
कार्तिकी भटनागर की उम्र तब सिर्फ सात वर्ष थी, जब उन्होंने अपनी स्किन के रंग में बदलाव महसूस किया, उनकी स्किन का रंग चकतों में सफेद होने लगा था. मुंह पर दाग से शुरू हुआ ये सिलसिला शरीर के दूसरों अंगों पैर, हाथ, पेट और घुटनों तक जा पहुंचा. कार्तिकी के सहपाठी उनसे दूर होने लगे हैं. कोई उनके साथ खेलना नहीं चाहता. दोस्त चिढ़ाने लगे और विटिलिगो के चलते उनका मजाक बनाते. विटिलिगो स्कीन की बीमारी है.
विश्व भर में 7 करोड़ लोग विटिलिगो नाम की बीमारी से पीड़ित हैं. यह शरीर में मेलेनिन की कमी से होती है, जो स्किन को रंग प्रदान करती है. मेलेनिन की कमी होने से व्यक्ति की स्किन रंग बदलने लगती है.
कार्तिकी के दोस्त श्रेयस किशोर ने बताया कि इलाज के लिए हर तरीके की दवाइयां इस्तेमाल की गई, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. थक हारकर अंत में कार्तिकी ने इस बीमारी से लड़ने का इरादा छोड़ दिया. अपनी स्किन के बदलते रंग को स्वीकार कर लिया. इससे उन्हें मानसिक तौर पर मजबूती मिली.
हाईस्कूल के स्टूडेंट श्रेयस को जब कार्तिकी की विटिलिगो बीमारी के बारे में पता चला, तो वे खुशी के मारे उछल पड़े. श्रेयस ने कहा, 'मेरा पहली प्रतिक्रिया थी, वाह, मुझे तुम्हारी दोहरे रंग की स्किन काफी पसंद है. मुझे यह खूबसूरत लगा. कार्तिकी को लगा कि या तो मैं पागल हूं या वो.'
बाद में श्रेयस ने कार्तिकी से कहा कि उनके पैरों पर स्किन के बदले रंग का आकार ऐपल कंपनी के लोगो जैसा है. बहुत इनकार के बाद कार्तिकी ने इसे स्वीकार किया और फिर उन्होंने इसे देखने का अपना नजरिया ही बदल दिया. कार्तिकी ने अपने शरीर पर चित्रकारी शुरू कर दी. शरीर पर बने सफेद चकतों को क्रिएटिव कार्टून से ढक दिया. कार्तिकी का शरीर रंगों में डूब गया. क्रिएटिव कार्टून और चित्रकारी से कार्तिकी की स्किन एक अलग रंगत में आकर्षक नजर आने लगी. उनके शरीर पर दिल का निशान, प्यारा सा भूत, चिल्लाता आदमी और पहाड़ नजर लगे.
अपनी सकारात्मकता के चलते कार्तिकी ने विटिलिगो पर विजय हासिल कर ली, जिस बीमारी के चलते कार्तिकी को परेशान होना पड़ा. वही कार्तिकी के लिए गर्व का विषय है. अपने शरीर पर पसरी कला कार्तिकी के लिए बेहद खास है. सकारात्मकता, क्रिएटिविटी और थोड़ी जागरूकता से विटिलिगो अब संक्रामक नहीं है और ना ही हानिकारक है. सकारात्मक सोच के दम पर दुनिया भर में 50 मिलियन विटिलिगो से पीड़ित लोगों के जीवन में बदलाव लाया जा सकता है.
कार्तिकी ने अब विटिलिगो को आधार बनाकर इंस्टाग्राम कैंपेन #BareTheMidriff शुरू किया है, जो शरीर की सकारात्मकता पर फोकस करता है. क्रिएटिव तरीके से व्यक्ति अपनी बीमारी पर जीत हासिल कर सकता है. भले ही यह हमारे समाज की कथित मानकों पर खरा नहीं उतरता.
क्या है विटिलिगो की बीमारी
भारत में हर साल विटिलिगो के 10 लाख मामले सामने आते हैं. इसमें व्यक्ति की स्किन अपना रंग बदलने लगती है. यह आमतौर सफेद धब्बों की तरह दिखता है. स्किन अपने सामान्य रंग को छोड़कर सफेद होने लगती है. इसमें इलाज से मदद तो मिलती है, लेकिन यह पूरी तरह ठीक नहीं हो सकता. यह जीवन भर बनी रह सकती है. विटिलिगो के केस में शरीर की कोशिकाएं मरने लगती हैं या काम करना बंद कर देती हैं. ये शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. मुंह, बाल और आंखों के साथ गुप्तांगों पर भी हो सकता है. डार्क रंग के व्यक्ति में इसका उभार ज्यादा नजर आता है. इलाज से स्थिति सुधर सकती है, लेकिन यह पूरी तरह ठीक नहीं हो सकती.