
साउथ सिनेमा की मशहूर एक्ट्रेस नयनतारा और विग्नेश शिवन हाल ही में सरोगेसी की मदद से जुड़वां बेटों के माता पिता बने हैं. नयनतारा और विग्नेश की इसी साल 9 जून 2022 को शादी हुई थी. सोशल मीडिया पर इस खबर को शेयर करते हुए विग्नेश ने लिखा- नयन और मैं अम्मा और अप्पा बने हैं... हम जुड़वां बच्चों के माता -पिता बने हैं. उन्होंने आगे लिखा, हमारी सभी प्रार्थनाओं और पूर्वजों का आशीर्वाद हमें 2 बच्चों के रूप में मिला है. अब लाइफ और ज्यादा रोशन और खूबसूरत दिख रही है.
विग्नेश ने सोशल मीडिया पर इस पोस्ट के साथ ही दो फोटोज भी शेयर किए हैं. इन फोटोज में नयनतारा और विग्नेश अपने दोनों जुड़वां बच्चों के पैरों को चूमते हुए नजर आ रहे हैं. फैन्स नयनतारा और विग्नेश की इन फोटोज को काफी पसंद कर रहे हैं और इस स्टार जोड़ी के घर आए नन्हें बच्चों पर जमकर प्यार लुटा रहे हैं. नयनतारा और विग्नेश ने अपने बच्चों का नाम भी डिसाइड कर लिया हैं. कपल ने अपने दोनों बच्चों का नाम यूइर और उलगम रखा है.
सोशल मीडिया पर विग्नेश के पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर #surrogacy ट्रेंड कर रहा है. कई लोग 37 साल की नयनतारा के बिना प्रेग्नेंट हुए मां बनने पर सवाल उठा रहे हैं. जबकि कई यूजर्स ऐसे भी हैं जिनका कहना है कि भारत में सरोगेसी का इस्तेमाल बिजनेस के रूप में किया जा रहा है. हालांकि, सरोगेसी चुनने की असली वजह नयनतारा और विग्नेश ही बता सकते हैं. फिलहाल जानते हैं क्या होती है सरोगेसी और कैसे पैदा होते हैं इससे बच्चे, साथ ही जानते हैं भारत में सरोगेसी के नियम.
क्या होती है सरोगेसी?
सरोगेसी का विकल्प उन महिलाओं के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है जो प्रजनन से जुड़ी समस्याओं, गर्भपात या जोखिम भरे गर्भावस्था के कारण गर्भधारण नहीं कर सकतीं. सरोगेसी को आम भाषा में किराए की कोख भी कहा जाता है, यानी बच्चा पैदा करने के लिए जब कोई कपल किसी दूसरी महिला की कोख किराए पर लेता है, तो इस प्रक्रिया को सरोगेसी कहा जाता है, यानी सरोगेसी में कोई महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए प्रेग्नेंट होती है. अपने पेट में दूसरे का बच्चा पालने वाली महिला को सरोगेट मदर कहा जाता है.
कितने तरह की होती है सरोगेसी
सरोगेसी 2 तरह की होती है. आइए जानते हैं इनके बारे में-
ट्रेडिशनल सरोगेसी- इस तरह की सरोगेसी में होने वाले पिता या डोनर का स्पर्म सरोगेट मदर के एग्स से मैच कराया जाता है. फिर डॉक्टर कृत्रिम तरीके से सरोगेट महिला के कर्विक्स, फैलोपियन ट्यूब्स या यूटेरस में स्पर्म को सीधे प्रवेश कराते हैं. इससे स्पर्म बिना किसी बाधा के महिला के यूटेरस में पहुंच जाता है.
सरोगेट मदर फिर नौ महीने बच्चे को अपनी कोख में पालती है. इसमें सरोगेट मदर ही बॉयोलॉजिकल मदर या जैविक मां होती है. इस स्थिति में अगर होने वाले पिता का स्पर्म इस्तेमाल नहीं किया जाता तो किसी डोनर के स्पर्म का भी इस्तेमाल किया जा सकता है. अगर डोनर के स्पर्म का इस्तेमाल किया जाता है तो पिता का भी बच्चे से जेनेटिकली रिलेशन नहीं होता है. इसे ट्रेडिशनल या पारंपरिक सरोगेसी कहा जाता है. हालांकि, ज्यादातर लोग जेस्टेशनल सरोगेसी का तरीका ही अपनाते हैं.
जेस्टेशनल सरोगेसी- इस तरह की सरोगेसी में सरोगेट मदर का बच्चे से रिलेशन जेनेटिकली नहीं होता है, यानी प्रेग्नेंसी में सरोगेट मदर के एग का इस्तेमाल नहीं होता है. इसमें सरोगेट मदर बच्चे की बायोलॉजिकल मां नहीं होती है. वे सिर्फ बच्चे को जन्म देती है. इसमें होने वाले पिता के स्पर्म और माता के एग्स का मेल या डोनर के स्पर्म और एग्स का मेल टेस्ट ट्यूब कराने के बाद इसे सरोगेट मदर के यूटेरस में ट्रांसप्लांट किया जाता है.
वेबएमडी के अनुसार, अमेरिका में, जेस्टेशनल सरोगेसी कानूनी रूप से कम जटिल है क्योंकि माता-पिता दोनों के बच्चे के साथ आनुवंशिक संबंध होते हैं. नतीजतन, पारंपरिक सरोगेसी की तुलना में जेस्टेशनल सरोगेसी अधिक आम हो गई है. जेस्टेशनल सरोगेसी का उपयोग करके यहां हर साल लगभग 750 बच्चे पैदा होते हैं.
जेस्टेशनल सरोगेसी की मेडिकल प्रक्रिया थोड़ी जटिल होती है. इसमें आईवीएफ तरीका अपनाकर भ्रूण बनाया जाता है और फिर उसे सरोगेट महिला में ट्रांसफर किया जाता है. वैसे तो आईवीएफ का इस्तेमाल ट्रेडिशनल सरोगेसी में भी हो सकता है लेकिन ज्यादातर मामलों में आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन (IUI) ही अपनाया जाता है. IUI ज्यादा आसान मेडिकल प्रक्रिया है. इसमें सरोगेट महिला को तमाम तरह की जांच और ट्रीटमेंट नहीं कराने पड़ते हैं. ट्रेडिशनल में चूंकि सरोगेट का एग ही इस्तेमाल होता है इसलिए बच्चा चाह रही महिला को भी एग निकालने की वजह से होने वाली तमाम दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता है.
भारत में सभी आईवीएफ केंद्रों में जेस्टेशनल सरोगेसी अधिक प्रचलित है क्योंकि इसमें आगे चलकर सरोगेट मदर और बच्चे को लेकर विवाद होने का खतरा कम होता है. इस प्रकार की सरोगेसी को आगे दो प्रकार की व्यवस्था में बांटा गया है- परोपकार के मकसद से की गई सरोगेसी और कमर्शियल या व्यापारिक सरोगेसी.
(परोपकारी सरोगेसी) Altruistic Surrogacy- Altruistic Surrogacy वह होती है, जब दंपति अपने साथ रहने के लिए एक सरोगेट को आमंत्रित करता है, ऐसे में सरोगेट महिला कोई जान-पहचान वाली या अनजान भी हो सकती है. इस स्थिति में दंपति ही सरोगेट मदर के सभी खर्चे उठाता है.
कमर्शियल सरोगेसी- कमर्शियल सरोगेसी में बच्चे को जन्म देने के लिए सरोगेट मां को भुगतान किया जाता है, भारत में कई कारणों के चलते कमर्शियल सरोगेसी बैन है. कमर्शियल सरोगेसी का काफी दुरुपयोग भी होने लगा है.
सरोगेट चुनते समय इन बातों का रखें ध्यान
उदयपुर के इंदिरा आईवीएफ के चिकित्सा निदेशक डॉ. क्षितिज मर्डिया का कहना है कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि सरोगेट मां स्वस्थ हो और उसकी उम्र 21 से 40 वर्ष के बीच में हो.
- सामान्य फिटनेस टेस्ट जैसे ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर लेवल, थायरॉयड के अलावा सरोगेट महिला के मानसिक स्वास्थ्य की जांच भी करवानी चाहिए.
- इसके अलावा यह भी सलाह दी जाती है कि सरोगेट महिला ने पहले भी किसी स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया हो.
भारत में अब क्या हैं सरोगेसी के नियम?
मुंबई, बायकुला के मसिना अस्पताल के स्त्री रोग विशेषज्ञ और प्रजनन चिकित्सा विशेषज्ञ, डॉ. राणा चौधरी ने कहा कि, भारत में कमर्शियल सरोगेसी प्रतिबंधित है. ऐसे में मानदंड यह है कि सरोगेट महिला शादीशुदा हो और उसका अपना बच्चा भी हो. सरोगेट महिला की उम्र 25 से 35 के बीच में होनी चाहिए. वह महिला सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले दंपत्ति के परिवार से होनी चाहिए. लेटेस्ट सरोगेसी रेगुलेशन बिल के मुताबिक, कमर्शियल सरोगेसी पर बैन है और केवल Altruistic Surrogacy ही की जा सकती है. जिसमें सरोगेट के मेडिकल एक्सपेंस और इंश्योरेंस कवर को छोड़कर इच्छुक माता-पिता द्वारा कोई अन्य शुल्क या खर्च कवर नहीं किया जाएगा.
डॉ चौधरी ने कहा, " नए नियम के मुताबिक, सरोगेट की उम्र अब 25-35 साल के बीच रखी गई है, और वह अपने जीवनकाल में केवल एक बार सरोगेट के रूप में काम कर सकती है, पहले यह तीन बार था." डॉ चौधरी ने कहा कि पहले भारत में कमर्शियल सरोगेसी काफी तेजी से प्रचलित थी और इसमें 15 से 30 लाख रुपए या उससे ज्यादा का खर्चा आता था. लेकिन अब पूरा उद्देश्य सरोगेट के हितों की रक्षा करना है ताकि सरोगेसी की प्रक्रिया के दौरान उसकी अच्छी तरह से देखभाल की जा सके और उसका शोषण न हो."