीन में HMPV के चलते अफरातरी का माहौल है, तो भारत में भी अभी से इसको लेकर निगरानी शुरू कर दी है. यह वायरस कोविड-19 से इतर छोटे बच्चों पर अटैक कर रहा है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह वायरस दो साल से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा देखा जा रहा है. बीते दिन भारत में बेंगलुरु के अस्पताल में महज आठ महीने की बच्ची में HMPV वायरस डिटेक्ट किया गया था. बेंगलुरु के बाद अब गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी HMPV के मामले देखने को मिल रहे हैं. भारत में इसके अब तक 7 मामले सामने आ चुके हैं.
बच्चों में देखने को मिल रहे ज्यादातर मामले
इसके लक्षण सामान्य जुकाम और फ्लू जैसे होते हैं. यह मनु्ष्यों के फेफड़ों और श्वास नली में इंफेक्शन पैदा करता है, जिसके कारण सामान्य सर्दी या फ्लू जैसा होता है. पहले से ऐसी बीमारियों या एलर्जी से ग्रस्त लोगों में इस वायरस का संक्रमण होना बेहद आम बात है. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि छोटे बच्चे सर्दी-जुकाम जैसी सामान्य बीमारियों की चपेट में जल्दी आ जाते हैं. ऐसे में बच्चों में इस वायरस का फैलना बहुत नॉर्मल है. भारत में ही नहीं, चीन में भी HMPV के ज्यादातर मामले बच्चों में देखे गए हैं.
चीन में बच्चों में मिले HMPV के मामलों को ध्यान में रखते हुए भारतीय सशस्त्र बलों के पूर्व फील्ड पैंडेमिक एक्सपर्ट डॉ. अमिताव बनर्जी ने कहा, 'चीन में जो स्थिति इस समय है, वह इम्युनिटी डेब्ट के कारण है. यानी महामारी के दौरान कई बच्चे अपने शुरुआती महीनों में कई तरह के वायरस के संपर्क में नहीं आ पाए, और अब वे इनके खिलाफ इम्युनिटी के मामले में काफी संवेदनशील हैं.'
आइए जानते हैं 'इम्युनिटी कर्ज' के बारे में विस्तार से और इस टर्म को लेकर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है-
क्या होता है 'इम्युनिटी डेब्ट'?
आमतौर पर जब बच्चों का जन्म होता है, तो माता-पिता उन्हें सामान्य जीवन देने के लिए छोटी उम्र से ही सभी चीजें कराते हैं. वह जमीन में घुटनों के बल चलने से लेकर और भी कई चीजें करते हैं, जिससे वह सभी प्रकार के सामान्य फ्लू और वायरस की चपेट में आते रहते हैं. इससे क्या होता है कि धीर-धीरे उनकी बॉडी को इस तरह के फ्लू से लड़ने की आदत हो जाती है और उनकी इम्युनिटी मजबूत होती है.
हालांकि, कोरोना के दौरान या उसके बाद बच्चे जन्मे बच्चों को हद से ज्यादा निगरानी में रखा गया. महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चे रिस्ट्रिक्टिव माहौल के चलते अपने जन्म के पहले महीनों में किसी भी सामान्य वायरस के कॉन्टैक्ट में नहीं आए. ऐसे में उनका इम्यून सिस्टम इस तरह के किसी भी वायरस या फ्लू से दो-चार नहीं हुआ है. कहने का मतलब है कि उनका इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर है, जो अब बड़ी संख्या में HMPV के मामलों को जन्म दे रहा है. इसे 'इम्युनिटी डेब्ट' कहते है. यानी महामारी के दौरान कई तरह के जो संक्रमण होने बाकी रह गए थे, अब एक तरह से लोग उनका 'कर्जा' चुका रहे हैं.
हर माता-पिता जानते हैं कि बच्चे, विशेष रूप से छोटे बच्चे किसी ना किसी प्रकार के वायरस के कॉनटेक्ट में आते रहे है. ऐसे में इम्युनिटी कमजोर हो जाती है इसलिए अगर आप कुछ समय के लिए वायरस के कॉनटैक्ट में नहीं आए हैं, तो बच्चों की बॉडी ज्यादा संवेदनशील हो जाती है. उदाहरण के लिए, साल 2020 और 2021 के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन की वजह से सभी एक-दूसरे से दूर रहे और किसी भी कॉनटैक्ट में नहीं आए, जिसके परिणाम स्वरूप वे ज्यादा संवेदनशील हो गए. अगर आपके आसपास ऐसे लोगों की आबादी ज्यादा होगी, जो किसी भी वायरस के कॉनटैक्ट में नहीं आए हैं तो यह वायरस ज्यादा तेजी से फैलेगा.
इंपीरियल इनफेक्शियस डिजीज के प्रोफेसर शिरानी श्रीस्कंदन कहते हैं, 'बच्चों को आम तौर पर स्कूल में अपने पहले साल में स्कार्लेट बुखार होता ही है. साल 2020-2021 के दौरान स्कार्लेट बुखार की दर में गिरावट आई थी. इसलिए, स्कूल जाने वाले बच्चों में स्ट्रेप ए के प्रति प्रतिरोधक क्षमता का विकास नहीं हो पाया था. ऐसे में अब हमारे पास ऐसे बच्चे बहुत ज्यादा हैं, जिनका इम्यून सिस्टम इसके लिए मजबूत नहीं है.'
लेकिन क्या कोई जर्नलाइज्ड इम्युनिटी कर्ज जैसा कुछ है यह कहना थोड़ा मुश्किल है. संक्रमण के बाद इम्युनिटी कितने समय तक बनी रहती है, इसका स्तर अलग-अलग वायरस में अलग-अलग होता है और फ्लू वायरस के लिए, एक मौसम में संक्रमण अगले मौसम में सुरक्षा प्रदान कर भी सकता है और नहीं भी. यह इस बात पर निर्भर करता है कि दोनों प्रकार एक-दूसरे से कितने संबंधित हैं.
क्या सिर्फ 'इम्युनिटी डेब्ट' है HMPV बढ़ने का कारण?
'इम्युनिटी डेब्ट' HMPV के बढ़ने का एक प्रमुख कारण हो सकता है, लेकिन यह इकलौता कारण नहीं हो सकता है. पुणे के बीजे मेडिकल कॉलेज में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. राजेश कार्यकार्ते ने बताया कि HMPV के बढ़ने में मौसम का भी बहुत बड़ा रोल है. वह कहते हैं, "हमारे नैसल पैसेज में पैथोजेन के खिलाफ सुरक्षात्मक बैरियर के रूप में काम करने वाला बलगम ठंड और बर्फीली हवाओं में कम प्रभावी हो जाता है. ऐसे में वायरस के लिए नैसल सेल्स के सीधा कॉनटैक्ट में आ जाता है और आसानी से नाक के जरिए आपको संक्रमित कर सकता है."
बच्चों के साथ-साथ इन लोगों के लिए भी है जोखिम
रिपोर्ट के अनुसार, 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे, शिशु और वृद्धों में इस वायरस से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा है. इसके साथ ही कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग, अस्थमा या सीओपीडी जैसी श्वसन समस्याओं वाले लोगों को भी HMPV का खतरा है. अगर कोई महिला प्रेग्नेंट है तो वह भी इस वायरस की चपेट में आ सकती है. ऐसे में बाहर निकलने से पहले आप पूरी सावधानी बरतें.
वायरस से कैसे करें अपनी सुरक्षा?
रिपोर्ट्स के अनुसार HMPV से सुरक्षित रहने के लिए चीन में स्वास्थ्य अधिकारियों ने हाथ धोने, मास्क पहनने और समय पर जांच कराने के लिए कहा है. ऐसे में आप अपने हाथों को साबुन और पानी से कम से कम 20 सेकंड तक धोएं. अल्कोहल बेस्ड हैंड सैनिटाइजर का उपयोग करें. जिन लोगों को खांसी-जुकाम हो तो उनसे दूर रहने की कोशिश करें.
काफी पुराना है HMPV का इतिहास
अचानक HMPV के मामलों में आई बढ़त के कारण लोगों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हो गया है और सभी इसे नया वायरस समझ रहे हैं, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि यह नया नहीं है. इस वायरस की खोज डच साइंटिस्ट्स द्वारा साल 2000 में की गई थी. जब इस वायरस का पहला मामला पाया गया तो इसके जीनोम का अनुक्रमण 2001 में किया गया था. बाद में, इसके सीरोलॉजिकल अध्ययनों से पता चला कि एचएमपीवी 1958 से ही नीदरलैंड में मौजूद था.