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ब्यूटी क्वीन, जिसकी मौत को भगवान ने भी कर दिया रिजेक्ट

23 दिनों तक कोमा में रहने के बाद विराली जब वापस लौंटी तो उनके लिए सब कुछ बदल गया था. उनके पैर खो गए थे, पर उड़ान की चाहत बढ़ गई थी. विराली शाह एक इंस्पायरिंग पर्सनैलिटी कैसे बनीं आइये जानते हैं उनके बारे में...

विराली शाह विराली शाह
मेधा चावला
  • नई दिल्ली,
  • 07 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 1:12 PM IST

सितंबर 2006 तक एक नॉर्मल लाइफ जीने वाली बब्ली सी लड़की विराली शाह के जीवन में एक एक्सीडेंट की वजह से सब कुछ बदल गया. वो 23 दिनों तक कोमा में रहीं. जब दवाओं ने असर करना बंद कर दिया, तो डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया. विराली का जिस दिन एक्सीडेंट हुआ, उस दिन उनका बर्थडे था. डॉक्टरों ने कहा, विराली अब कभी अपना बर्थडे नहीं मना पाएंगी.

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मिस वीलचेयर इंडिया पीजंट 2014
बता दें कि विराली शाह एक जानी-मानी मॉडल हैं और साल 2014 में उन्होंने मिस वीलचेयर इंडिया पीजंट का खि‍ताब जीता था. मॉडल और एक्ट्रेस होने के अलावा वो विभि‍न्न मुद्दों खासतौर से विकलांगता पर लिखती भी हैं. उनके लिए बॉलीवुड से भी ऑफर आ रहे हैं. इसके अलावा वो मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं. 

मौत के मुंह से लौटी
पर कुदरत का चमतकार कहिए या विराली की इच्छाश‍क्त‍ि, 23 दिनों तक कोमा में रहने के बाद विराली कोमा से लौट आईं. लेकिन इस बार विराली पहले जैसी नहीं थीं. वो अपने पैरों पर खड़ी न होकर वीलचेयर पर थीं. हमेशा उछलती-कूदती रहने वाली विराली के लिए ये बड़ा झटका था. पर उन्होंने उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ा. आसमान में छेद करने का उनका जज्बा कम नहीं हुआ था.

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मौत के बाद
विराली जब गहरी नींद में सो रही थीं, तब उन्हें बार-बार बस एक ही ख्वाब आता था कि वो सफेद सीढि़यों पर चढ़ती जा रही हैं. घंटों सीढि़यां चढ़ने के बाद एक दरवाजा आता है और उस दरवाजे को बार-बार खटकाने के बावजूद वह खुलता नहीं है. विराली वापस सीढि़यों से नीचे उतर जाती हैं. विराली कहती हैं कि शायद भगवान ने मेरी मौत को रिजेक्ट कर दिया.

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खुद को कैसे किया ठीक
विराली अस्पताल से घर तो लौट आई थीं, पर गर्दन के नीचे उनका शरीर काम नहीं कर रहा था. ऐसे में उनकी मां ही उनकी देखभाल करती थीं. एक दिन विराली ने मां से चीज़ क्रैकर खाने की इच्छा जाहिर की. उनकी मां कटोरी भर कर चीज़ क्रैकर ले आईं और विराली से थोड़ी दूरी पर उन्होंने रख दिया. विराली को ये बात बड़ी अजीब लगी. उन्होंने अपनी मां को कहा कि आप ऐसा क्यों कर रही हैं, मेरा हाथ वहां तक नहीं पहुंच सकता. पर मां ने एक नहीं सुनी. विराली ने भी उनका चैलेंज एक्सेप्ट कर लिया. 40 मिनटों की मशक्कत के बाद आखि‍कार विराली ने खुद से जंग जीत ली. विराली रो रही थीं, उन्हें दर्द जरूर हो रहा था, पर जीतने की खुशी के आंसू भी साथ में बह रहे थे.

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रोल मॉडल
विराली कहती हैं कि उनके जीवन में कोई रोल मॉडल नहीं है. वो खुद अपनी रोल मॉडल हैं. विराली अपनी गलतियों से सीखना चाहती हैं. वो अपनी जिंदगी को अपनी तरह से जीना चाहती हैं. जीवन के दूसरे फेज में विराली खुद को ज्यादा सकारात्मक और एजुकेटेड महसूस करती हैं. क्योंकि वो किताबों को ज्यादा समय दे पाती हैं.

उम्मीद अभी बाकी है
कई सालों तक फीजियोथेरेपी कराने के बाद विराली अब वॉकर की मदद से चल पाती हैं. विराली को उम्मीद है कि वो एक दिन अपने कदमों पर जरूर खड़ी हो पाएंगी.

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