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World Diabetes Day: दुनिया के कुल डायबिटीज मरीजों का एक चौथाई हिस्सा भारत में, हैरान कर देंगे स्टडी के आंकड़े

वर्ल्ड डायबिटीज डे के मौके पर जारी रिपोर्ट में फास्टिंग ग्लूकोज लेवल और HbA1c को पैरामीटर के रूप में इस्तेमाल किया गया. इस रिपोर्ट में भारत में डायबिटीज की स्थिति को लेकर हैरान करने वाले आंकड़े सामने आए हैं.

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 3:35 PM IST

वर्ल्ड डायबिटीज डे (World Diabetes Day) हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है. यह दिन डायबिटीज (मधुमेह) के प्रति जागरुकता बढ़ाने और इस बीमारी के बारे में लोगों को जानकारी देने के उद्देश्य से मनाया जाता है. वर्ल्ड डायबिटीज डे की शुरुआत आईडीएफ (International Diabetes Federation) और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) द्वारा 1991 में की गई थी. यह दिन प्रोफेसर पॉल डब्ल्यू. ग्रांट के जन्मदिन से जुड़ा हुआ है. ये वही डॉक्टर हैं जिन्होंने इंसुलिन की खोज की थी और इंसुलिन ही डायबिटीज के इलाज में अहम भूमिका निभाता है.

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वर्ल्ड डायबिटीज डे का उद्देश्य सिर्फ रोगियों को नहीं, बल्कि सभी को डायबिटीज से बचने के तरीके सिखाना भी है, जैसे सही खान-पान, रोजाना की फिजिकल एक्टिविटी, स्ट्रेस कम लेना और पर्याप्त नींद लेना.

वर्ल्ड डायबिटीज डे के मौके पर लैंसेट में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में डायबिटीज से पीड़ित कुल वयस्कों (82.8 करोड़) में से एक चौथाई (21.2 करोड़) भारत में हैं. 2022 तक के आंकड़ों के आधार पर, सबसे अधिक डायबिटीज रोगियों वाले देश चीन,अमेरिका, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और ब्राजील हैं. WHO के सहयोग से एनसीडी रिस्क फैक्टर कोलैबोरेशन द्वारा की गई इस रिसर्च में डायबिटीज की दर और इलाज दोनों में सामने आए रुझानों का विश्लेषण बताया गया है. 

रिसर्चर्स ने 1000 से अधिक रिसर्चों से उपलब्ध 18 साल से अधिक उम्र के करीब 14 करोड़ से अधिक लोगों के डेटा का उपयोग किया. उन्होंने डायबिटीज का पता लगाने वाले दो मापदंडों फास्टिंग प्लाज्मा ग्लूकोज (FPG) और दूसरा तीन महीने की औसत ब्लड शुगर काउंट (HbA1c) को शामिल किया.

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रिसर्च में क्या आया सामने?

मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन की चेयरमैन और लैंसेट रिसर्च के राइटर्स में से एक डॉ. आरएम अंजना (Dr R M Anjana) का कहना है, 'हमने पिछले साल अपने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-इंडिया डायबिटीज (ICMR-INDIAB) के पेपर में ओरल ग्लूकोज  टॉलरेंस टेस्ट (OGTT) को पैरामीटर बनाया था जो प्री-डायबिटिक का भी संकेत दे सकता है. इस पेपर में HbA1c और फास्टिंग ग्लूकोज को मुख्य पैरामीटर के रूप में उपयोग करने के कारण डायबिटीज के मरीजों की संख्या में इजाफा हुआ है.'

डायबिटीज एक्सपर्ट डॉ. सीएस याज्ञिक (Dr C S Yajnik) का कहना है, '2012 के पेपर से ये बात पता चलती है कि  एनीमिया और आयरन की कमी से HbA1c का लेवल बढ़ जाता है जिससे उन लोगों में डायबिटीज और प्री-डायबिटीज का गलत डायग्नोसिस हो सकता है. इसलिए ऐसे देशों में ग्लूकोज मापने को अधिक प्राथमिकता दी जाती है जहां एनीमिया और आयरन की कमी कॉमन है.'

HbA1c के पैमाने को छोड़ दिया जाए तो ICMR-INDIAB ने 2022 में भारत में डायबिटीज का प्रसार महिलाओं में 14.4 प्रतिशत (6.9 करोड़) और पुरुषों में 12.2 प्रतिशत (6.2 करोड़) यानी कुल मिलाकर 13.1 करोड़ है.

जिम में हो फ्री एंट्री

डॉ. अंजना का कहना है, 'मोटापा और खराब खान-पान डायबिटीज के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार हैं. भारत को कम आय वाले क्षेत्रों में गलत खान-पान को प्रतिबंधित करने, हेल्दी चीजों को किफायती बनाने, स्कूल में फ्री भोजन कराने, टहलने और एक्सरसाइज करने के लिए स्थानों को बढ़ावा देने, पार्क और फिटनेस सेंटर्स में फ्री एंट्री जैसी योजनाओं की आवश्यकता है.'

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इलाज की है कमी

दुनिया भर में 30 से अधिक उम्र वाले पांच में से 3 लोगों को 2022 में डायबिटीज की दवा नहीं मिली जो 1990 की संख्या से साढ़े तीन गुना अधिक है. 2022 में, भारत में लगभग 6.4 करोड़ पुरुष और 6.9 करोड़ महिलाएं डायबिटीज से पीड़ित थीं जिन्हें इलाज भी नहीं मिला.

इंपीरियल कॉलेज लंदन के सीनियर राइटर और प्रोफेसर माजिद इज्जती का कहना है, 'यह काफी चिंताजनक बात है क्योंकि डायबिटीज से पीड़ित लोग कम आय वाले देशों में कम उम्र के होते हैं और इलाज के अभाव में उन्हें जीवन भर काफी मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं जिनमें अंग फेल होना, हार्ट डिसीज, किडनी डैमेज, आंखों की रोशनी जाने जैसी कई स्थितियां शामिल हैं. कुछ मामलों में समय से पहले मौत भी हो सकती है.

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