ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की कोरोना वायरस वैक्सीन के ट्रायल के नतीजे सामने आने के बाद लोगों में एक उम्मीद की किरण जगी है. ये वैक्सीन ट्रायल में सुरक्षित और असरदार साबित हुई है. ऑक्सफोर्ड के अलावा, चीन की वैक्सीन भी तीसरे क्लीनिकल ट्रायल में पहुंच गई है. हालांकि कोरोना को हराने के लिए पूरी तरह इस वैक्सीन पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है. वैज्ञानिकों का भी कहना है कि अभी इस वैक्सीन को लेकर कई चुनौतियां पार करनी बाकी हैं.
वैक्सीन को लेकर वैज्ञानिक फिलहाल ये मानकर चल रहे हैं कि ये केवल बीमारी की गंभीरता को कम कर सकती है. जिसका मतलब है कि कोरोना वायरस से लोगों के मरने की संभावना कम होगी.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की प्रायोगिक कोरोना वायरस वैक्सीन सुरक्षित है और इसने लगभग 1,000 वालंटियर्स में मजबूत इम्यून रिस्पॉन्स विकसित की है. इससे उम्मीद जगी है कि ये वैक्सीन कोरोना से मची तबाही को कम कर सकती है.
वैक्सीन निर्माण की प्रक्रिया में ट्रायल के इन नतीजों को बड़ी उपलब्धि कहना गलत नहीं होगा, लेकिन ये कहना भी जल्दबाजी होगी कि ये वैक्सीन संक्रमण को पूरी तरह से रोक सकती है. इस वैक्सीन को अभी कई तरह की मुश्किलें पार करनी होंगी.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी का अगला कदम ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसे ज्यादा संक्रमण दर वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर ट्रायल करना है. इससे ये पता लगाने में आसानी होगी कि क्या दूसरे लोगों की तुलना में वैक्सीन कराने वाले लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण की संभावना कम होगी.
स्टडी के प्रमुख लेखक प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने ऑक्सफोर्ड के नतीजों को एक मील का पत्थर बताते हुए कहा, 'समस्या ये है कि हम ये नहीं जानते हैं कि आक्रामक वायरस से सुरक्षा देने के लिए इस वैक्सीन को किस स्तर पर देने की जरूरत होगी और इसके लिए हमें और क्लिनिकल ट्रायल करने की जरूरत होगी.'
वैक्सीन के कारगर होने की संभावना पर अटलांटा में 'एमोरी यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन' के एग्जीक्यूटिव एसोसिएटिव डीन डॉ. कार्लोस डेल रियो ने कहा, 'अगर हम कोई विमान बना रहे हैं तो समझ लीजिए अभी हम उसके प्रोडक्शन लेवल पर हैं. अभी सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि ये विमान आपको सुरक्षित जमीन पर उतार सकता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये मुझे यहां से पैरिस लेकर जा सकता है.'
उन्होंने कहा कि वैक्सीन की खोज में अब तक हम असाधारण गति से आगे बढ़े हैं. आमतौर पर, एक वैक्सीन की टेस्टिंग और ट्रायल के कई अलग-अलग स्टेज को पूरा होने में एक दशक तक लग जाता है. लेकिन 6,00,000 से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुलाने वाली अचानक फैली इस महामारी का ही नतीजा है कि दुनियाभर में दर्जनों वैक्सीन कैंडिडेट्स क्लिनिकल ट्रायल में हैं.