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तस्वीरें साझा करने वाली वेबसाइट-इंस्टाग्राम ने टोरंटो की रहने वाली कवयित्री रूपी कौर की मासिक धर्म के दौरान कपड़ों पर लगे खून के धब्बों वाली तस्वीर यह कहकर अपने वेबसाइट से हटा दी कि यह तस्वीर सामाजिक दिशा निर्देशों के विरुद्ध जाती है.
मासिक धर्म और उससे जुड़ी बातों को लेकर समाज का रवैया हमेशा से रूढ़िवादी रहा है, जिस कारण महिलाओं के जीवन की एक सामान्य और स्वाभाविक क्रिया शर्म, लज्जा एवं चुप्पी का विषय बनकर रह गई है.
विशेषज्ञों का मानना है कि मासिक धर्म को लेकर सदियों से चली आ रही इस चुप्पी को तोड़ने की जरूरत है, इस पर खुल कर बात करने की जरूरत है, जिससे समाज के विचार बदलेंगे और अस्वीकृति के बजाय इसे आत्मविश्वास और साहस के रूप में देखा जाएगा.
समाज भले ही आज महिलाओं को लेकर थोड़ा उदार हुआ है और महिलाएं अपेक्षाकृत प्रगतिशील हुई हैं, लेकिन आज भी कई परिवारों में लड़कियों को मासिक धर्म के दौरान परिवार से अलग थलग कर दिया जाता है, मंदिर जाने या पूजा करने की मनाही होती है, रसोई में प्रवेश वर्जित होता है. यहां तक कि उनका बिस्तर अलग कर दिया जाता है और परिवार के किसी भी पुरुष सदस्य से इस विषय में बातचीत न करने की हिदायत दी जाती है.
महिलाओं के लिए काम करने वाली संस्था आकार इनोवेशंस के संस्थापक जयदीप मंडल ने बताया, 'दुनियाभर में मासिक धर्म वर्जित विषय है. इससे जुड़े मिथक और गलत मान्यताएं विशेषकर विकासशील देशों और गांवों में देखने को मिलती हैं. कई युवक/पुरुष मासिक धर्म से जुड़े मूलभूत जैव विज्ञान से अंजान हैं. जब तक हम युवतियों, महिलाओं, युवकों और पुरुषों के बीच मासिक धर्म और स्वच्छता के बारे में जागरूकता नहीं फैलाएंगे, स्थिति में सुधार नहीं होगा.'
गुड़गांव के पारस हॉस्पीटल की गायनॉकोलॉजिस्ट नुपुर गुप्ता ने कहा कि किसी वर्जना को तोड़ने की शुरुआत उस पर खुलकर बात करने से होती है. नुपुर ने बताया, 'इसके लिए सबसे अच्छी जगहें स्कूल हैं, जहां इस विषय को यौन शिक्षा और स्वच्छता से जोड़कर चर्चा की जा सकती है. इसके लिए जागरुक और उत्साही शिक्षकों की जरूरत है, जो विद्यार्थियों को मासिक धर्म से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के विषय में जानकारी दे सकें.'
मासिक धर्म से जुड़ी रूढ़ियों को तोड़ने की तरफ कदम उठाते हुए अदिति गुप्ता और तुहीन पॉल ने युवतियों और महिलाओं को मसिक धर्म के दौरान स्वस्थ और सक्रिय रहने में मदद करने के लिए मेंस्ट्रपिडिया का निर्माण किया है.
अदिति ने कहा, 'दिक्कत तब होती है, जब स्कूलों में शिक्षक मासिक धर्म के अध्याय छोड़ देते हैं. वैसे भी स्कूलों में कक्षा आठ-नौ में यह अध्याय जोड़ा जाता है, लेकिन इन दिनों बच्चियों को छठी कक्षा से ही मासिक धर्म शुरू हो जाता है. दूसरी दिक्कत यह है कि घरों में मांएं ही अपनी बच्चियों से इस बारे में किसी से न कहने, पिता या भाई से चर्चा न करने की हिदायत देती हैं. हम अपनी बेटियों की परवरिश शर्म के पर्दे में और बेटों की लापरवाही में करते हैं.'
इनपुट: IANS