
ये वाकया है पेप्सिको की सीईओ इंद्रा नूई की जिंदगी का. वो दिन उनकी जिंदगी की एक बड़ी सफलता का दिन था. कामयाबी की इस खुशी को घरवालों से साझा करने के लिए वो भागी-भागी घर पहुंचीं. उन्हें लगा था कि जितनी खुश वो हैं उतने ही उनके परिवार वाले भी होंगे. उस दिन उन्हें कंपनी का प्रेसीडेंट बनाया गया था.
उस वक्त करीब 10 बज रहे थे जब वो अपने घर पहुंचीं. उनकी मां सीढ़ियों पर ही उनका इंतजार कर रही थीं. उतावली इंद्रा ने अपनी मां से कहा कि मेरे पास आपको बताने के लिए एक बहुत बड़ी खुशखबरी है. इंद्रा को उम्मीद थी कि मां भी बेसब्र हो जाएंगी इस खबर को सुनने के लिए लेकिन हुआ उल्टा ही. उनकी मां ने खुशखबरी सुनने के बजाय उनसे कहा, तुम्हारी खुशखबरी मैं बाद में सुन लूंगी, पहले जाकर दूध ले आओ.
इंद्रा ने गैराज में नजर दौड़ाई. उनके पति की कार वहीं खड़ी थी. उन्होंने अपनी मां से पूछा कि उनके पति आज घर कितने बजे आए. जवाब मिला कि वह तो 8 बजे आ गए थे. इंद्रा को बुरा लगा और उन्होंने उनसे पूछा कि फिर आपने उनसे दूध लाने को क्यों नहीं कहा. उनकी मां ने दो टूक जवाब देते हुए कहा कि वो थका हुआ था. ऐसा भी नहीं था कि उनके घर में कोई काम करने वाला नहीं था. जब इंद्रा ने कहा कि नौकरों से क्यों नहीं मंगाया तो उनकी मां ने जवाब दिया कि वो भूल गई थीं.
खैर एक अच्छी बेटी की तरह इंद्रा दूध लेने तो चली गईं. लेकिन बाद में मां से शिकायती लहजे में ही कहा कि मैं आपको एक खुशखबरी देना चाहती थी. मैं कंपनी की प्रेसिडेंट बन गई हूं और आपके लिए दूध जरूरी था. आप कैसी मां हैं....
इस पर उनकी मां ने उनसे कहा कि बन गई होगी तुम पेप्सिको की प्रसीडेंट लेकिन इस घर में पैर रखने के साथ ही तुम एक बीवी बन जाती हो, बेटी बन जाती हो, बहू बन जाती हो और मां बन जाती हो. ये सारे किरदार तुम्हारे ही हैं. ये पद कोई दूसरा नहीं ले सकता. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम अपना प्रेसीडेंट का ताज वहीं ऑफिस में ही छोड़कर आया करो. इस घर में उसकी कोई जरूरत नहीं.
हर कामकाजी महिला के साथ यही किस्सा है. उसकी उपलब्धियों को हमेशा घर के काम के बीच छोटा कर दिया जाता है. वाकई यह बुरा लगता है. जब अपना परिवार ही काम में मिलने वाली सफलता में शामिल नहीं होता तो इसे अचीव करने की खुशी भी फीकी पड़ जाती है.
ये कहानी सिर्फ एक नूई की नहीं है. हो सकता है, आपने भी ये दर्द सहा हो या फिर सह रही हों और अगर आप पुरुष हैं तो एकबार अपनी पत्नी, बहन और बेटी के बारे में सोचिए.
महिलाओं ने ऑफिस में भले अपनी एक पहचान बना ली हो लेकिन घर में वो आज भी सिर्फ एक मशीन की तरह देखी जाती हैं. जिस पर पूरा घर अपनी जिम्मेदारियां छोड़कर निश्चिंत हो जाता है. पर बदले में उसे क्या मिलता है...यही सबसे बड़ा सवाल है.