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प्रेग्नेंसी के लक्षण लेकिन नहीं हैं प्रेग्नेंट, जानिए क्यों होता है ऐसा?

पीरियड्स मिस होने के एक हफ्ते बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट करने की सलाह दी जाती है. पर क्या अगर तब भी टेस्ट नेगिटिव आए पर महसूस प्रेग्नेंसी जैसा ही हो रहा हो. आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है? क्या है इसके पीछे की वजह.

प्रेग्नेंसी टेस्ट प्रेग्नेंसी टेस्ट
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 13 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 12:52 PM IST
  • पीरियड्स मिस होने के 1 हफ्ते बाद ही टेस्ट करें
  • पीरियड्स से पहले के लक्षण और प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षण दोनों एक जैसे ही होते हैं
  • ज्यादा शारीरिक और मानसिक दवाब है एक कारण

पीरियड्स मिस होना एक महिला के दिल की धड़कनों को बढ़ा देता है. या तो वो उम्मीद से भर जाती है या फिर उसके मन में एक तरह का डर पैदा होने लगता है. ऐसे में प्रेग्नेंसी टेस्ट ही इस उलझन का समाधान दे सकता है. पर सवाल यह है कि अगर ऐसा हो कि टेस्ट भी नेगिटिव आए और महसूस प्रेग्नेंसी जैसा ही हो रहा हो, तब क्या?

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बता दें कि पीरियड्स से पहले के लक्षण और प्रेग्नेंसी के शुरुआती लक्षण दोनों एक जैसे ही होते हैं. थकान, सूजन, घबराहट, पेट फूलना, मूड स्विंग्स, क्रेविंग आदि सारी बातें दोनों ही स्थिति में एक जैसी ही सामने आती हैं. पीरियड्स जितनी देरी से होता है , ये सब उतना ही ज्यादा महसूस होता है, और अगर आप प्रेग्नेंट होना चाहती हैं तो इन चीजों पे ध्यान ज्यादा ही जाएगा.

कई बार ऐसा भी होता है कि घर पर प्रेग्नेंसी टेस्ट का पॉजिटिव रिजल्ट आने के बावजूद भी कैमिकल प्रेग्नेंसी के चांसेज होते हैं. इसमें 30% फर्टिलाइज्ड एग फैलोपिन ट्यूब से गर्भाशय में जाते-जाते कुछ ही दिनों में नष्ट हो जाते हैं. इसमें शुरुआती दौर में तो पॉजिटिव रिजल्ट दिखता है पर कुछ दिनों बाद पीरियड्स शुरु हो जाते हैं.

इसी वजह से पीरियड्स मिस होने के 1 हफ्ते बाद टेस्ट करने की सलाह दी जाती है. पर क्या अगर तब भी टेस्ट नेगिटिव आए पर महसूस प्रेग्नेंसी जैसा ही हो रहा हो. आइए जानते हैं ऐसा क्यों होता है? क्या है इसके पीछे की वजह.

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स्ट्रेस
स्ट्रेस हमारी बॉडी पर बहुत ज्यादा असर डालता है. अगर लाइफ में बहुत ज्यादा शारीरिक और मानसिक दवाब रहता है तब दिमाग में यही सोच पनपती है कि अभी बच्चा नहीं करना है और परिणामस्वरूप ओवुलेट नहीं होता है और अगर ओवुलेशन नहीं होता है तो पीरियड्स भी नहीं होते हैं, पर प्रेग्नेंसी के लक्षण जरूर शुरू होने लगते हैं.

दवाइयां
दवाइयों का मासिक साइकल पर बहुत प्रभाव रहता है. Steroid दवाइयां बहुत ही हानिकारक होती हैं. इससे पीरियड मिस होने के बहुत चांसेज रहते हैं. थायरॉइड या डायबिटीज की दवाइयों का भी असर रहता है.

प्री-मेनोपॉज
लगभग 52 साल की उम्र के आसपास मेनोपॉज की स्थिति पैदा होने लगती है. कई महिलाओं में यह उनके 40 की उम्र में भी दिखने मिलता है. प्री-मेनोपॉज में पीरियड्स का सही समय पर न होना बहुत आम है. ऐसे में हार्मोंस बहुत बदलते हैं और कई बार प्रेग्नेंसी जैसे लक्षण महसूस होते हैं जैसे मूड में बदलाव या ब्रेस्ट का कोमल होना, आदि.

 

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