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बहुत खूबसूरत है मध्य प्रदेश की ये अनसुनी जगह

ये ऐसा रास्ता है जहां पहाड़ों और बादलों का मेल मन को रोमांचित कर देता है.

बादल और पहाड़ों का होता है मेल बादल और पहाड़ों का होता है मेल
प्रज्ञा बाजपेयी
  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 3:53 PM IST

मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र को यूं तो पिछड़ा इलाका माना जाता है, मगर यह क्षेत्र प्राकृतिक संपदा से भरा पड़ा है. यहां की प्राकृतिक छटा मनभावन होती है. बारिश के मौसम में उमड़ते-घुमड़ते बादल कई बार पहाड़ों से गलबहियां करते नजर आते हैं, जो रोमांचित कर देते हैं.

संभागीय मुख्यालय शहडोल से अनूपपुर जिले के आदिवासी बहुल गांव बीजापुरी के ओर जाने वाले लगभग 40 किलोमीटर के रास्ते में कई स्थान ऐसे आते हैं, जहां दो पहाड़ों के बीच से निकलती सड़क पर एक साथ दो वाहन भी नहीं गुजर सकते. कुछ पल के लिए तो ऐसे लगता है, जैसे पहाड़ ही हमारे ऊपर आ गया हो!

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संकरे और घुमावदार रास्ते से गुजरते हुए आसमान पर मंडराते बादल कई बार ऐसे लगते हैं, जैसे पहाड़ों से गलबहियां कर रहे हों. यह नजारा बड़ा मनोरम और कुछ वक्त के लिए ठहरने को मजबूर कर देता है. इस तरह के दृश्य आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में ही देखने को मिलते हैं.

स्थानीय निवासी संतोष कुमार द्विवेदी का कहना है कि यह क्षेत्र प्राकृतिक और सांस्कृतिक तौर पर समृद्ध है, यहां आदिवासी वर्ग बहुतायत में हैं या यूं कहें कि ग्रामीण इलाकों में आदिवासियों के अलावा अन्य समुदाय के लोग कम ही हैं. आदिवासी प्रकृति और संस्कृति से प्रेम करते हैं, जिसके चलते जंगल बचे हैं और उनकी सांस्कृतिक विरासत बरकरार है. यही कारण है कि बारिश के मौसम में इस क्षेत्र का दृश्य अद्भुत और मनमोहक होता है. हरे भरे पहाड़ों के पास आते बादल, दोस्ती का अहसास करा जाते हैं.

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आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता इंजीनियर विजय कोल कहते हैं, इस क्षेत्र को पर्यटनस्थल के तौर पर विकसित किया जा सकता है, मगर सरकारों का इस ओर ध्यान ही नहीं है. सरकार पहल करे तो एक तरफ जहां पर्यटक प्रकृति का आनंद ले सकेंगे, वहीं यहां की संस्कृति को भी जान पाएंगे. यहां के नृत्य, गीत, संगीत मनभावन होते हैं, जो हर किसी का दिल जीत सकते हैं.

यह वह क्षेत्र है, जहां बांधवगढ़ जैसा राष्ट्रीय उद्यान है और अमरकंटक जैसा धार्मिक नगर. लिहाजा, राज्य सरकार और पर्यटन विकास निगम ठान ले तो इस इलाके को पर्यटन क्षेत्र के तौर पर विकसित किया जा सकता है, मगर इस तरफ सरकार और निगम दोनों का ही ध्यान नहीं है.

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