
हमारा देश कितनी अद्भुत संस्कृति और कला का घर है, ये हमे यहां कदम-कदम पर महसूस हो जाता है. गुजरे जमाने में दीवारों, इमारतों, मंदिरों, किलों पर उकेरी गईं आकृतियों को देखकर अक्सर लगता है कि कम संसाधनों में लोग किस तरह सिर्फ और सिर्फ अपनी काबिलियत पर खूबसूरत संरचनाओं को जन्म देते थे, जो आज भी उन्हें समाज में जिंदा रखे हैं.
बावली के जरिए वॉटर हारवेस्टिंग यानी पानी के संरक्षण का कॉन्सेप्ट भी भारत में ही सुझाया गया. यहां हम ऐसी ही एक बावली के बारे में जानेंगे जिसे जानकर आप भी उस आर्किटेक्चर को देखने के लिए बेताब हो जाएंगे...
- राजस्थान की आकर्षक कला के उदहारणों में से एक है चांद बावली.
- यह मध्यकालीन भारत की एक अद्भुत संरचना है.
- यह जयपुर से 95 किमी. दूर दौसा जिले के आभानेरी गांव में है.
- चांद बावली 800 से 900 ईसवी के बीच निकुंभ राजवंश के राजा चांद बनवाई थी.
- इसके ठीक सामने प्रसिद्ध हर्षद माता का मंदिर है, कहते हैं यह बावली इन्हीं को समर्पित है.
- यह सीढ़ीदार कुंआ 13 मंजिला इमारत जितना गहरा है.
- इस बावली की गहराई लगभग 100 फीट है.
- इसमें कुल 3500 सीढ़ियां हैं.
- माना जाता है यह दुनिया का सबसे गहरा सीढ़ीदार कुंआ है.
- चांद बावली के निर्माण का मकसद बारिश के पानी को बर्बाद होने से रोकना था.
- जब गांव में पानी की कमी होती थी तो लोग सीढ़ियों से उतरकर गहराई में जाकर पानी भरते थे.
- गर्मियों के मौसम में गांव के लोग यहां बैठकर ठंडक लेते थे.
- इसका निचला हिस्सा बाहरी मौसम से 5-6 डिग्री ज्यादा ठंडा होता है.
- इसके एक तरफ मंडप और शाही घराने के लोगों के लिए कमरे बने हैं.
- चांद बावली की सीढियां और इसकी पूरी बनावट उस समय की सोच व कलाकारी का बेहतरीन उदहारण है.
- इसकी संरचना बीते समय की ज्यामिति (geometrical) समझदारी को भी दर्शाती है.
- यहां बॉलीवुड फिल्म 'भूल भुलैया' का 'सखिया' गाना और हॉलीवुड की 'Dark Knight Rises' जैसी फिल्मों की शूटिंग भी हुई है.
- चांद बावली के पास हर्षद माता मंदिर भी देखने लायक है.