
अगर कोई मुझसे पूछे कि मैंने शादीशुदा होने के बावजूद किसी और से क्यूं संबंध बनाया तो इसका ठीक-ठीक उत्तर मेरे पास भी नहीं है. हमारी शादी को एक दो नहीं बल्कि 7 साल हो चुके थे. हम दोनों बहुत खुश थे. वो सब कुछ हम दोनों के बीच था जिसको लेकर लोग सपने सजाते है.
रिश्ते में हम दोनो खुश थे. पर्सनली और प्रोफेशनली दोनों तरह से मजबूत थे. मैं एक IT कंसल्टेंट था और मेरी पत्नी पब्लिक रिलेशन की एक बहुत बड़ी कम्पनी में काम करती थी. काम का दबाव बढ़ा और हम दोनों ने क्वालिटी टाइम साथ बिताना कम कर दिया.
मुझे काम के सिलसिले में मुझे कहीं और जाना पड़ा. कुछ वक्त तक तो सब ठीक रहा लेकिन कुछ समय बाद मैं अकेला महसूस करने लगा. मैं करियर में आगे बढ़ रहा था और अपनी उपलब्धियों का जश्न किसी अपने के साथ मनाना चाहता था. लेकिन मेरी पत्नी की भी अपनी प्रोफेशनल बंदिशें थीं. तन्हाई धीरे-धीरे घर करने लगी और मैं बहुत अकेला महसूस करने लगा.
लेकिन ये कहना कि इसमें मेरा कोई कुसूर नहीं है, गलत होगा. दुनिया में कई और लोग हैं जो इस दौर से गुज़रते हैं लेकिन वे तो ऐसा नहीं करते. सच कहूं तो मेरे मन में कहीं ना कहीं ये बात आनी शुरू हो गई थी कि मुझे किसी और की तलाश करनी चाहिए. किसी नए साथी से मिलना और फ्लर्ट करने का मेरा बहुत मन होने लगा.
आखिरकार ऑफिस की ही एक लड़की से मैंने बातचीत करनी शुरू कर दी. शुरू में तो सबकुछ ठीक-ठीक लगा. लेकिन धीरे-धीरे हमारी नजदीकियां बढ़ने लगीं. हमने शामें बितानी शुरू की फिर डिनर डेट्स पर जाने लगे. फिर छुट्टियां साथ बिताने लगे हफ्तों और फिर महीनों...
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फिर वो भी दिन आया जब मेरी पत्नी को मेरे इस रिश्ते के बारे में पता चल गया. मेरे एक दोस्त ने उसे सबकुछ बता दिया था. हम दोनों में झगड़ा हुआ. बात बिगड़ गई और तलाक हो गया.
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इस बात को पांच साल हो गए हैं. आज जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूं तो पाता हूं कि मैं कायर था. मैंने परेशानियों से लड़के बजाय भागना बेहतर समझा. साथी से दूरी होने पर किसी और की तरफ आकर्षण बढ़ना सामान्य बात है लेकिन आपका व्यक्तित्व इन्हीं पैमानों पर परखा जाता है. आज खुद से नज़र मिलाने की हिम्मत नहीं होती है. मेरे पास एक अच्छा परिवार था, एक अच्छी पत्नी थी लेकिन मैंने नासमझी दिखाई और एक झटके में सबकुछ गंवा दिया. आज मैं खुद को इस भरी दुनिया में अकेला पाता हूं, अजनबियों से घिरा हुआ. तन्हाई का पहाड़ रोजाना भारी होता जा रहा है. मैंने एक खुशहाल परिवार का हिस्सा होने का मौका गंवा दिया है.