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महिला टीचर ने स्टूडेंट से शादी के लिए कराया सेक्स चेंज, जानें लड़की से लड़का बनना कितना मुश्किल

दुनिया भर में पिछले कुछ समय से जेंडर चेंज करवाने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. वहीं, भारत में भी अब जेंडर चेंज करवाना आम हो चुका है. ऐसे लोग जो जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर या जेंडर डायसोफोरिया से पीड़ित होते हैं, वो ऑपरेशन कराकर अपना शरीर और बनावट बदल लेते हैं. लेकिन क्या किसी के लिए अपनी लैंगिक पहचान को बदलना इतना आसान होता है?

भारत में क्यों बढ़ रहा है जेंडर चेंज का चलन भारत में क्यों बढ़ रहा है जेंडर चेंज का चलन
युद्धजीत शंकर दास
  • नई दिल्ली,
  • 11 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:27 PM IST

राजस्थान में हाल ही में एक जोड़े ने प्यार के बाद शादी कर ली जिसकी चर्चाएं पूरे देश भर में हुई. इसकी वजह थी कि ना ही ये शादी मामूली थी और ना ही इस जोड़े का प्यार. यहां प्यार के लिए एक महिला अपना जेंडर बदलकर पहले पुरुष बनीं और फिर अपनी स्टूडेंट के साथ शादी की. स्कूल में मिलने-जुलने के दौरान फिजिकल एजुकेशन की टीचर मीरा और कल्पना के बीच प्यार हो गया. इनका प्यार इतना परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. मगर दोनों के बीच जेंडर की दीवार थी. इसके बाद मीरा ने साल 2019 में जेंडर चेंज कराने का फैसला लिया. कई बार सर्जरी करवाई.

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जेंडर चेंज प्रक्रिया पूरी होने के बाद वह मीरा से आरव बन गईं. इसके बाद चार नवंबर को अपनी स्टूडेंट कल्पना से शादी रचा ली. इस शादी से दोनों के परिवार बेहद खुश हैं. हालांकि ये पहली घटना नहीं है जहां किसी महिला ने अपना जेंडर चेंज करवाया हो. बल्कि प्लास्टिक सर्जरी के दौर में अक्सर हमारे सामने महिला से पुरुष और पुरुष से महिला बनने की खबरें सामने आती रहती हैं. ऐसी खबरों को सुनकर कई बार हमारे मन ये सवाल भी उठते हैं कि आखिर क्यों लोग अपने शरीर और व्यक्तित्व को पूरी तरह बदलते हैं और यह कितना आसान या मुश्किल है? आज हम अपनी इस खबर में इसी बारे में विस्तार से बात करेंगे.

लोग क्यों करवाते हैं जेंडर चेंज
जेंडर चेंज करवाना सुनने में जितना मुश्किल है, उससे कही ज्यादा कठिन है. लोग ऐसा इसलिए करवाते हैं ताकि फिजिकल अपीयरंस उनकी जेंडर आइडेंटिटी से मेल खाए. लोग ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वो जेंडर आइडेंटिटी डिसऑर्डर या जेंडर डिस्फोरिया का अनुभव करते हैं. जेंडर डिस्फोरिया उस स्थिति को कहते हैं जहां एक महिला, पुरुष और एक पुरुष महिला की तरह महसूस करते हैं. जिन लोगों को जेंडर डायसफोरिया होता है, वो इस तरह का ऑपरेशन कराते हैं. 

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पिछले कुछ सालों में क्यों बढ़ा है जेंडर चेंज कराने का चलन
जेंडर चेंज कराने के लिए किसी भी व्यक्ति को सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है. सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) एक सर्जिकल प्रक्रिया या यूं कहें कि कई प्रक्रियाओं की श्रृंखला है जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति की शारीरिक बनावट को बदल दिया जाता है. सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी को जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी, जेनिटल रिकंस्ट्रक्शन सर्जरी और सेक्स रीअलाइनमेंट सर्जरी भी कहा जाता है. 

दुनिया भर में कितने लोग बदलवाते हैं अपना जेंडर
दुनिया में कितने लोग अपना जेंडर चेंज करवाते हैं, इसका सटीक आंकड़ा बताना मुश्किल है लेकिन सर्जरी के इनसाइक्लोपीडिया के आंकड़ों की मानें तो अमेरिका में हर साल लगभग 100 और 500 के बीच सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी होती हैं. दुनिया भर में ये संख्या दो से पांच गुना या इससे ज्यादा अधिक हो सकती है. वहीं, भारत में भी अब सेक्स चेंज करवाना आम हो चुका है. पिछले कुछ समय से सेक्स चेंज कराने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है. 

कैलिफॉर्निया के ट्रांसजेंडर सर्जरीस के एक्सपर्ट विशेषज्ञ मार्सी बोवर्स ने एक इंटरव्यू में कहा कि वो हर साल लगभग 200 सेक्स चेंज सर्जरी करते हैं. इनमें तीन चौथाई लोग अपनी आइडेंटिटी पुरुष से महिला में बदलते हैं.

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कोई व्यक्ति अपने लिंग को बदलने की प्रक्रिया कैसे शुरू करता है?

वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ (WPATH)के अनुसार, किसी के लिए भी जन्म के साथ मिले शरीर को बदलना इतना आसान नहीं होता, भले ही इंसान खुद ऐसा चाह रहा हो. इस सर्जरी को कराने से पहले मानसिक तौर पर भी तैयार रहना पड़ता है जिसके लिए डॉक्टर उस व्यक्ति को मनोचिकित्सक से बात करने की सलाह देते हैं.

उसकी अनुमति के बिना ये इस तरह की सर्जरी नहीं कराई जा सकती. व्यक्ति को वाकई में जेंडर डिस्फोरिया है या नहीं, इसके लिए मनोरोग विशेषज्ञ से एक प्रमाणपत्र भी लेना पड़ता है जिसमें वो इस विकार की पुष्टि करता है. ये प्रमाणपत्र सर्जरी कर रहे डॉक्टर को सौंपना भी पड़ता है. जेंडर चेंज करने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले डॉक्टर ये भी देखता है कि उस व्यक्ति को कोई गंभीर बीमारी तो नहीं है. इसके बाद व्यक्ति के रिप्रोडक्टिव पार्ट्स और अन्य अंगों को बदलने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.

सर्जरी से पहले दिए जाते हैं हार्मोन्स
जेंडर चेंज की प्रक्रिया की शुरुआत हार्मोन थेरेपी से होती है. इस स्टेज पर महिला में पुरुष और पुरुष में महिला वाले हार्मोन इंजेक्शन और दवाओं के जरिए शरीर में पहुंचाए जाते हैं. सर्जरी से पहले महिला को एड्रोजन हार्मोन दिया जाता है ताकि उसके शरीर पर पुरुषों की तरह बाल विकसित हों और दाढ़ी आए. वहीं, जो पुरुष अपना जेंडर चेंज कराकर महिला बनना चाहता है, उसे एंटी-एड्रोजन हार्मोन दिए जाते हैं ताकि उसके शरीर की मांसपेशियों में बदलाव हो, शरीर के हिस्सों में फैट्स का जमाव बदल सके और शरीर के बाल कम हो जाएं. कुल मिलाकर उस आदमी को महिला के शरीर की बनावट में ढाला जाता है. इसके बाद उस व्यक्ति में हार्मोनल बदलाव होने लगते हैं और आगे की प्रक्रिया शुरू की जाती है.

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सर्जरी के दौरान क्या होता है?
पुरुष से महिला में बदलने वाली सर्जरी आसान, कम खर्चीली और आमतौर पर महिला से पुरुष बनने की सर्जरी की तुलना में अधिक सफल होती है. यही कारण है कि कम ही महिलाएं, महिला से पुरुष बनने के लिए अपनी सर्जरी करवाती हैं. इसके अलावा दूसरा कारण ये है कि महिला से पुरुष बनने की सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी की प्रक्रिया बेहद महंगी होती है.

पुरुष से महिला बनने की सर्जरी में पुरुष के अंडकोष (जहां वीर्य बनता है) और रिप्रोडक्टिव पार्ट के अधिकांश हिस्से को हटा दिया जाता है और यूरेथ्रा (मूत्रमार्ग) को छोटा कर दिया जाता है. सर्जरी करा रहे व्यक्ति में उसके शरीर से लिए गए मांस से ही महिला के अंग बनाए जाते हैं. 

वहीं, महिला से पुरुष की सर्जरी में स्तन, गर्भाशय और अंडाशय को हटाया जाता है और शरीर के अन्य हिस्सों से लिए गए मांस से पेनिस बनाया जाता है. 

क्या सेक्स चेंज करवाने के बाद पछताते हैं लोग
इस तरह के मामलों में यह काफी दुर्लभ होता है. मार्सी बोवर्स ने कहा कि उसने जिन 1,300 लोगों का ऑपरेशन किया है, उनमें केवल दो ही लोगों ने अपने पुराने शरीर में लौटने की ख्वाहिश की थी. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि जेंडर डायसफोरिया की चुनौतियों से निपटने के लिए सर्जरी एक चमत्कारिक इलाज है. कई बार इस तरह के ऑपरेशन के बाद लोग अपने जीवनसाथी, परिवार, मित्रों और कई बार नौकरी तक खो देते हैं. कई बार वो खुद को पूरी तरह से अकेला पाते हैं.

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जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, 1960 के दशक में सबसे पहले सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी की शुरुआत करने वाले संस्थानों में शामिल थी. लेकिन कुछ समय बाद उसने अपनी प्रैक्टिस बंद कर दी क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि ये इस तरह के लोगों की बहुत ज्यादा मदद नहीं कर रहा है.

सेक्स चेंज के बाद भी सामने आती हैं ये चुनौतियां

स्वीडन की करोलिंस्का इंस्टीट्यूट की 2011 के अध्ययन से पता चला है कि सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी के बाद इस तरह के लोगों में बाकियों की तुलना में मृत्यु दर, सुसाइडल टेंडेंसी (खुदखुशी करने की प्रवृत्ति) मानसिक रोग जैसे फैक्टर्स ज्यादा देखने को मिलते हैं. हमारे निष्कर्ष बताते हैं कि सेक्स रिअसाइनमेंट, हालांकि जेंडर डायसफोरिया की भावना को कम करता है. लेकिन इस परेशानी का पर्याप्त और सफल इलाज नहीं है. इसलिए जरूरी है कि इस तरह की सर्जरी के बाद उस व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा देखभाल की जाए.


 

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