
बड़ौदा राजघराने की महारानी राधिका राजे गायकवाड़ अपने परिवार की परंपरा को लोगों से रूबरू करवाने के लिए लगातार काम कर रही हैं. उन्होंने दिल्ली में आयोजित हो रहे 'रॉब रिपोर्ट लिमिटेड एडिशन-2018' कार्यक्रम में 'द गायकवाड़ जेवेल्स 300 ईयर्स ऑफ ट्रेडिशन' सेशन में राजघराने की परंपराओं और विरासत के बारे में बात की.
बता दें कि राधिकाराजे बड़ौदा राजघराने के महाराज समरजीत सिंघाराव गायकवाड़ की पत्नी हैं. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि 'दुनिया भर में अद्भुत कलेक्शन के बारे में बात होती रहती है, लेकिन यह पहली बार है कि कोई परिवार अपने कलेक्शन के बारे में बात कर रहा हो.'
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उन्होंने कहा, 'तिजोरी के कई बॉक्स जा चुके हैं, कुछ चोरी हो चुके हैं और कुछ खाली हो गए हैं इसलिए मेरे लिए यह संवेदनशील बातचीत है.' साथ ही उन्होंने गायकवाड़ वंश के इतिहास के बारे में बातचीत की और बताया कि राजा-महाराजा हमेशा से खूबसूरत चीजों के प्रति आकर्षित रहे हैं.'
अपनी विरासत के बारे में बातचीत करते हुए महारानी ने कहा, 1721 का साल था. जब मराठा आर्मी के दमाजीराव गायकवाड़ पर साहू महाराज का ध्यान गया. उन्हें श्मशेर की उपाधि मिली. उनके भतीजे पिलाजीराव गायकवाड़ ने भी युद्ध और कूटनीति से अपना क्षेत्र बढ़ाया. वह गुजरात पहुंचे. 1726 में उन्होंने मुगलों के लिए सोनगढ़ पर विजय प्राप्त की. दमाजी राव ने मुगलों को पराजित किया और बड़ौदा भी जीत लिया. इसके बाद वे कभी महाराष्ट्र नहीं लौटे और गुजरात को ही अपना ठिकाना बना लिया. अगली सदी में गायकवाड़ों ने बड़ौदा को संवारने का काम किया.
कोहिनूर से बड़ा हीरा खरीदा
उन्होंने बताया कि ज्वैलर्स, बुनकर गायकवाड़ की शरण में आ गए थे. 19वीं सदी में ही गायकवाड़ों का खजाना कीमती और खूबसूरत चीजों से भर चुका था. वे इंटरनेशनल ज्वैलर्स डीलर्स बन गए. कीमती आभूषण दुनिया भर से खरीदे गए. 1867 में एक ऐसा डायमंड खरीदा गया जो कोहिनूर से भी बड़ा था.
महारानी ने बताया, 'विडंबना ये थी कि यह हीरा एक ब्लैक महिला ने ब्राजील में खोजा था. इससे उसे ना केवल आजादी मिली बल्कि उसे अपनी जीविका का साधन भी मिल गया. उन्होंने बताया कि रिकार्ड के मुताबिक, खंडेराव अपने इस पजेशन से इतना ज्यादा उत्साहित थे, कि उन्होंने इसे पूरे बड़ौदा शहर में दिखाया. इसी साल खंडेराव ने 35000 पाउंड में 17.06 कैरेट का ऐतिहासिक मुगल डायमंड खरीदा. कहा जाता है कि ये अत्यधिक मशहूर मयूर सिंहासन के मोर की आंख में जड़ा हुआ था.