
पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की भगीदारी अब चूल्हे-चौके से निकल कर हर क्षेत्र में बढ़ रही है फिर चाहे सेना में शामिल होकर देश सेवा करने का जज्बा हो या फिर जॉकी की बनकर घोड़ों को मैदान में दौड़ाने का हुनर. सारे दायरों को तोड़ते हुए 33 साल की रूपा सिंह भारत की पहली महिला जॉकी बनी हैं.
अवॉर्ड से भरी है झोली
रूपा सिंह को मीडिया का साथ मिला, उनके अपनों ने उनका हौसला बढ़ाया और उनके नाम कई बड़े अवॉर्ड है. 720 रेस में हिस्सा ले चुकीं रूपा 7 बार चैम्पियन रह चुकी हैं और हाल ही में ऊटी में हुई अन्नामलाई प्लेट प्रतियोगिता भी उन्होंने अपने नाम कर ली है.
आसान नहीं थी मंजिल
रूपा सिंह के दादा उगम सिंह ब्रिटिश सेना के घोड़ों को प्रशिक्षित किया करते थे. पिता नरपत और भाई रवींद्र भी जॉकी ही हैं. रूपा के पिता ने उन्हें चार साल की उम्र से ही घुड़सवारी सिखा दी थी. अपने में एक्सपर्ट होने के बाद भी रूपा को औसत घोड़े दिए जाते थे और उन्होंने औसत घोड़ों की सवारी करते हुए 50 रेस जीतीं और खुद को साबित किया.
सफलता ने दी दस्तक
एक बार जो कदम बढ़ गए तो सफलता दूर कहां थी, ऐसा ही कुछ हुआ रूपा के साथ अब वह अपनी पसंद के घोड़े पर रेस करने लगीं ओर 2010 में मद्रास क्लासिक जीतने के बाद मीडिया ने भी उन्हें नोटिस किया. 2014 में रूपा ने पौलैंड में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशीप में सभी धुरंधर महिला जॉकीज को पछाड़ते हुए खिताब अपने नाम कर लिया.
रूपा कहना है कि घोड़े दौड़ना कोई आसान काम नहीं है और इस दौरान उन्होंने कई बार चोट खाई है. लेकिन एक बार इस काम को चुनने के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. बकौल रूपा, 'मैं बस ये चाहती हूं कि काम को जेंडर के हिसाब से नहीं काबिलियत के हिसाब से देखा जाना चाहिए.'