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बच्‍चे के चिड़चिड़ेपन को नजरअंदाज न करें

शि‍शुवस्था में बच्चे रोकर या चिड़चिड़ापन दिखाकर ही अपनी जरूरत के बारे में बता पाते हैं लेकिन जरूरत से ज्यादा रोना बच्चे की मानसिक अवस्था की ओर इशारा करती हैं.

बच्चे की हर गतिविधि‍ का ध्यान रखना बहुत जरूरी है बच्चे की हर गतिविधि‍ का ध्यान रखना बहुत जरूरी है
वन्‍दना यादव
  • नई दिल्ली,
  • 18 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 4:55 PM IST

छोटे बच्चों का रोना बहुत आम सामान्य है और अक्सर माता-पिता बच्चों के इस व्यवहार को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते हैं. लेकिन एक शोध में यह बात सामने आई है कि बच्चे का बेवजह रोना किसी गंभीर मानसिक बीमारी का लक्षण हो सकता है.

छोटे बच्चे रोकर बताते हैं अपनी जरूरत
ज्यादातर छोटे बच्चे हर रोज एक घंटे से लेकर तीन घंटे तक रोते हैं. इसके पीछे कारण यह है कि आपका बच्चा अपने आप खुद कुछ नहीं कर सकता है और वह अपनी हर जरुरत के लिए आप पर ही निर्भर है इसलिए वह अपनी बात रो-रो कर ही बताने की कोशिश करता है.

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मानसिक बीमारी के शुरुआती लक्षण
नॉर्थवेस्टर्न विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा कराए गए एक शोध में कहा गया है कि आपका शिशु अधिक चिड़चिड़ा है तो यह किसी मानसिक समस्या का संकेत भी हो सकता है. वैज्ञानिकों ने शिशुओं द्वारा शुरुआती बाल्यावस्था के दुर्व्यवहार और गम्भीर दुर्व्यवहार को अलग करने के लिए एक प्रश्नावली तैयार की.
वैज्ञानिक पत्रिका चाइल्ड साइकोलोजी एंड साइकेट्री की रिपोर्ट के मुताबिक इसके द्वारा बच्चों में मानसिक बीमारी के शुरुआती अवस्था में पहचान एवं इलाज में सहायता मिल सकती है.

बच्चे की हर गतिविधि‍ पर रखे नजर
शोध के प्रमुख वैज्ञानिक के मुताबिक यह संकेत इशारा करते हैं कि जब शिशु में चिड़चिड़ापन अक्सर होने लगे तो इसका अर्थ है कि वह मानसिक रूप से संघर्ष कर रहा है. शोधकर्ताओं ने तीन से पांच साल के प्री स्कूल जाने वाले 1500 बच्चों के अभिभावकों से उनके बच्चों के व्यहार के सम्बंध में प्रश्न पूछने के लिए 'मल्टीडाइमेंशनल एसेसमेंट ऑफ प्रीस्कूल डिस्रपटिव बिहैवियर ' (एमएपी-डीबी) नामक प्रश्नावली विकसित की.
शोध में पाया गया कि 10 प्रतिशत से कम बच्चे रोज झल्लाते थे और चिड़चिड़ापन दिखाते थे. यह लक्षण लड़के एवं लड़कियों दोनों में ही एक जैसा पाया गया.

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